अलसी पोषक तत्वों का खजाना (Linseed Nutrient Treasure) आइये हम देखें की इस चमत्कारी, आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व् दैनिक भोजन अलसी को “अमृत“ तुल्य माना गया है। अलसी का बोटेनिकल नाम लिनम यूजीटेटीसिमम या अति उपयोगी बीज है।
अलसी के पौधे नीले फूल आते हैं। हमारी दादी माँ जब हमें फोडा-फुंसी हो जाता था, तो अलसी की रेंडी आदि का लेप बनाकर बाँध देती थी। अलसी में मुख्य पौष्टिक तत्व अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि होते हैं। अलसी में विटामिन बी एवं कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर, लोहा, जिंक, पोटेशियम आदि खनिज लवण होते हैं। इसके तेल में 36 से 40 प्रतिशत ओमेगा-3 होता है।
अलसी गर्भवस्था से वृद्धावस्था तक फायदेमंद हैं। महात्मा गांधीजी ने स्वास्थ्य पर भी शोध की व बहुत सी पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने अलसी पर भी शोध किया, इसके चमत्कारी गुणों को पहचाना और अपनी एक पुस्तक में लिखा हैं, ''जहाँ अलसी का सेवन किया जायेगा, वह समाज स्वस्थ व समृद्ध रहेगा।''अलसी को अतसी,उमा, क्षुमा, पार्वती, निल्पुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है।
प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था, जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते थे और जीते जी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती थी। आवश्यक वसा अम्ल ओमेगो- 3 व ओमेगो-6 की कहानी - अलसी में लगभग 18 - 20 प्रतिशत ओमेगो - 3 फैटी एसिड ala होते हैं। अलसी ओमेगा -3 फैटी एसिड का पुष्पी पर सबसे बड़ा स्त्रोत हैं।
हमारे स्वास्थ्य पर अलसी के चमत्कारी प्रभावों को भली भांति समझने के लिए हमें ओमेगा 3 व ओमेगा-6 फैटी एसिड को विस्तार से समझना होगा। ये हमारे शरीर के विभिन्न अंगो विशेष तीर पर मस्तिष्क, स्नायुतंत्र व आँखों के विकास व उनके सुचारू रूप से संचालन में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं और कोशिकाओं की मित्तिया का निर्माण करते हैं। हमारे शरीर के ठीक प्रकार से संचालन के लिए ओमेगा-3 व ओमेगा- 6 दोनों ही चाहिए परन्तु इनका अनुपात 1:2 या 1:4 होना चाहिए।
पिछले कुछ दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-6 की मात्रा बढ़ती जा रही हैं और ओमेगा -3 की कमी होती जा रही हैं। मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा बेचे जा रहे फास्ट फूड व जंक फूड ओमेगा-6 से भरपूर होते हैं। बाजार में उपलब्ध सभी रिफाइंड खाद्य तेल भी ओमेगा- 6 फैटी एसिड से भरपूर होते हैं। इसके फलस्वरूप आवश्यक वसा अम्लों का अनुपात बिगड़ गया है तथा हमारा शरीर क्रोनिक इन्फ्लेमेशन का शिकार हो गया हैं और धीरे-धीरे इस आग की भट्टी में सुलग रहा हैं।
इस क्रोनिक इन्फ्लेमेशन के कारण हम ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, स्ट्रोक, डायबिटीक, मोटापा, आर्थाइटिस, डिप्रेशन, अस्थमा, कैंसर आदि रोगों का शिकार हो रहे हैं। ओमेगा-3 की यह कमी हम 30-50 ग्राम अलसी से पूरी कर सकते हैं। सुपरमेन - लिगनेन अत्यंत महत्वपूर्ण सात सितारा पोषक तत्व है, जिसका पृथ्वी पर सबसे बड़ा स्त्रोत अलसी हैं। लिगनेन दो प्रकार के होते हैं। 1- वान्स्प्रतिक लिगनेन और 2- स्तनधारियों में पाए जाने वाले को आइसोलेरिसिरेजिनोल लिगनेन सी एंट्रोडियोल ।
जब हम वान्स्प्रतिक लिगनेन सेवन करते हैं तो आंतो में विद्यमान कीटाणु इनको स्तनधारी लिगनेन क्रमश: एंट्रोडियोल और एंट्रोलेक्टोन में परिवर्तित कर देते हैं। वान्स्प्रतिक लिगनेन विटामिन-ई से लगभग पाँच गुना ज्यादा शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट हैं। लिग्नें कोलेस्ट्रोल कम करता है और ब्लड शुगर नियंत्रित रखता हैं। लिगनेन एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल,एंटी फंगल और कैंसर रोधी हैं और इम्युनिटी बढ़ाता हैं।
चिल्ड्स होस्पिटल मेडिकल सेंटर सिनसिनाटी के आचार्य डॉ. केनेथ शेसेल ई.एच.डी. ने पहली बार यह पता लगाया था की लिगनेन का सबसे बड़ा स्त्रोत अलसी हैं। लिगनेन वनस्पति जगत में पाए जाने वाला महत्वपूर्ण पौषक तत्व हैं जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वान्स्प्रतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे रजस्वला, गर्भवस्था, प्रसव, मातृत्व और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्सका समुचित संतुलन रखता हैं। लिगनेन मासिक धर्म को नियमित और संतुलित रखता हैं।
लिगनेन स्टर्लिटी और हेबीचुअल एबोर्शन का प्राकृतिक उपचार हैं। लिगनेन दुग्धवर्धक हैं। यदि माँ अलसी का सेवन करती हैं तो उसके दूध में पर्याप्त ओमेगा-3 रहता है और बच्चा अद्धिक बुद्धिमान व स्वस्थ पैदा होता हैं। कई महिलाएं अक्सर प्रसव के बाद मोटापे का शिकार बन जाती हैं,पर लिगनेन ऐसा होने नहीं देते।
रजोवनिवृत्ति के बाद ईस्ट्रोजन का बनना कम हो जाने के कारण महिलाओं में हॉट फ्लेशेज ऑस्टियोप्रोसिस ड्राई वेजाइना जैसी कई परेशानियां होती हैं, जिनमें यह बहुत राहत देता हैं। यदि शरीर में प्राकृतिक इस्ट्रोजन का स्त्राव अधिक हो, जैसे स्तन कैंसर, तो यह कोशिकाओं के इस्ट्रोजन रिसेप्टर्स से ईस्ट्रोजन को हटाकर स्वयं रिसेप्टर्स से चिपक कर ईस्ट्रोजन के प्रभाव को कम करता हैं और स्तन कैंसर से बचाव करता है। लिगनेन पर अमेरिका की राष्ट्रीय कैंसर संस्थान भी शोध कर रही हैं और इस नतीजे पर पहुँचा हैं लिगनेन कैंसररोधी है।
लिगनेन हमें प्रोस्टेट, बच्चेदानी, स्तन, आंत, त्वचा आदि के कैंसर से बचाता हैं। एड्स रिसर्च असिस्टेंस इंस्टीटयूट सन्न 2002 से एड्स के रोगियों पर लिगनेन के प्रभावों पर शोध कर रही हैं और आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं। Aral के निर्देशक डॉ. डेनियल देव्ज कहते हैं की लिगनेन एड्स का सस्ता, सरल और कारगर उपचार साबित हो चुका है अलसी हमारे ह्रदयरोग जरासंघ है तो अलसी है भीमसेन - अलसी हमारे रक्तचाप को संतुलित रखती हैं। अलसी हमारे में अच्छे कोलेस्ट्रोल की मात्रा को बढ़ाती हैं
और खराब कोलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करती हैं। अलसी रक्त को पतला बनाये रखती हैं और दिल की धमनियों को स्पीपर की तरह साफ करती हैं। यानि अलसी प्राकृतिक एस्प्र्रिन की तरह काम करती हैं। इस तरह अलसी दिल की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है और ह्रदयघात व स्ट्रोक जैसी बीमारियों से बचाव करती हैं। मतलब अलसी हार्ट अटेक के कारण पर अटैक करती हैं। अलसी सेवन करने वालों को दिल की बीमारियों के कारण अकस्मात मृत्यु नहीं होती।
डायबटीज और मोटापे पर अलसी के चमत्कार - अलसी ब्लड शुगर नियंत्रित रखती हैं और डायबिटीज के शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावो को कम करती हैं
चिकत्सक डायबिटीज के रोगी को कम शुगर और ज्यादा फाइबर लेने की सलाह देते हैं। अलसी में फाइबर की मात्रा अधिक होती हैं। इस कारण अलसी सेवन से लम्बे समय तक पेट भरा हुआ रहता हैं, देर तक भूख नहीं लगती। डायबटीज के रोगियों के लिए अलसी एक आदर्श और अमृत तुल्य भोजन हैं, क्योंकि यह जीरो कार्ब भोजन हैं। चौकियेगा नहीं, ये सत्य हैं, 14 ग्राम अलसी में 2.56 ग्राम प्रोटीन, 5.90 ग्राम फैट, 0.97 ग्राम पानी और 0. ग्राम राख होती हैं।
डायबिटीज में 20 ग्राम पिसी अलसी सुबह और 20 ग्राम शाम को आटे में मिलाकर रोटियाँ ब्नाआक्र खाएं। और पीसते समय यह ध्यान रखें कि अलसी गर्म न हो गर्म होने पर अलसी तेल छोड़ने लगती है इससे अलसी के (Component) औषधीय गुण नष्ट हो जाते है। इस लिए अलसी को पीसते समय रोक - रोक कर पिसे ।
(1) रोज 30 एमएल अलसी का कोल्डप्रेस्ड ऑयल को सुबह नाश्ते में पनीर या दही में मिलाकर सेवन करें
(2) रिफाइंड तेल तथा वनस्पति बिलकुल बंद और बाजार में बने व्यंजनों से पूर्ण परहेज करें
(3) बेहतर हो कि आप छोटे एक्सप्रेलर में अपना तेल खुद बनाएं
(4) इस उपचार से धीरे-धीरे दवाइयां बंद हो जाती हैं और इंसुलिन भी छुट जाती हैं।
कब्जासुर का वध करती है अलसी में 27 प्रतिशत घुलनशील और अघुलनशील दोनों ही तरह के फायबर होते हैं, अत: अलसी कब्जी,पाइल्स, बवासीर, फिष्चुला, अल्सरेटिव, कोलाइटीस और आई.बी.एस. के रोगियों को बहुत राहत देती हैं। कब्जी में अलसी के सेवन से पहले ही दिन से राहत मिल जाती हैं। हाल ही में हुई शोध से पता चला हैं कि कब्जी के लिए यह अलसी इसबगोल की भुस्सी से ज्यादा लाभदायक हैं। अलसी पित्त की थैली में पथरी नहीं बनने देती और यदि पथरियां बन भी चुकी हैं तो छोटी पथरियां तो घुलने लगती हैं।
अलसी की माया से सुंदर बने काया - यदि आप त्वचा, नाख़ून और बालों की सभी समस्याओं का एक शब्द में समाधान चाहते हो तो मेरा उत्तर हैं "ओमेगा" 3 । मानव त्वचा को सबसे ज्यादा नुकसान फ्री रेडीकल्स से होता है। हवा में मौजूद फ्री-रेडिकल्स या ऑक्सीडेंटस त्वचा की कोलेजन कोशिकाओं से इलेक्ट्रोन चुरा लेते हैं। परिणाम स्वरूप त्वचा में महीन रेखाएं बन जाती हैं जो धीरे-धीरे झुरियों व झाइयों का रूप ले लेती हैं, त्वचा में रूखापन आ जाता हैं और त्वचा वृद्ध सी लगने लगती हैं।
अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल,नम, बेदाग़ व गोरा बनाते हैं जड़ों को भरपूर पोषण देकर बालों को स्वस्थ, चमकदार व मजबूत बनाती हैं। अलसी एक उतकृष्ट भोज्य सौन्दर्य प्रसाघन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाती हैं। अलसी त्वचा की बीमारियों जैसे मुहांसे, एग्जिमा, दाद, खाज, सूखी त्वचा, खुजली, सोरायसिस, ल्युप्रस, बालों का सूखा व पतला होना, बाल झड़ना आदि में काफी असरकारक हैं। अलसी का सेवन बिना गरम किया करना चाहिये
अलसी सेवन करने वाली स्त्रियों के बालों में न कभी रुसी होती हैं और न ही वे झड़ते हैं।अलसी नाखूनों को स्वस्थ व सुंदर आकार प्रदान करती हैं। अलसी तुक्त भोजन खाने व इसके तेल की मालिश से त्वचा के दाग धब्बे, झाइयाँ व झुरियां दूर होती हैं। अलसी आपको युवा बनाए रखती हैं। आप अपनी उम्र से काफी छोटे दिखते हैं। धन्यवाद