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Rambaan Aushadhi

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बीमारी एक उन्नत व्यापार(Sickness An Advanced Business)-भारत की बात करे तो एक अनुमान के अनुसार अस्पताल में हुई तीन में से दो मौतों का कारण अस्पताल की लापरवाही और दवाइयों से होने वाले दुष्प्रभाव है। यदि आपको भारत के अस्पतालों में होने वाली इन मौतों के शर्मनाक तथ्यों पर विश्वास नहीं होता तो जरा कुछ और नजारे भी देख लें। हम आपको चिकित्सा जगत से जुड़े कुछ लोगो से मिलवाने जा रहे है। भारत के प्रतिष्ठित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन में तीन लाख से अधिक डॉक्टर सदस्य है। इसे भारत के आधुनिक मेडिसन का बैकबोन भी कहा जाता है।
सन 2008 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने टीवी पर एक विज्ञापन के माध्यम से ट्रोपिकाना जूस पिने की सिफारिश की और कहा कि वह सेहत के लिए बहुत लाभदायक है। जबकि सच्चाई तो यह है कि अगर आप जूस में डाली गई सामग्री की जाँच करे तो पायेगें कि वह सेहत के लिए बेहद नुकसानदायक है। यह किस्सा यही समाप्त नहीं होता है। जरा हमारे साथ कुछ बड़े व निजी अस्पतालों के रसोईघरों में झांके तो पाएंगे कि मरीजों को फलों का जूस के नाम पर पैक्ड और केमिकल युक्त जूस दिए जा रहे है,जो रोगियों के नाजुक रोग प्रतिरोधक तन्त्र के लिए जहर का काम करते है। बेशक फलों का जूस सेहत के लिए अच्छा होता है किन्तु पैक्ड एंड प्रोसेस्ड जूस सेहत के खराब होने का कारण बन जाते है। उसी प्रकार माइक्रोवेव द्वारा पकाया गया भोजन डायबिटीज,कोलेस्ट्रोल,हार्ट डिजीज और कैंसर जैसे जानलेवा रोगों का कारण बन जाता है। माइक्रोवेव खाने की नमी या वाटर मोल्युकलस को एक सेकंड में लाखों बार वाईब्रेट करता है, जिससे गर्मी पैदा होती है और खाना गर्म हो जाता है लेकिन साथ ही वाटर मोल्युकलस का केमिकल स्ट्रक्चर अस्वाभाविक रूप से बदल जाता है, जो कि हमारे शरीर में जाकर जहर के रूप में काम करता है।अब विचार करने की बात यह है कि ऐसे खाने का सेवन करके रोगी बना व्यक्ति जब अस्पताल पहुंचता है तो उसे वहां भी माइक्रोवेव से पका या गर्म किया गया भोजन ही परोसा जाता है यानि इलाज के साथ-साथ रोग को दोबारा पनपने या बने रहने का कारण भी परोसा जा रहा है। संभवत हमारे देश के चिकित्सक भी आम आदमी की तरह इन सभी कारणों को निरंतर नजरअंदाज करते है, यही कारण है कि स्वयं चिकित्सक ही एक आम आदमी की अपेक्षा अधिक रोगी पाए जाते है। हाल की में, मेरे दल ने भारत के सबसे श्रेष्ठ व अच्छे माने जाने वाले टॉप 10 अस्पतालों के ओबेसिटी (मोटापा) विभाग के प्रमुखों की सेहत का जायजा लिया और पाया कि 10 में से 9 प्रमुख तो स्वयं मोटापे के शिकार है। अब आप ही सोचें कि जो इन्सान स्वयं मोटापे की मार झेल रहा है, वह भला किसी दुसरे को पतला होने की क्या सलाह देगा? यदि भारत का सबसे बड़ा मधुमेह का डॉक्टर स्वयं ही मधुमेह का रोगी होगा तो वह अपने रोगियों की चिकित्सा क्या खाक करेगा? आप किसी भी निजी अस्पताल में जाइये,अस्पताल के अन्दर ही फ़ास्ट फूड के रेस्त्रां मिल जायेगे हालाँकि यह सिद्ध हो चुका है कि वर्तमान जीवनशैली से जुड़े अधिकतर रोगों का प्रमुख कारण फ़ास्ट फूड ही होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्राइवेट अस्पतालों में बीमारी के नाम पर पैसा कमाने का ऐसा कारोबार आरंभ हो चुका है, जिसकी तेजी से बढने की सम्भावनाएँ सौ प्रतिशत से भी अधिक हैं। इस प्रचलित मुहावरे पर ध्यान दें:- "आज इंसान अपने 50 साल की बचत को जीवन के आखिरी 50 दिनों में ही खुद को मौत से बचाने में खर्च कर देता है।" याद रखिए ,आपके बीमार पड़ने,बीमार रहने और उस बीमारी के लम्बे समय तक चलते रहने में ही अस्पतालों और कुछ कम्पनियों का लाभ है। संभवत: यही कारण है कि ब्रिटानिया जैसी कम्पनी भी डायबिटिक रोगियों के लिए बनाए गए अपने एक खास बिस्किट के विज्ञापन में लिखती है 'लेट्स बी फ्रेंड्स विद डायबिटिक। भला सोचिए कौन बेवकूफ इस बीमारी से दोस्ती करना चाहेगा! आपको रोगों के साथ जीवित बनाए रखने में ही दवा कंपनियों व अस्पतालों को लाभ होगा। वे सब मिलकर यह षड्यंत्र रच रहे है और आप सब कुछ जानकर भी अनजान बने बैठे है। यह मानव जाति का ही दुर्भाग्य है कि केवल मनुष्य ही रोगों से मरता है।क्या कभी आपने सुना कि बिल्ली हार्ट अटैक से मारी गई या किसी कुत्ते को रक्तचाप हो गया। मर्क,ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन,फाइजर सहित दुनिया की टॉप 10 दवा कम्पनियों में आए दिन किसी न किसी मेडिकल घोटाले का सामने आना इस बात का प्रमाण है कि हम सब किसी न किसी गहरे जानलेवा खतरे से घिरते जा रहे है और बचाव का कोई उपाय सामने नहीं है।

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