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Rambaan Aushadhi

यह गलत आहार (wrong diet) जिसके कारण जागने पर भारी महसूस होता है

सुबह उठते ही अगर आपको शरीर भारी लगता है तो निश्चय ही आप अतिआहार या गलत आहार(wrong diet) या विश्राम की कमी के शिकार हैं।

आपने कभी भी गौर किया कि सुबहे उठते ही क्यों हम सभी के मुंह में बदबू Bad smell होती है बदबू भी ऐसी की कुल्ला किये बगैर न तो किसी को शक्ल दिखा सकते हैं,न किसी से बात ही कर सकते हैं। क्या यह बदबू स्वाभाविक है ? नहीं! पके आहार के जो खाद्य कण दांतों में रह जाते है, वह रात भर सड़कर बदबू पैदा करते हैं। (जिसके लिए हमें मजबूर होकर रात को ब्रश करना पड़ता है) या वह भारी आहार, जो सोने से पहले खाया हुआ होता है, लम्बे समय तक पेट में रहकर सड़ रहा होता है। दिन में भी जिन लोगों के मुहँ से बदबू आती है, उनके पेट में भोजन सड़ रहा होता है।
सच्चाई ये है कि अपक्वाहारी के मुहँ में बदबू होती ही नहीं, बल्कि सुबह उसके मुंह में भीनी- सी एक महक होती है। अपक्वाहार अपने आप में ही दांतों की स्वयं सुरक्षा है। फल- सब्जियाँ दांत साफ करने तथा साफ रखने के सबसे श्रेष्ठ टूथब्रश तथा दंत मंजन हैं। गलत पक्वाहार खाकर हम कब तक नीम, बबूल या चमत्कारिक कहे जाने वाले दंतमंजन या टूथपेस्ट करते रहेंगे ?
अपक्वाहारी का सुबह उठकर केवल पानी से कुल्ला कर लेना ही पर्याप्त है। आदत के मारे दंतमंजन करना हो तो भले ही कर लें। संसार में किसी भी प्राणी की जीभ कभी मैली नहीं होती (पालतू जानवरों को छोड़कर जो गलत आहार खाते हैं) हर प्राणी की जीभ साफ गुलाबी रंग लिए होती है।
अपक्वाहार पर रहने पर मानव की जीभ भी हमेशा साफ, गुलाबी रहती है। सुबह उठने पर उसमें मैल की हल्की भी परत नहीं होती,जिससे उसको टंग क्लीनर से या अंगुलियों से घिसकर साफ करनी पड़े। साफ करना चाहें तो भी कुछ नहीं निकलता। ठीक इसके विपरीत वर्तमान में हर व्यक्ति की जीभ सामान्य तौर पर गंदी-मैली होती है और सुबह उठने पर तो मैल की परतें चढ़ जाती हैं, जिनको टंग क्लीनर से साफ करना ही पड़ता है। जीभ हमारे शरीर का सच्चा आईना है, यह पाचन अंगों, आँतों तथा शरीर में भरी हुई गंदगी का सूचक अंग है।
अगर किसी को अपने भीतर छुपी हुई भयंकर गंदगी के दर्शन करने हैं तो वह केवल तीन-चार दिन का उपवास (केवल पानी पर) कर लें, जीभ गंदगी की परतों से लबालब भर जायेगी, मुहँ बदबू से भर जायेगा। एक ऐसी अजीब गंध अनुभव करेंगे जो आप स्वयं ही बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे। अपक्वाहारी की जीभ उपवास में भी गंदी नहीं होती। अंदर गंध भरी हो तो जीभ गंदी होगी।
अत: जब तक जीभ गंदी है, तब तक शरीर विष से भरा है और यह विष पके आहार की उपज है। पक्वआहार कम कर अपक्वाहार बढ़ाइये। जीभ स्वयं बोल उठेगी। शरीर के भारीपन का कारण ये भी है कि खुलकर मल नहीं आना (कब्ज, बवासीर,) "जितनी बार खाइये - उतनी बार जाइये" यह सीधा-साधा नियम है

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शौच का बाल अवस्था में तथा सभी जानवरों से हम इस सच्चाई को अनुभव करते हैं, परन्तु स्कूल जाना शुरू करते ही अथवा व्यवसाय से जुड़ते ही हम केवल एक बार शौच तक सीमित रह जाते हैं, उसमें भी अधिकतर लोगों को कब्ज रहता है,कईयों को जिन्दगी भर बंधा हुआ मल नहीं निकलता, पेट साफ नहीं होता या पेचिश, दस्त आदि लगे रहते हैं। कब्ज जैसी समस्या या शब्द संसार के किसी प्राणी में नहीं है सिवाय इस सभ्य मानव के। कब्ज क्यों ? आँतें बनी ही हैं मृत्युपर्यत श्रेश्कासन के लिए, आहार सही होता है तो आँतें अपनी श्रेष्ठ कार्य क्षमता का परिचय देती हैं ।
अपक्वाहारी ही अन्य प्राणियों की तरह इस सच्चाई का अनुभव एवं आनन्द उठा पाता है। मूत्रत्याग करने में 30 सैकण्ड लगते हैं,परन्तु शौच करने में केवल 10 सैकण्ड शौच की हाजत हुई और खट-खट करके बंधा हुआ चिपकने वाला नहीं होगा जिसके लिए पानी की आवश्यकता पड़ें, यहाँ तक कि गुदा द्वार पर भी मल बिलकुल नहीं लगता जिससे गुदा धोने की आवश्यकता पड़ें सफाई की दृष्टि से भले ही धो लें )।
शाहकारी पशुओं (गाय, घोड़ा, हाथी, बकरी, वगैरह) का दुर्गधरहित मल हम हाथ से भी उठाकर फ़ेंक सकते हैं, परन्तु मानव मल को हम हाथ लगाना तो दूर, देख भी नहीं सकते । क्या यह अत्यंत शर्मनाक बात नहीं है कि हम इतना दुर्गधपूर्ण मल त्यागते हैं और उसे स्वाभाविक भी मानते हैं। प्राकृतिक आहारियों के लिए कब्ज,गैस, डकारें,बवासीर,भगन्दर जैसे शब्द हैं, यह अतिश्योक्ति नहीं है, अनुभवसिद्ध है ।

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