बवासीर (piles) की समस्या -
पुराने समय से देखा जाएँ तो सभ्यता के विकास के साथ-साथ बहुत सारे असाध्य रोग पैदा हो गये इनमें से कुछ रोगों का उपचार तो आसान है परन्तु कुछ ऐसे रोग भी है जिनका उपचार बहुत मुश्किल से होता है इन रोगों में से एक रोग बवासीर भी है। बवासीर को अर्श भी कहते है। अंदर होने वाली बवासीर हमेशा धमनियों और शिराओं के समूह पर प्रभाव डालता है। इन भीतरी मस्सों से पीड़ित रोगी वहां खुजली और गर्मी की शिकायत रहती हैं। यह बवासीर रोगी को तब होती है जब वह मलत्याग करते समय अधिक जोर लगाता है। इसके अलावा बच्चे को जन्म देते समय यदि स्त्री अधिक जोर लगाती है तब भी उसे यह बवासीर हो जाती है। इस रोग से पीड़ित रोगी अधिकतर कब्ज से पीड़ित रहते है इस बवासीर के कारण मलत्याग करते समय रोगी को बहुत तेज दर्द और मस्सों से खून निकलने लगता है। बाहरी बवासीर मलद्वार के बाहरी किनारे पर होती है। इस बवासीर के अनेक आकार होते हैं तथा इस बवासीर के मस्से एक या एक से अधिक मस्सों के गुच्छे भी हो सकते हैं। अन्दरूनी बवासीर में गुदाद्वार के अन्दर सूजन आ जाती है तथा यह मलत्याग करते समय गुदाद्वार के बाहर आ जाती है और इसमें जलन तथा दर्द होने लगता है। बाहरी बवासीर में गुदाद्वार के बाहर की ओर के मस्से मोटे-मोटे दानों जैसे हो जाते हैं। जिनमें से खून का स्राव और दर्द तथा जलन की अवस्था भी बनी रहती है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को बैठने में बहुत दिक्कत होती है जिसकी वजह से रोगी ठीक से बैठ भी नहीं पाता है।
बवासीर 2 प्रकार की होती है -
1.खुनी बवासीर 2.बादी बवासीर
खुनी बवासीर में तो मस्सों में से खून निकलता है और यह खून निकलना तब और अधिक हो जाता है जब रोगी व्यक्ति शौच करता है। खुनी बवासीर से व्यक्ति को मलत्याग करने में बहुत अधिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। बवासीर रोग होने का मुख्य कारण पेट में कब्ज रहना है। 50 प्रतिशत से भी अधिक लोगों को यह रोग कब्ज के कारण होता है इसलिए जरूरी है कि कब्ज को रोकने के उपायों को हमेशा अपने दिमाग में रखें। कब्ज के कारण मलाशय की नसों के रक्त प्रवाह में बाधा पड़ती है जिसके कारण वहां की नसें कमजोर हो जाती हैं और आंतों के नीचे के हिस्से में भोजन के अवशोषित अंश अथवा मल के दबाव से वहां की धमनियां चपटी हो जाती हैं तथा झिल्लियां फैल जाती हैं। जिसके कारण व्यक्ति को बवासीर हो जाती है। यह रोग व्यक्ति को तब भी हो सकता है जब वह शौच के वेग को किसी प्रकार से रोकता है। भोजन में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होने के कारण बिना पचा हुआ भोजन मलाशय में इकट्ठा हो जाता है और निकलता नहीं है, जिसके कारण मलाशय की नसों पर दबाव पड़ने लगता है और व्यक्ति को बवासीर हो जाती है। इसके अलावा शौच से निवृत बाद मलद्वार को गर्म पानी से धोने से, तेज मसालेदार, अधिक गरिष्ठ तथा उत्तेजक भोजन करने से, दवाईयों का अधिक सेवन करने से और रात के समय में अधिक जागने के कारण भी व्यक्ति को बवासीर का रोग हो सकता है।
इसके कुछ घरेलू उपाय :-
1.आंवले का चूर्ण 10 ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ लेने पर बवासीर में लाभ मिलता है।
2.एक चम्मच अनार के छिलकों का चूर्ण दिन में तीन बार ताजे पानी के साथ सेवन करें इसके अलावा अनार के पेड़ के छाल का काढ़ा बनाकर उसमे एक चम्मच सौंठ तथा मिश्री मिलाकर पिने से बवासीर ठीक हो जाती है।
3.आंवले का चूर्ण दही के साथ खाने से आराम मिलता है गवार की फल्ली के पत्ते तथा काली मिर्च के दाने बराबर मात्रा में मिलाकर दोनों को पिस लें तथा पानी में मिलाकर पिए।
4.मुली का रस काला नमक डालकर पिने से भी आराम मिलता है।
5.10 ग्राम त्रिफला चूर्ण शहद के साथ चांटने से शीघ्र लाभ होता है एक चम्मच मैथी के बीजों को पीसकर 300 मिली.बकरी के दूध में उबाले। इसमें एक चम्मच पीसी हल्दी और एक चुटकी काला नमक भी मिला दे और दूध ठंडा होने के बाद सेवन करें बीमारी में लाभ जरुर मिलेगा।
6.प्रतिदिन सुबह खाली पेट तीन-चार पके हुए बीज वाले अमरुद खाने से बवासीर में काफी लाभ होता है गाजर और पालक का रस समान मात्रा में मिलाकर पिने से बवासीर खत्म हो जाती है। छोटी पिपली का चूर्ण शहद के साथ चाटने पर बीमारी में आराम मिलता है।
7.बड़ी इलायची को जलाकर उसका चूर्ण बनाये और प्रतिदिन सुबह दोपहर शाम ताजे पानी से लें |काले तिल और ताजे मक्खन को समान मात्रा में मिलाकर खाने से बवासीर नष्ट हो जाती है। सुबह-शाम बकरी का दूध पिने से बवासीर में काफी लाभ होता है करेले का रस और मिश्री मिलाकर लेने से बवासीर में लाभ होता है।
8.प्याज का रस में घी और मिश्री मिलाकर खाने से बवासीर में लाभ मिलता है हरड का पाउडर गुड़ के साथ मिलाकर खाने से बवासीर में लाभ मिलता है।
9.उबली हुई सब्जियां और सादा खाना इस बीमारी में लाभदायक है इसके साथ सेंधा नमक मिलाकर मट्टे का सेवन अवश्य करें और सलाद में मुली एवं गाजर का भी सेवन करें अथवा चबा-चबाकर खाएं। आंवले का चूर्ण एवं गुड़ मट्टे के साथ मिलाकर पीने से बवासीर में लाभ मिलता है।
10.इमली के बीजों को भुनकर उनका छिलका हटा लें तथा उनका चूर्ण बनाकर प्रात: दही के साथ सेवन करें। काशीफल का रस सभी तरह के बवासीर में लाभदायक है।
लेप भी कर सकते है -नीम और कनेर के पत्तो का लेप बवासीर के मस्सों पर लगाये। तम्बाकू के पत्तों की महीन चटनी बनाकर -मस्सों पर लेप करें। नीम का तेल भी मस्सों पर लगाने से आराम मिलता है।
ताजे मक्खन में थोड़ी सी फिटकरी और पीसी हुई हरड मिला कर मस्सों पर लेप करने से आराम मिलता है। हल्दी और कडवी तोरई को पीसकर उसका लेप मस्सों पर लगाने से आराम मिलता है।