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Rambaan Aushadhi

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प्रकृति का साथ ही इन बिमारियों से मानव जाति (Basic food of human)को बचा सकता है!
प्रकृति ने हमें बनाया है, हमारे आसपास हर चीज उसी ने बनाई है तो हमारे भीतर या इसके आसपास होने वाली किसी भी अव्यवस्था का इलाज भी इसी के पास है। हमें अपनी चिकित्सा के लिए इसी पर निर्भर रहना चाहिए। विज्ञान आज भी मानता है कि अभी भी वह मानव शरीर के बारे में एक प्रतिशत से भी कम जानकारी ही हासिल कर पाया है। ऐसे में मानव शरीर के सेल्युलर डिसऑर्डर को सही करने का कार्य अगर हम प्रकृति पर ही छोड़ दें तो बेहतर होगा। एक चीनी शोध की इस आश्चर्य जनक रिपोर्ट पर ध्यान देंगे:- यह कहानी है दो सभ्यताओं की, एक का नाम है हुंजा जो कि कश्मीर के पास रहते है और दूसरी सभ्यता है पीआईएमए इंडियन्स , जो कि एरिजोना में जाकर बस गये थे। दोनों ही दुनिया की सबसे स्वस्थ सभ्यताएं मानी जाती थी। दोनों का रहन-सहन और खाने-पिने की आदते भी एक जैसी ही थी। दोनों सभ्यताओं में यह देखा गया कि उनके कुल आहार का 90 प्रतिशत हिस्सा प्लांट बेस्ट कच्चा आहार ही था यानि वे पौधों से प्राप्त आहार पर ही निर्भर थे। उनका अधिकतर भोजन फल, कच्चे खाद्य पदार्थ या हल्की उबली सब्जी ही होती थी। नमक न के बराबर और चीनी बिलकुल कम। इन दोनों सभ्यताओं क्र लोग प्राय: 100 वर्ष से अधिक जीते थे। उन्हें कभी भी कैंसर,डायबिटीज,हार्ट डिजीज जैसी जीवन शैली सम्बन्धी बिमारियां नहीं होती थीं। आज भी हुंजा इंडियन लगभग 100 वर्ष से अधिक जीते है। और वहां कोई बीमारी नहीं है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज भी वहां न कोई केमिस्ट है और न ही कोई हॉस्पिटल। जबकि पीआईएमए (पीमा) इंडियन को आज दुनिया की सबसे बीमार सभ्यता का ख़िताब मिल चूका है। कारण यह है कि आज से कुछ वर्ष पूर्व एरिजोना में बसे पीआईएमए इंडियन से उनकी जमीन अमेरिकी सरकार ने यह कहकर छीन ली थी कि बदले में उन्हें आजीवन मुफ्त भोजन मिलेगा। उसके बाद सरकार ने भोजन के नाम पर पैक्ड जंक फूड की सप्लाई शुरू कर दी।परिणामस्वरूप लगभग 20 सालों में ही पीआईएमए इंडियन्स का हर सदस्य भयंकर रूप से बीमार पड़ने लगा। सभी पीआईएमए इन्डियन्स डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर,माइग्रेन, आर्थराइटिस,कोलेस्ट्राल,कैंसर वे मोटापा आदि जैसी बिमारियों से ग्रस्त हो गये। चीनी शोध के अनुसार,ऐसे में कुछ बीमार लोगों के आहार को फिर से 90 प्रतिशत से अधिक फल सब्जियों और उबले व्यंजनों से जोड़ दिया गया। साथ ही नमक,चीनी,मैदा,मिल्क पाउडर और रिफाइंड आयल भी पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया। फिर पाया गया कि महज डेढ़ से दो साल में ही सब पूरी तरह स्वस्थ हो गये। निष्कर्ष यह यह है कि आप कितनी ही गंभीर बीमारी से पीड़ित क्यों न हों, आपको बस अपनी डाइट का लगभग 90 प्रतिशत कच्चे फलों व सब्जियों से लेना होगा। अगर आप किसी लम्बी बीमारी से पीड़ित नहीं है और जीवनभर स्वस्थ रहना चाहते है तो आपको कम से कम अपनी दिनभर की कुल डाइट का 60 प्रतिशत कच्चे फल और सब्जियों के रूप में लेना होगा। एक चीनी शोध के मुताबिक शरीर को प्राकृतिक रूप से पौधों के माध्यम से क्लोरोफिल और न्यूट्रीएंट्स की प्रचुर मात्रा दी जाए तो बीमारियों के जड़ से दूर होने की सम्भावना बढ़ जाती है। साधारण भाषा में कह सकते है कि यदि आप किसी बीमारी से ग्रस्त है और एक से डेढ़ साल तक अगर आप 90 प्रतिशत पादप आधारित आहार ग्रहण करते है तो आप अपनी खोई हुई सेहत वापस पा सकते है। खुशकिस्मती से हुंजा के अलावा दुनिया में छह और सभ्यताएं ऐसी है,जहाँ आज भी बीमारी का कोई नामोनिशान नहीं है और अक्सर वहां के लोग 100 से ज्यादा साल जीते है। इन सभी सात सभ्यताओं में कुछ समानताएं है इन सभ्यताओं में .... 1.कच्चे या उबले भोजन की खपत- 90 से 95 प्रतिशत । 2. चीनी की खपत - न के बराबर। 3.नमक की खपत - न के बराबर 4.जन्तु आधारित आहार की खपत - एक से पांच प्रतिशत 5.दूध की खपत -बहुत कम 6.प्रोसेस्ड फूड को खपत - बिलकुल भी नहीं यानि स्पष्ट है कि जिन सभ्यताओं ने एक बार फिर से प्रकृति की और लौटने की समझदारी दिखाई या प्रकृति की बनाई चीजें ही इस्तेमाल करने लगे, वे खुद ब खुद स्वस्थ हो गये। उन्हें न तो कभी किसी भी तरह की बिमारियों ने घेरा और न ही उन्हें किसी भी तरह की दवाओं की जरूरत महसूस हुई। जर्नल ऑफ़ द मेडिकल एसोसिएशन,2003 भी चाइना अध्ययन के समर्थन ही अपनी रिपोर्ट देते हुए कहता है कि कच्चे आहार से कोलेस्ट्राल की उतनी ही मात्रा घटाई जा सकती है जितनी आप स्टेटिन के प्रयोग से घटा लेते हैं। यहाँ एक लाभ यह है कि इस प्रयोग में किसी भी तरह का दुष्प्रभाव नहीं होता है। ठीक इसी प्रकार दि न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसन, 2001 का कच्चे आहार के बारे में कहना है कि आस्टियोपोरोसिस का इलाज करा रहे मरीजो का हिप फेक्चर ठीक नहीं हो सकता है। यदि अपने आहार में कच्चे भोजन को शामिल कर दें तो 36 प्रतिशत तक हिप फेक्चर्स में भी आराम मिलने की सम्भावना रहती है। अमेरिकी हार्ट एसोसिएशन साइंस एडवाइजरी ने यह निष्कर्ष निकाला है कि कच्चे फल व सब्जियां खाने से लोगों के स्वास्थ्य में जबरदस्त सुधार देखने को मिल सकता है। ठीक इसी प्रकार इसमें यह भी प्रकाशित हुआ है कि कोलेस्ट्राल कम करने वाली स्टेटिन की दवाएं लेने वाले मरीजों के मुकाबले वे मरीज ढाई गुना तेजी से स्वस्थ होते है, जो आहार में कच्चे खाद्य पदार्थ लेते है। अब सवाल यह है कि अगर अनपका व कच्चा आहार लेने से ही अनेक रोगों से बचा जा सकता है तो यह बात जनता से छिपाई क्यों जाती है? इस सवाल का जवाब देते हुए कोलेस्ट्राल गाइडलाइंस पैनल के चेयरमैन डॉ.स्कोट ग्रुंडी कहते है- 'दवा कम्पनियां बेहद ताकतवर है। इन दवाओं के प्रमोशन के लिए वे काफी ताकत लगा देते है। ऐसी कोई इंडस्ट्री नहीं है जो स्वस्थ भोजन का प्रचार करे।' इसीलिए कच्चे फल,सब्जियां आदि को अपने भोजन में शामिल करे क्योंकि हमारा मूल भोजन ही यही है।

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