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खाद्य पदार्थों की राजनीति -बायो बम के दुष्प्रभाव food-politics-side-effects-of-biobam

एमएसजी से खतरनाक जहर एचएफसीएस -food-politics-side-effects-of-biobam
आज में आपको ऐसे भयावह तथ्य से मिलवाने जा रहे है जो जाने अनजाने आप सभी के जीवन में ऐसी गहरी सेंध लगा कर बैठा है कि आप उसे अपने जीवन का एक अंग मानने लगे है जिसका नुकसान हमारी आने वाली पीढियों को भी भुगतना पड़ेगा।
इस तथ्य तक जाने के लिए पहले आपको मेरे साथ अतीत की उन गलियों में जाना होगा, जहाँ धन व सत्ता के लोभियों ने केवल अपने स्वार्थ के लिए मानव जाति के साथ एक घिनौना षड्यंत्र किया। मैने इसे नाम दिया है 'खाद्य पदार्थों की राजनीति(food-politics-side-effects-of-biobam)।'
वर्ष 1972, यूएस राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को यह चिंता सता रही थी कि कहीं आर्थिक अस्थिरता के चलते उनकी सरकार न गिर जाए! सत्ता का मद होता ही ऐसा है। इसके मद में चूर रहने वालों को संसार में अपने सिवा कुछ दिखाई ही नही देता। उस समय यही दशा निक्सन की भी थी। उसने अपनी समस्या का समाधान करने के लिए जापानी वैज्ञानिक योशियुकी ताकासकी की सहायता ली। और उससे एचएफसीएस बनाने का फार्मूला खरीदा। इसे हम बायोबम की संज्ञा दे सकता है। एचएफसीएस यानि हाई फ्रुक्टोज कोर्न सिरप, इस केमिकल को खाने-पिने की जिस वस्तु में डाला जाता है, खाने वाले को उसे खाने की लत हो जाती है।
इसका प्रभाव एमएसजी से भी अधिक व्यापक होता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने खाद्य व पेय पदार्थों में इन्ही रसायनों को मिला कर हमें अपने उत्पाद के सेवन की आदत डाल चुकी है चूँकि कुछ समय से लोग एमएसजी जैसे केमिकल के बारे में जागरूक हो रहे है इसलिए वे अपने पैकेट पर साफ शब्दों में लिखवाती है 'इसमें एमएसजी नहीं है'... किन्तु उनके खाद्य पदार्थ में एचएफसीएस मिलाया गया होता है। एचएफसीएस का प्रभाव काफी हद तक शराब जैसा होता है। जिस तरह शराब पिने वाला उसके नशे में मस्त रहता है और उसे बार-बार पीना चाहता है, उसी तरह एचएफसीएस युक्त खाद्य या पेय पदार्थ पिने वाला भी उसके स्वाद का इतना आदी हो जाता है कि उसे खाए बिना रह ही नहीं पाता है। शराब का आपके मन और शरीर पर जो भी असर होता है, वही सारा प्रभाव इस केमिकल का भी है।
जिस तरह शराब पिने से हाइपरटेंशन, दिल के रोग,पैंक्रियाज पर बुरा असर, कुपोषण,मोटापा,लीवर का नष्ट होना आदि कुप्रभाव सामने आते है, उसी तरह इस बायोबम का सेवन करने वाले भी इन रोगों की चपेट में आ जाते है। अब में आपको बताना चाहता हूँ कि एचएफसीएस को किन खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है। यह जानकारी निश्चित रूप से आपको हैरत में डाल देगी क्योंकि ये सभी वस्तुएं आपके लिए नई नहीं है। ये वे सभी खाद्य व पेय पदार्थ है, जिन्हें आप स्वयं खाते है व अपने बच्चों को भी बहुत ही प्यार से परोसते है।
ऐसे खाद्य पदार्थों की सूची निम्नलिखित है:- जैली,पेस्ट्री,केंडी,बिस्किट,फ्रूटी,ब्रेड,चोकलेट,जूस, सेरेलेक,जैम,बर्गर,नुडल्स वगैरह आदि। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने आपको इन खाद्य पदार्थों की इतनी लत डाल दी है कि आप चाह कर भी इन्हें अपनी जीवन शैली से अलग ही नही कर रहे है
प्राकृतिक रूप से प्राप्त खाद्य पदार्थों को हमने अपने जीवन से परे धकेल कर इन सब वस्तुओं को अपना लिया है। दुर्भाग्य की बात यह भी कि हमने इन्हें अपने स्टेटस सिम्बल से जोड़ दिया है यदि आप ऐसी वस्तुओं का सेवन नहीं करते है तो समाज में आपको हेय दृष्टी से देखा जाता है और पिछड़ा हुआ माना जाता है।
कारण चाहे जो भी हो, ये सभी वस्तुए हमारे घरों में बेहद चाव से खाई जाती है। अब आपको यह भी जान लेना चाहिए कि एचएफसीएस युक्त वस्तुएं खाने से क्या नुकसान हो सकता है? यदि आप लगातार ऐसा ही फ़ास्ट फूड और पैक्ड फूड अपने बच्चो को खिलाएंगे व स्वयं खायेंगे तो शरीर में मिनरल व विटामिन की कमी हो जाएगी। इनका शिकार व्यक्ति हमेशा बीमार थका-थका सा रहता है उसे असमय ही मोटापा घेर लेता है। नींद न आने की बीमारी हो जाती है या फिर नींद आना ही बंद हो जाती है।किसी भी काम में मन नहीं करता है।
एकाग्रता क्षमता कमजोर हो जाती है। फ़ास्ट फूड और पैक्ड फूड की जकड़ में फंसे बच्चों को इनके दुष्प्रभाव अधिक मात्र में झेलने पड़ते है। जिस समय उनके शरीर को पूरी वृद्धि के लिए पोषक पदार्थों की आवश्यकता होती है,उस समय वे फ़ास्ट फूड से अपना पेट भरते है। नतीजा, बाहर से मोटा और अन्दर से खोखला शरीर। उस पर रोग प्रतिरोधक क्षमता कमी! ऐसे बच्चे पढ़ाई में भी मन नहीं रमा पाते है।
यह सब प्रभाव तो आप स्वयं अपने घरों में भी देख रहे होंगे किन्तु यहाँ जिस प्रभाव की बात करने जा रहा हूँ वह मृत्यु के बाद भी बना रहेगा अर्थात हमारी मृत्यु के बाद हमारी आने वाली पीढियों को भी हमारी इन लापरवाहियों के परिणाम भुगतने होंगे। यही लक्षण हमारे नवजात शिशुओं में भी जन्म से ही होंगे। ये ऐसे लक्षण होंगे। जिनके लिए हमारे पास लाखों रूपये खर्च करके भी कोई चिकित्सा नहीं होगी।
इन लक्षणों से ग्रस्त बच्चे शारीरिक व मानसिक विकलांगताओं के साथ जन्म लेंगे। जिस प्रकार एटम बम के असर को हिरोशिमा और नागासाकी की आगामी कई पीढ़ियों ने झेला और अब भी झेल रही है, उसी तरह बायोबम भी आपकी आने वाली पीढ़ियों को अपनी चपेट में लेने के लिए पूरी तरह से कमर कसे बैठा है। अब आप स्वयं तय कर लें कि रंग-बिरंगे पैकटो में छिपी मौत को कब तक अपने घरों की रौनक बनाना चाहेंगे या नहीं यह निर्णय हम आप पर ही छोड़ते है।

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एमएसजी से खतरनाक जहर एचएफसीएस -food-politics-side-effects-of-biobam
आज में आपको ऐसे भयावह तथ्य से मिलवाने जा रहे है जो जाने अनजाने आप सभी के जीवन में ऐसी गहरी सेंध लगा कर बैठा है कि आप उसे अपने जीवन का एक अंग मानने लगे है जिसका नुकसान हमारी आने वाली पीढियों को भी भुगतना पड़ेगा।
इस तथ्य तक जाने के लिए पहले आपको मेरे साथ अतीत की उन गलियों में जाना होगा, जहाँ धन व सत्ता के लोभियों ने केवल अपने स्वार्थ के लिए मानव जाति के साथ एक घिनौना षड्यंत्र किया। मैने इसे नाम दिया है 'खाद्य पदार्थों की राजनीति(food-politics-side-effects-of-biobam)।'
वर्ष 1972, यूएस राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को यह चिंता सता रही थी कि कहीं आर्थिक अस्थिरता के चलते उनकी सरकार न गिर जाए! सत्ता का मद होता ही ऐसा है। इसके मद में चूर रहने वालों को संसार में अपने सिवा कुछ दिखाई ही नही देता। उस समय यही दशा निक्सन की भी थी। उसने अपनी समस्या का समाधान करने के लिए जापानी वैज्ञानिक योशियुकी ताकासकी की सहायता ली। और उससे एचएफसीएस बनाने का फार्मूला खरीदा। इसे हम बायोबम की संज्ञा दे सकता है। एचएफसीएस यानि हाई फ्रुक्टोज कोर्न सिरप, इस केमिकल को खाने-पिने की जिस वस्तु में डाला जाता है, खाने वाले को उसे खाने की लत हो जाती है।
इसका प्रभाव एमएसजी से भी अधिक व्यापक होता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने खाद्य व पेय पदार्थों में इन्ही रसायनों को मिला कर हमें अपने उत्पाद के सेवन की आदत डाल चुकी है चूँकि कुछ समय से लोग एमएसजी जैसे केमिकल के बारे में जागरूक हो रहे है इसलिए वे अपने पैकेट पर साफ शब्दों में लिखवाती है 'इसमें एमएसजी नहीं है'... किन्तु उनके खाद्य पदार्थ में एचएफसीएस मिलाया गया होता है। एचएफसीएस का प्रभाव काफी हद तक शराब जैसा होता है। जिस तरह शराब पिने वाला उसके नशे में मस्त रहता है और उसे बार-बार पीना चाहता है, उसी तरह एचएफसीएस युक्त खाद्य या पेय पदार्थ पिने वाला भी उसके स्वाद का इतना आदी हो जाता है कि उसे खाए बिना रह ही नहीं पाता है। शराब का आपके मन और शरीर पर जो भी असर होता है, वही सारा प्रभाव इस केमिकल का भी है।
जिस तरह शराब पिने से हाइपरटेंशन, दिल के रोग,पैंक्रियाज पर बुरा असर, कुपोषण,मोटापा,लीवर का नष्ट होना आदि कुप्रभाव सामने आते है, उसी तरह इस बायोबम का सेवन करने वाले भी इन रोगों की चपेट में आ जाते है। अब में आपको बताना चाहता हूँ कि एचएफसीएस को किन खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है। यह जानकारी निश्चित रूप से आपको हैरत में डाल देगी क्योंकि ये सभी वस्तुएं आपके लिए नई नहीं है। ये वे सभी खाद्य व पेय पदार्थ है, जिन्हें आप स्वयं खाते है व अपने ब
च्चों को भी बहुत ही प्यार से परोसते है। ऐसे खाद्य पदार्थों की सूची निम्नलिखित है:- जैली,पेस्ट्री,केंडी,बिस्किट,फ्रूटी,ब्रेड,चोकलेट,जूस, सेरेलेक,जैम,बर्गर,नुडल्स वगैरह आदि। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने आपको इन खाद्य पदार्थों की इतनी लत डाल दी है कि आप चाह कर भी इन्हें अपनी जीवन शैली से अलग ही नही कर रहे है
प्राकृतिक रूप से प्राप्त खाद्य पदार्थों को हमने अपने जीवन से परे धकेल कर इन सब वस्तुओं को अपना लिया है। दुर्भाग्य की बात यह भी कि हमने इन्हें अपने स्टेटस सिम्बल से जोड़ दिया है यदि आप ऐसी वस्तुओं का सेवन नहीं करते है तो समाज में आपको हेय दृष्टी से देखा जाता है और पिछड़ा हुआ माना जाता है।
कारण चाहे जो भी हो, ये सभी वस्तुए हमारे घरों में बेहद चाव से खाई जाती है। अब आपको यह भी जान लेना चाहिए कि एचएफसीएस युक्त वस्तुएं खाने से क्या नुकसान हो सकता है? यदि आप लगातार ऐसा ही फ़ास्ट फूड और पैक्ड फूड अपने बच्चो को खिलाएंगे व स्वयं खायेंगे तो शरीर में मिनरल व विटामिन की कमी हो जाएगी। इनका शिकार व्यक्ति हमेशा बीमार थका-थका सा रहता है उसे असमय ही मोटापा घेर लेता है। नींद न आने की बीमारी हो जाती है या फिर नींद आना ही बंद हो जाती है।किसी भी काम में मन नहीं करता है।
एकाग्रता क्षमता कमजोर हो जाती है। फ़ास्ट फूड और पैक्ड फूड की जकड़ में फंसे बच्चों को इनके दुष्प्रभाव अधिक मात्र में झेलने पड़ते है। जिस समय उनके शरीर को पूरी वृद्धि के लिए पोषक पदार्थों की आवश्यकता होती है,उस समय वे फ़ास्ट फूड से अपना पेट भरते है। नतीजा, बाहर से मोटा और अन्दर से खोखला शरीर। उस पर रोग प्रतिरोधक क्षमता कमी! ऐसे बच्चे पढ़ाई में भी मन नहीं रमा पाते है।
यह सब प्रभाव तो आप स्वयं अपने घरों में भी देख रहे होंगे किन्तु मर यहाँ जिस प्रभाव की बात करने जा रहा हूँ वह मृत्यु के बाद भी बना रहेगा अर्थात हमारी मृत्यु के बाद हमारी आने वाली पीढियों को भी हमारी इन लापरवाहियों के परिणाम भुगतने होंगे। यही लक्षण हमारे नवजात शिशुओं में भी जन्म से ही होंगे। ये ऐसे लक्षण होंगे। जिनके लिए हमारे पास लाखों रूपये खर्च करके भी कोई चिकित्सा नहीं होगी। इन लक्षणों से ग्रस्त बच्चे शारीरिक व मानसिक विकलांगताओं के साथ जन्म लेंगे। जिस प्रकार एटम बम के असर को हिरोशिमा और नागासाकी की आगामी कई पीढ़ियों ने झेला और अब भी झेल रही है, उसी तरह बायोबम भी आपकी आने वाली पीढ़ियों को अपनी चपेट में लेने के लिए पूरी तरह से कमर कसे बैठा है। अब आप स्वयं तय कर लें कि रंग-बिरंगे पैकटो में छिपी मौत को कब तक अपने घरों की रौनक बनाना चाहेंगे या नहीं यह निर्णय हम आप पर ही छोड़ते है।

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