बालरोगों (Child disease) का कारण अनाज दो साल की उम्र तक जब तक बच्चों के पूरे दांत नहीं आ जाते,अनाज का उपयोग
बच्चों के लिए अत्यंत रोग-दायक या कभी-कभार घातक भी होता हैं। जब तक बच्चों के चबाने योग्य दांत नहीं आते तब तक किसी भी प्रकार के स्टार्च या अनाज को पचाने वाली पाचन ग्रन्थियाँ परिक्व नहीं होती, विशेषकर उनकी लार ग्रन्थियाँ पेंक्रीयाज एवं छोटी आंत।
दूध पिने की अवस्था तक बच्चों की लार ग्रन्थियाँ ''टाइलिन'' पाचक तत्व (जो अनाज के पाचन के लिए प्रथम आवश्यक तत्व हैं) स्राव नहीं करती, अनाज को अच्छी तरह दाँतों से चबाकर, तरल किए बिना टाइलिन तत्व मिश्रित भी नहीं होता, छोटे बच्चों के चबाने योग्य पूरे दांत होते ही नहीं, इसलिए माताएँ अनाज का पाउडर मशीन द्वारा बाहरी दाँतों से पीसकर बच्चों के गले में उड़ेल देती हैं अनाज अपने पहले पाचन (जो मुहँ में होता हैं) को छोडकर तब पेट में पहुंचता है
तो अनाज के दुष्पाच्य जटिल स्टार्च को तोड़कर शर्करा बनाने में बच्चों की पाचक ग्रन्थियाँ विकसित अवस्था में नहीं होती या पूरी तरह विकसित होने से पहले ही बहुत कठिनाई से अनाज के कार्य-भार को संभालने का प्रयत्न करती हैं पाचन अंग अभी बहुत कोमल अवस्था में होते हैं जो केवल दूध, शर्करा एवं फलों की सुपाच्य शर्करा को ही आत्मसात कर सकते हैं। ये अनाज के दुष्पाच्य स्टार्च का बोझ ढ़ोने योग्य नहीं रहते जिससे अधिकतर सारा अनाज पेट में सड़कर, विषाक्त द्रव्य बनकर बच्चों में रोग की नींव डाल देता है।
ये उसी प्रकार की बात है जैसे एक जवान आदमी का बोझ एक कोमल बच्चे के सर पर रखकर उसको भार उठाने के लिए मजबूर किया जाता है। जो बोझ उठाने की कोशिश तो करता है परन्तु परिपक्व न होने के कारण असमर्थ साबित होता है। बच्चे कभी बीमार नहीं होते, बच्चों को बीमार किया जाता हैं। बीमार करने की पूरी सुविधाएँ जुटाई जाती हैं। बच्चों का रोग से क्या लेन-देन। बच्चों के स्वास्थ्य की लगाम-माता-पिता के हाथ में होती है। बच्चों के सभी रोग माता-पिता की अज्ञानता एवं गलतियों का सूचक हैं।
रोग, शरीर का अपने ही प्रति किए जा रहे दुर्व्यवहार का विरोध है। बच्चों के अधिकतर सभी रोग, दस्त, उल्टियाँ, बुखार, फोड़े-फुंसियाँ, टांसिल, चेचक, खसरा इस बात के ठोस सबूत हैं कि बच्चों में विषाक्तता अति आहार, गलत अनुचित आहार द्वारा पैदा की गई है। गंदगी (विष) बनेगी तो शरीर हर हालत में उसको किसी न किसी तरह फेंककर अपने आपको जीवित और सुरक्षित रखने का प्रयत्न करेगा। इसी प्रयत्न का नाम ही तो रोग है।
रोग शरीर की मजबूरी है, स्वभाव नहीं 2 साल की उम्र तक इस प्रकार की विषाक्तता का एक बड़ा कारण अनाज है। अन्य कारणों में जानवरों के दुष्पाच्य दूध, माँ के दूध का अभाव, उचित पालन-पोषण की ख़ामियाँ भी है। परन्तु ये कारण इतने घातक नहीं जितना अनाज का सेवन। अनाज नन्हें बच्चों के कभी नहीं पचता, अनाज का स्टार्च हर हालत में सड़ता हैं और यही सड़न जहर के रूप में विविध रोग पैदा करता है। सर्दी, जुकाम, खासी द्वारा जब यही विष द्रव्य बाहर निकलने का प्रयत्न करते हैं
तब हम वातावरण, भाग्य और ईश्वर को दोषी बनाकर डाक्टर वैद्यों के पास उपचार ढूढने निकल पड़ते हैं। दवाओं, चिकित्साओं द्वारा ऐसे तीव्र रोगों को दबाकर,रोग के कारण को जारी रखते हुए भविष्य में महामारक रोग की नींव मजबूत करते चले जाते हैं। पूरे दांत आने के पहले बच्चों को अनाज शुरू कर देना- सड़न और पेट के कीड़ो का बच्चों के मामले में सबसे प्रथम कारण हैं। बच्चों के जब तक पूरे दांत आने नहीं शुरू हो जाते तब तक स्टार्च को पाचन करने वाली लार ग्रन्थियाँ विकसित ही नहीं होती।
दांत के अभाव में बच्चा अनाज चबाता नहीं- दांत के अभाव में अनाज को पानी मिलाकर तरल रूप में देंने के कारण अनाज का पाचन ही नहीं होता। इस तरह पाचन रसों के अभाव में अनाज पेट में सड़कर कीड़ों का जन्मदाता बनता हैं। पकाकर खाना अनाज के सड़न का बहुत बड़ा कारण हैं। अंकुरित एवं ताजा कच्चा अनाज या दाल पेट में नहीं सड़ते। ये शीघ्र पचकर निकल जाते हैं क्योंकि इनका विटामिन,खनिज लवण एवं प्राण तत्व का संतुलन बना रहता हैं तथा ये ताज़ी हरी अवस्था में क्षार प्रधान होते हैं।
ये सड़ते ही नहीं, इसलिए पेट में कीड़े पड़ते ही नही! अनाज को पकाते ही इसके विटामिन्स,क्षार तथा प्राणतत्व नष्ट हो जाते हैं। यही तत्व हमारी आँतों में सुरक्षा के स्तंभ होते हैं। खनिज लवण रूपांतरित होकर आरोग्य हो जाते हैं। इन सब के अभाव में अनाज को लम्बे समय तक पेट में रुकना पड़ता हैं। इतना ही नहीं पका हुआ अनाज अपने पाचन के लिए तथा इससे होने वाली सड़न के लिए शरीर के क्षार तत्व और विटामिन्स को लूटकर खोखला करता हैं। चीनी-गुड़ अनाज के साथ खाना भी इसके सड़ने का एक बड़ा कारण हैं।
अनाज देर से पचते हैं और चीनी-गुड़ शीघ्र। इसलिए चीनी-गुड़ किसी को देर से हजम होने वाले आहार,अनाज, दूध,दालें या मेवों के साथ जब भी उपयोग किया जाएगा ये शीघ्र न पचकर स्वयं भी सड़ेंगे और अनाज को भी सड़ायेंगे। घी-तेल इसको लम्बे समय तक रोककर सड़ने में पूरी मदद करते हैं। इसलिए मिठाईयाँ स्वास्थ्य घातक होती हैं। फल-सब्जियों का अभाव या कम उपयोग होने के कारण शरीर को पर्याप्त मात्रा में खुज्जा,विटामिंस एवं खनिज तत्व न मिलने के कारण आँतों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती हैं जिसके कारण वह सड़न का प्रतिरोध न कर पाने के कारण कीड़ों की स्थाई रूप से रहने का मौका मिल जाता हैं।
दुश्मनी कीड़ों से नहीं-सड़न से करें - शरीर किसी भी विजातीय तत्व, कीड़ों या विषाक्तता को भीतर रहने ही नहीं देता वह हाथ धोकर हर वक्त इनको धक्का मारकर शरीर से निकालने में रात-दिन जुटा रहता हैं। अपने इसी जन्मजात स्वभाव के कारण हमारे लगातार सड़न पैदा करने के बावजूद भी यह कीड़ों को पनपने नहीं देता। लगातार प्रतिरोध करते-करते थक-हारकर वह कीड़ों को पनपने के लिए स्थान देता हैं। इसलिए सड़न के मूल कारणों को रोकते ही पेट के कीड़े सड़न के अभाव में अपना स्थान छोड़कर बाहर निकाल आते हैं।
सड़न के कारण जारी रखते हुए पेट के कीड़ों से मुक्ति कभी सम्भव नहीं। जब तक हम गलत आहार मांस, अंडे, दूध, अनाज में उलझे रहेंगें तब तक पेट में कीड़े पनपते ही रहेंगें। कब्ज हो या न हो, सामान्यतया हर व्यक्ति के पेट में किसी न किसी रूप में कीड़े अवश्य होते हैं। भले ही हम नियमित एक या दो साफ शौच क्यों न करें। प्राकृतिक आहार ही कीड़े से मुक्त रहने का एक मात्र उपाय हैं।
पूर्ण रूप से प्राकृतिक आहार न भी लिया जाए तो 70 प्रतिशत के करीब लिए जाने पर भी कीड़ों से सुरक्षा संभव हैं। कीड़ों की दवा बेकार हैं !हम चाहे जितनी पेट के कीड़ों की तेज जहरीली दवाएँ क्यों न खा लें सड़न के रहते पेट के कीड़े कभी नहीं जाने वाले इसके ठीक विपरीत जहरीली दवाओं से आँतें क्षति-ग्रस्त एवं कमजोर होकर अपनी प्रतिरोध क्षमता खोकर और अधिक कीड़ों को पनपने के लिए कारण बनती हैं। बार-बार दस्तावर से कब्ज जटिल हो जाती हैं। लहसुन-तुलसी, नीम जैसे कड़वी औषधियाँ भी- सड़न के मूल कारणों के रहते भी सफल नहीं होती हैं।
कीड़ों से मुक्ति का सरलतम उपाय -किसी भी प्रकार के कीड़े चाहे बच्चे के पेट में सारे ठोस आहार अनाज,दूध, दही, मेवे, चीनी तुरंत बंद कर केवल रसदार या मौसम का फल, सलाद, जूस इत्यादि लेते रहे। ध्यान रहें ये भूख कड़क हो तो ही लेने हैं, अन्यथा बगैर भूख के ये भी सड़न पैदा करेंगें। पके हुए आहार की अधिक तलब नमक से संबधित रहती हैं। व्यायाम का अवश्य भरपूर प्रयोग करें।
पालक- मेथी- टमाटर का कच्चा हरा रस लहसुन मिलाकर दिन में 1-2 कप लेने से सड़न रुकने में शीघ्र मदद मिलती हैं। सिर्फ 2-3 बार सादे गुनगुने का एनिमा लेना भी लाभदायक होता हैं यह कार्यक्रम सिर्फ 15 दिन अवश्य चलाना होता हैं इसके बाद भोजन में भूख अधिक होने पर अंकुरित अन्न, नारियल मेवे इत्यादि पहले जोड़ें। धीरे-धीरे चोकर समेत (दिन में केवल एक बार) रोटी- भरपूर सलाद सब्जी के साथ जोड़ लें। पेट के भयंकर से भयंकर कीड़ें निकालने का श्रेष्ठतम उपाय सादे नींबू पानी पर 8-10 दिनों का संपूर्ण उपवास हैं।
उपवास के दौरान सैकड़ों मरीजों के शौच एवं मुहँ से विविध प्रकार के कीड़े निकलते हैं। 1 कप फल रस द्वारा उपवास तोड़कर धीरे-धीरे रसदार फल, फिर गुद्देदार फल,फिर फल सलाद तथा उबली सब्जियों पर आकर सामान्य भोजन पर एक सप्ताह के बाद लौट आएँ। भोजन में नियमित फल सलाद अधिक बढ़ते ही तथा अनाज-दालें कम होते ही धीरे- धीरे पेट के कीड़े हमेशा के लिए विदा हो जाते हैं। प्राकृतिक आहार के रहते पेट में किसी भी प्रकार के कीड़ें या रोग पनप ही नहीं सकते।