हाथी पांव (Filarial disease) को ठीक करने के 4 बेहतरीन उपाय

हाथी पांव (Filarial disease) को ठीक करने के 4 बेहतरीन उपाय

हाथी पांव (Filarial disease)की समस्या-

विश्व स्वास्थ्य संगठन who के अनुसार भारत में 65 करोड़ लोगों पर हाथी पांव यानि फाइलेरिया रोग(Filarial disease) का खतरा मंडरा रहा है। भारत के 21 राज्यों और केंद्र शासित राज्यों के कुल 256 जिले हाथी पांव से प्रभावित हैं। हाथी पांव विश्व की दूसरे नंबर की ऐसी बीमारी है जो बड़े पैमाने पर लोगों को अपंग बना रही है। विश्व के 52 देशों में लगभग 85.6 करोड़ लोग हाथी पांव की समस्या से ग्रसित है। लिंफेटिक फाइलेरियासिस को ही आम बोलचाल की भाषा में फाइलेरिया या हाथी पांव भी कहा जाता है।

हाथी पांव एक गंभीर बीमारी है। इससे व्यक्ति की मृत्यु तो नहीं होती पर यह बीमारी जीवित व्यक्ति भी मृत समान बना देती है इस बीमारी को फाइलेरिया के नाम जाना जाता है। अगर वक्त रहते इस बीमारी का पता चल जाएँ तो इस बीमारी का इलाज संभव हो सकता है।
हाथी पांव फैलने के कारण-
हाथी पांव मच्छरों द्वारा फैलता है, विशेषकर परजीवी क्यूलैक्स फैंटीगंस नामक मादा मच्छर के कारण फैलता है। जब यह मच्छर किसी हाथी पांव से ग्रसित व्यक्ति को काट लेटा है और फिर यह जब दुसरे स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह व्यक्ति भी संक्रमित हो जाता है और हाथी पांव के विषाणु खून के जरिये उसके शरीर में प्रवेश कर उसे भी ग्रसित कर देते है लेकिन अधिकतर इन्फेक्शन का पता ही नहीं चलता है क्योंकि यह लम्बे समय तक शुसुप्ता अवस्था में रहते है इसके चलते इस बीमारी का कोई कारगर इलाज नहीं है। संक्रमण अज्ञात या मौन रहते हैं और लंबे समय बाद इनका पता चल पाता है। इस बीमारी का कारगर इलाज नहीं है।

यह बीमारी उन जगहों के निवासियों में अधिक होती है,जिन जगहों में जल का प्रभाव अधिक हो, जहां बरसात अधिक समय तक अधिक मात्रा में होती हो, जहाँ शीतलता अधिक रहती हो,जहां के जलाशय गन्दे हो वहां पर इस बीमारी का खतरा अधिक होता है। यह बीमारी एक फाइलेरिया नामक कीटाणु के कारण होती है इसलिए इस बीमारी को फाइलेरिया भी कहते हैं। भारत में यह बीमारी मुख्यतः बिहार, बंगाल, पूर्वी प्रान्तों, केरल और मलाबार प्रदेशों में अधिकतर होती पाई गई है

आयुर्वेद ने इसके तीन प्रकार बताए हैं-
आयुर्वेद में हाथी पांव को श्लीपद रोग भी कहा गया है।
वातज श्लीपद - इसमें कुपित वात के प्रभाव से त्वचा ड्राई, मटमैली, काली और फट जाती है, बहुत तेज दर्द होता है, और तेज बुखार भी हो सकता है।
पित्तज श्लीपद- इसमें कुपित पित्त का प्रभाव से पीड़ित की त्वचा पीली व सफेद हो जाती है, नरम रहती है और थोडा-थोडा बुखार भी होता रहता है।
कफज श्लीपद - इसमें कुपित कफ के प्रभाव त्वचा चिकनी, पीली, सफेद हो जाती है, पैर कठोर और भारी हो जाता है। और बुखार हो भी सकता है नहीं भी होता है
इन तीन प्रकारों के अलावा एक प्रकार और होता है, जिसे 'असाध्य श्लीपद' कहते हैं। इसमें बीमारी दो साल से अधिक पुरानी हो गयी हो और यह बहुत बढ़ चुकी हो इसमें से खून का स्त्राव होने लगे तो ऐसी स्थिति में इसे 'असाध्य श्लीपद' यानी लाइलाज कहा जाएगा, ऐसा आयुर्वेद में कहा गया है।

हाथी पांव के लक्षण-
सामान्यतौर पर हाथीपांव के कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते, लेकिन बुखार आना, शरीर में खुजली होना और पुरुषों के जननांग के आस-पास दर्द होना व सूजन आ जाना आदि लक्षण दिखाई देते है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन आ जाना, पैरों का हाथी के पांव की तरह मोटा हो जाना अंडकोषों की सूजन आ जाना भी हाथी पांव के लक्षण हैं। वैसे तो हाथी पांव का इन्फेक्शन बचपन में ही हो जाता है, लेकिन कई वर्षो तक इसके लक्षण नजर नहीं आते। हाथी पांव न सिर्फ व्यक्ति अपंग बना देती है बल्कि इससे पीड़ित की मानसिक स्थिति भी बिगड़ सकती है या बुरी तरह प्रभावित हो सकती है।

हाथी पांव से बचाव के उपाय-
हाथी पांव चूंकि मच्छर के काटने से फैलता है, इसलिए अच्छा होगा की आप मच्छरों से अपना बचाव करें। इसके लिए घर के आस-पास व अंदर साफ-सफाई रखनी है।घर के आस-पास पानी जमा नहीं होने दें और कीटनाशक का छिड़काव समय-समय पर करते रहे। हमेशा पूरी बाजू के कपड़े पहने।रात को सोने से पहले हाथों और पैरों पर सरसों या नीम का तेल लगायें।
मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करें।

घरेलू उपचार

1. धतूरा, अरण्डी की जड़, निर्गुन्डी, सफेद पुनर्नवा, सहिजन की छाल और सरसों, इन सबको समान मात्रा में लेकर पिस लें और पानी के साथ मिलाकर गाढ़ा लेप तैयार कर लें। इस लेप को हाथी पांव से प्रभावित अंग पर रोजाना नियमित रूप से लगाएं। यह लेप लगाने से धीरे-धीरे यह बीमारी दूर हो जाती है।

2.चित्रक की जड़, देवदार, सफेद सरसों, सहिजन की जड़ की छाल, आदि को समान मात्रा में लेकर गोमूत्र के साथ पीसकर लेप तैयार कर लें इस लेप को प्रभावित अंग पर लगाने धीरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है।

3.अरण्डी के तेल में बड़ी हरड़ को भून लें फिर इसे इन्हें गोमूत्र में डालकर रखें। इसमें से एक-एक हरड़ सुबह-शाम खूब चबा-चबाकर खाएं इससे यह बीमारी धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी। इसका उपयोग उपर बताये लेप के साथ भी कर सकते है।

4. हल्दी, आंवला, अमरबेल, सरसों, लटजीरा(आंधीजाड़ा), रसोई घर की दीवारों पर जमा हुआ धुआं, सबको समान मात्रा में मिलाकर पीस लें, इस लेप को हाथी पांव पर लगाएं। यह उत्तम गुणकारी लेप है।
इन उपायों में से कोई भी एक लेप और खाने की औषधियों को संयमपूर्वक सेवन करने से इस बीमारी को मिटाया जा सकता है।
परहेज- दूध से बने पदार्थ,गुड़, मांस, अंडे तथा भारी गरिष्ट व बासे पदार्थों का सेवन नहीं करें। आलस्य करने और देर तक सोते रहने से तथा दिन में सोने से बचें।

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