Milk when how much time

दूध (Milk when how much time) कब कितना किस समय पीना चाहिए

दूध (Milk when how much time) कब कितना किस समय पीना चाहिए। दूध बचपन का आहार है,दांत आ जाने के बाद संसार का कोई प्राणी दूध नहीं पीता,सिवाय मानव के जो जीवन भर बछिया बनकर स्तनपान करता रहता हैं।

संसार का प्रत्येक प्राणी अपना निर्धारित आहार खाता है, उसी तरह मानव को बचपन के बाद दूध शब्द भूलकर अपना निधारित आहार खाना चाहिए। कोई भी प्राणी एक- दूसरे के दूध का उपयोग नहीं करता,न उन पर निर्भर है,सिवाय मजबूरी के। हर प्राणी का दूध उसी प्राणी की सन्तान के पाचन,विकास एवं स्वास्थ्य के अनुकूल होता हैं,अन्य प्राणी के नहीं।
गाय-भैंस के दूध में वह तत्व होते हैं जो शीघ्र बढ़ने वाले बछड़ों के अनुकूल हैं,जो 2 साल में 2000 पौंड का बन जाता हैं। मानव धीमी गति से विकास करने वाला प्राणी है जो 20 साल में जाकर जवान बनता हैं तथा 120 से 150 किलो का वजन प्राप्त करता है। क्या ये शीघ्र तेजी से बढ़ाने वाले हार्मोन हमारे धीमे विकास वाले शरीर को गंभीर रूप से अव्यवस्थित एवं असंतुलित नहीं करते ? बाल्यकाल समाप्त होते ही दूध को पचाने की ग्रन्थियाँ सब प्राणियों में समाप्त हो जाती हैं, 5 से 10 साल की उम्र के बाद मानव में भी ये ग्रन्थियाँ समाप्त हो जाती हैं। इसी कारण दूध का लेक्टोज प्रोटीन अधपचा रहकर गैस और दस्त पैदा करता हैं।
बचपन (बाल्य अवस्था) में भी दूध का उपयोग बच्चों व शिशुओं के अनेक रोगों तथा असमय मृत्यु का कारण बनता है। हमारे बच्चों को यह जीवित भले ही रख ले,परन्तु स्वस्थ नहीं रखता। बच्चों के लिए यह अत्यंत भारी,अनुपयोगी आहार है,सर्दी,जुखाम,खासी,कब्ज,अपच, गैस,एलर्जी,एक्जीमा,टॉन्सिल्स, न्युमोनिया ,दस्त जैसी अनेक बीमारियों का यह जन्मदाता है। हर प्राणी के लिए अपनी माता के दूध के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं हैं मजबूरीवश इसे अपनाकर मानव या पशु जीवित तो रह सकता है,स्वस्थ कभी नहीं। दांत न आने तक प्रकृति ने दूध की व्यवस्था की है। दांत पूरे आ जाने के बाद सभी प्राणियों के जीवन से दूध शब्द ही समाप्त हो जाता है।
जब बाल अवस्था के बाद स्वयं बछड़े को तथा जवान हो जाने के बाद स्वयं गाय के दूध की आवश्यकता नहीं हैं, न वो इस पर जीवित रह सकते है, तो मानव को इस दूध की,बछड़े के मुकाबले क्या ज्यादा आवश्यकता है ? क्या यह सरासर मुर्खता नहीं है ? दूध यानि ताजा,कच्चा, सीधे स्तन से मुहँ में जाये,हवा के सम्पर्क में आते ही दूध विकृत होने लगता है और लाखों कीटाणु पनप जाने से यह अयोग्य आहार हो जाता है। उबालने से यह और बेकार हो जाता है,क्योंकि इसके लाखों मृत बैक्टीरिया इसमें ही रहते हैं,इसलिए इसे "बैक्टेरिया सूप" कहना ज्यादा उचित है।
पाशचराइज्ड किया गया दूध एक घातक,मुर्दा आहार है। इस दूध से गाय के बछड़े भी शीघ्र रोगी उम्र से पहले मर जाते हैं। दूध कभी उबलने के लिये नहीं बना। दूध का कैल्शियम हमारे शरीर को नहीं मिलता,न
हमें इसकी आवश्यकता है।
osteoporosisMilk when how much time
जो अधिक दूध पिते हैं उनका उल्टे कैल्शियम क्षय होता है और ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) नामक रोग से ग्रस्त हो जाते हैं,जिससे हड्डियां कमजोर होकर झटके से भी टूट जाती हैं। जिन देशों में सबसे अधिक दूध पीया जाता है,
वहाँ यह ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) हड्डियों का रोग सबसे अधिक है। फल, सब्जी,मेवों का भरपूर उपयोग करने वालों में कैल्शियम की कमी कभी नहीं होती। जब गाय का बछड़ा एवं गाय स्वयं कैल्शियम के लिए दूध पर निर्भर नहीं हैं तो मानव पुत्र क्यों ? पराये दूध में मानव मष्तिष्क के लिए आवश्यक लेसीथिन नहीं होता जो माँ के दूध में होता है। दूध शरीर भले ही चौड़ा कर दे,दिमाग नहीं बढ़ता। मस्तिष्क का सही आहार मेवा है, दूध नहीं। पैदा मानव होता है और पौषण जानवरों से लेता है ? जो महात्मा,संत दूध पर आश्रित रहे हैं,
वह कैंसर, ह्रदय रोग एवं कई गंभीर रोगों से ग्रस्त होकर मरे हैं। पशु के दूध को अपनाकर महात्मा न तो शांत रह सकते हैं, न ही स्वस्थ। अगर वह शांत, स्वस्थ लगते हैं तो वह शत-प्रतिशत बनावटी है,आडंबर है। यह अनुभव सिद्ध निर्णय है। दूध का लेक्टोज मानव को नहीं पचता,जिससे गैस, एलर्जी एवं बहदजमी जैसी अनेक समस्याएँ होती हैं। दूध के मुकाबले दही शीघ्र पचता है,परन्तु इसके हानिकारक प्रभाव से हम बच नहीं सकते। दही का दीर्घायु से कोई सम्बन्ध नहीं है। दीर्घायु का सम्बन्ध स्वस्थ,मेहनती जीवन से है, किसी विशेष आहार से नहीं। दही का बैक्टीरिया हमारे पाचन के लिए बिलकुल नहीं चाहिए। जिनके पेट खराब होते,जिनकी आँतों में मल सड़ते हैं,उन्हीं को दही अच्छा लगता है।
सही आहार पर रहने वाले संसार के किसी भी प्राणी को बाहर से किसी बैक्टीरिया रूपी दही की आवश्यकता नहीं है। कोई भी प्राणी किसी अन्य प्राणी के लिए मेहनत नहीं करता,न कमाता है। कोई प्राणी मानव की आवश्यकता को देखते हुए दूध नहीं देता। दूध न अमृत है,न स्वास्थ्यवर्धक आहार है,यह श्रेष्ट केवल गाय के बछड़े के लिए है,वह भी बाल अवस्था तक,बाद में नहीं।
मानव ही नहीं अन्य सभी प्राणियों के लिए भी यह पराया,अनुपयोगी,अयोग्य रोगकारक आहार है। जो जानवर विशेषकर कुत्ते जब गाय-भैंस के दूध पर पाले जाते हैं तो वह भी अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त होकर शीघ्र मर जाते हैं। हर जानवर अपने ही निर्धारित आहार पर स्वस्थ रहता है,दूध पर नहीं। दूध-दही का उपयोग औषध रूप में किया जा सकता है, मुख्य नियमित आहार के रूप में नहीं।जो लोग कम खाते हैं तथा कठिन परिश्रम करते हैं, उन्हें दूध,मांसहार एवं दालों के हानिकारक प्रभाव बहुत देर बाद मालूम पड़ते हैं। दूध एक अत्यंत कफकारक (शलेषमा वाला) आहार है। इससे कैंसर, ह्रदय रोग, एलर्जी, मोतियाबिन्द, दमा, गठिया, एक्जीमा, सर्दी, बलगम, कब्ज, अनिद्रा, उछंडता, पागलपन जैसी कई बीमारियाँ होती हैं।

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