ह्रदय रोगों में अनावश्यक जाँचों (Unnecessary checks) का मुनाफाखोर विज्ञान किसी भी व्यवसाय को सबसे अधिक मुनाफेदार बनाने का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत क्या हैं ?
यदि ग्राहकों को बार- बार आपकी सेवाएं लेने के लिए आना पड़े तो आपका व्यवसाय दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करेगा। यही ह्रदय रोगों की चिकित्सा का आधार हैं, भले ही रोगी की जान को खतरा हो जाए या उसकी जान ही क्यों न चली जाए। ह्रदय चिकित्सा का आरंभ कई तरह के एक्स-रे, स्कैन व एंजियोग्राफी जैसी चीर-फाड़ वाली प्रक्रियाओं से होता हैं। जब भी आप अपनी परेशानी के साथ अस्पताल में कदम रखते हैं तो डॉक्टर के लिए सबसे पहला व आसान कार्य यही होता हैं कि वह आपको कई तरह के एक्स-रे, सीटी स्कैन आदि करवाने के लिए लिख देता हैं। अक्सर अस्पताल अपने नए डाईग्नोस्की सिस्टमों की शेखी बघारते हैं। टाइम पत्रिका के एक लेख में इसे 'द हॉस्पिटल वार' कहा गया हैं। अक्सर अस्पताल कर्जा ले कर महंगी स्कैनिंग मशीनें खरीद लेते हैं और अपनी किस्तें भरने के लिए वे हिसाब-किताब लगाते हैं कि उन्हें हर माह कितने स्कैन/रोगी चाहिए ताकि वे क़िस्त के पैसे निकाल कर अपने लिए भी कुछ बचा सकें। रोगियों की वह संख्या ही, बिना कुछ कहे, अपने आप डॉक्टरों के लिए लक्ष्य बन जाती है। अस्पतालों के इस काम से न केवल रोगियों पर अनावश्क भार पड़ता हैं परन्तु इससे उनके शरीर को भी नुकसान होता हैं उदाहरण के लिए, एक 64 स्लाइस होल बॉडी कैट स्कैन से पुरषों को 15.2 एमएसवी का तथा महिलाओं को 21.4 एसएसवी का रेडिएशन दिया जाता हैं (महिलाओं के घने शरीर उत्तकों तथा स्तनों के कारण, स्पष्ट छवि पाने के लिए उन्हें अधिक डोज देनी होती हैं) अब जरा इस संख्या की तुलना, रेडिशन के उस स्तर से करें, जो जापान के हिरोशिमा नागासाकी बम विस्फोट में जीवित बचे व्यक्तियों को झेलना पड़ा, उसकी मात्रा औसतन 5 से 20 एमएसवी तक चली गई थी। चूँकि सभी स्त्रोतों से प्राप्त रेडिएशन हमारे शरीर में आजीवन बने रहते हैं तो ऐसा लगता हैं कि 21 वीं सदी के रोगियों में इसकी मात्रा उस औसतन मात्रा से भी कहीं अधिक होगी, जो हिरोशिमा व नागासाकी जनसंख्या में भी पाई गई थी।