अनाज के कारण जवानी में बुढ़ापा और बुढ़ापे के रोग (Diseases of old age) अगर आपने जल्दी बूढ़ा होने की ठान ली है
तो साधा और सरल उपाय है, फल मेवे छोड़कर या कम कर अनाज का अधिक से अधिक उपयोग करना शुरू कर दें। मेहनत से जरुर बचिएगा क्योंकि मेहनत से (अनाज की अम्लता निष्कासित हो जाने के कारण) बुढ़ापा 10-20 साल आगे खिसक जाएगा। मेहनत से आपको बुढ़ापा 60 साल के करीब लगेगा मेहनत के बैगर तो 30-35 साल की उम्र ही काफी हैं बुढ़ापे के लिए।
बुढ़ापा व रोगों की स्वीकृति- 30-35 साल की उम्र के बाद एक-एक दांत का खिसकना शुरू हो जाना, बालों का सफेदी की तरफ बढ़ जाना, पाचन में शिथिलता, श्वास शीघ्र फूलने लगना, ज्यादा भाग दौड़ करने का, उछलने को, नाचने को, जी नहीं करना या कतराना, उत्तेजना के द्वारा शौच होना इत्यादि बुढ़ापे के आगमन की सूचना है। 50 साल के आसपास पहुंचे न पहुंचे, हड्डियों की रीढ़ का लचीलापन कम होकर, गठिया संधिवात, स्पांडेलाइरिस,कमर दर्द जैसे रोगों में उलझ जाना, आँखों पर चश्मा तो आजकल 30 साल के आसपास निश्चित रूप से लग ही जाती हैं।
5 वर्ष से 30 साल के भीतर आधे से अधिक लोगों को चश्में लग रहे हैं ये सारे रोग हमने स्वीकार कर लिए हैं। हम ये मानकर चल पड़े है कि ये सभी रोग आज नहीं तो कल होने ही हैं। 40-50 साल की उम्र के बाद एक अच्छे में रोग का लेवल हमारे माथे पर भी चिपकना ही चाहिए। किसी भी हार्ट अटैक 40-50 साल के आसपास हो जाए तो ताज्जुब कैसा ? ये तो होती ही है कोई न कोई अटैक (attack) के लिए, हार्ट अटैक नहीं तो, दमा का अटैक अथवा जोड़ो का अटैक, नहीं तो रक्तचाप का अटैक। चीनी ने और गर्म-ठंडी खाने ने दाँतों को पूरा उखाड़ने में, मुँह को एकदम सफाचट साफ करने में अनाज ने बहुत मदद की है, दांत हमेशा आहार को जबरन मुँह में रोके रखते थे।
अब न कोई अवरोध, भोजन सीधा पेट में। बुढ़ापे और बुढ़ापे के रोगों से जल्दी मिलाने में अनाज ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है सच्चाई तो ये है कि 80-100 साल तक रहने की शक्ति, स्फूर्ति, जवानी को, अपने ही स्वास्थ्य के खजाने को अनाज अपना कर खो दी। आज की स्थिति को देखते हुए 80-100 साल की जवानी को कम बताते हुए आदमी 150-200 साल तक भरपूर मेहनत करने की क्षमता रखने वाला रहा हैं।
आप स्वयं भी इस बात को जानते हैं सुन चुके हैं कि कई व्यक्ति 90 वर्ष की उम्र में भी जवानों की तरह दौड़ लगाते या मेहनत करते थे हालांकि उनके दीर्घायु का राज कम खाना,सादा खाना और मेहनत करना रहा हैं। ऐसे 90 वर्ष के लोग शक्ति से भले ही भरे रहे हैं। परन्तु दाँतों से,आँखों से,बालों से, पाचन से वह रोगी निश्चित होते हैं क्योंकि ये रोग स्वीकृत हैं जो नियमानुसार नहीं होने चाहिए। ये कमजोरियाँ जीवन के अंतिम एक दो साल में आती हैं।
अनाज से बुढ़ापा शीघ्र आने का मूल कारण - अनाज के क्षारों तत्वों की कमी और अम्लता की अधिकता अनाज के आग में पक जाने के कारण ''इंजाइम'' (जीवन की असली सत्व, प्राण) एवं विटामिन, नष्ट हो जाते हैं और कई रसायन अपना स्वरूप न बदलकर संयुक्त बन जाते हैं जो शरीर के लिए उपयोगी न होकर विष द्रव्य के रूप में बोझ बन जाते हैं।
अनाज के अम्लत्व की तरह यह भी संयुक्त रसायन शरीर में यहाँ-वहाँ रुककर, रक्तचाप, पथरी कैंसर,संधिवात जैसे रोगों के कारण बन जाते है। अनाज में नमक की तरह ऐसे खनिज युक्त पृथ्वी तत्वों की अधिकता है जो शरीर में उपयोग न होकर, जोड़ों में, खून की नलियों में, कोषाणुओं (tissues) में ये (calcification) और (osteophytes) खनिज तत्व जो (solidifying agents) है धीरे-धीरे जमा होकर धमनियों, खून की नलियों को, जोड़ों को,रीढ़ को कठोर निष्क्रिय बना देते है और असमय बुढ़ापा और मृत्यु के कारण बन जाते हैं।
डॉ. इवान्स अपनी 20 पेज के आहार विश्लेषन चार्ट में दिखाते है कि फल और मेवों में ये तत्व सब से कम मात्रा में, उसमें थोड़ा अधिक प्राणी जन्य आहार में, उससे अधिक सब्जियों में पत्तियों में और अंत में सबसे अधिक दालों में और अनाजों में। डॉ इवान्स ने अनाजों से मिलने वाले ऐसे कई संयुक्त खनिज तत्वों को रक्त में पाया है जो बुढ़ापा शीघ्र लाने का मूल कारण बन जाते है। इसलिए वह हमारे आज के आहार की स्थिति को देखते हुए कहते हैं।
अनाज निश्चित जड़ता एवं कठोरता का सूत्र - अनाज के इस दुर्गुण और दुष्प्रभाव से हमारे ऋषि-मुनि और महात्मा भी नहीं बच पाए। उम्र ढलने के साथ शरीर में जकड़न, जड़ता और कठोरता के आने को उन्होंने स्वाभाविक मानकर बुढ़ापे के साथ उसका संबंध जोड़ लिया, इसलिए हमारे शास्त्रों पुराणों में अनाज का कोई विशेष विरोध नहीं किया गया। हमारे संत महात्मा मन और आत्मा के सत्य को तो पहचान गए परन्तु शरीर संबंधित प्रकृति एवं आहार को अच्छी तरह पहचानने में चूक गए। इसी कारण अधिकतर हमारे संत-महात्मा सामान्य मानव की तरह सभी छोटे-बड़े महामारक रोगों से पीड़ित होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते है।