Heart failure

हार्ट फेलियर(Heart failure) क्यों होता है

हार्ट फेलियर(Heart failure) क्यों होता है -

कल्पना करें की आपका दिल एक पूरे राष्ट्र की आपूर्ति तन्त्र का केन्द्रीय भंडारगृह हैं। आपका रक्त ट्रकों का दल हैं, जो शरीर के हर कोने को महत्वपूर्ण आपूर्ति ऑक्सीजन तथा पोषक तत्व प्रदान करता हैं और वहां से व्यर्थ पदार्थ को निकालता हैं। आपकी धमनियां और नसें ऐसे सुपरहाइवे तथा गौण सड़कें है जो शहरों तथा कस्बों (कोशिकाओं तथा उत्तकों) को राह में जोड़ती हैं। जब यह तन्त्र अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करता हैं, तो प्रतिदिन माल से भरे वाहन एक स्थान से पूरी गति से निकलते रहते हैं। जब उनका माल ठिकाने पर पहुंच जाता हैं तो वे झट से दूसरा भार लादने के लिए लौट आते हैं।
जरा एक क्षण के लिए कल्पना करें कि अगर यह आपूर्ति तन्त्र बंद हो जाए तो क्या होगा ? माल से भरे ट्रक यु ही खड़े रह जायेंगे। वाहन सुदूर स्थानों पर खड़े करने होंगे वे नया माल नहीं ले सकेंगे। राह में पड़ने वाले ग्राहक ताज़ी आपूर्ति के अभाव में संघर्ष करेंगे। कुल मिला कर, हार्ट फेल होने के दौरान ऐसा ही होता हैं। रोग, चोट तथा सालों की टूट- फूट आदि दिल की पंपिंग क्षमता को प्रभावित करते हैं। जब कभी ताकतवर रही ये मांसपेशी, प्रभावी रक्तसंचार के लिए संघर्ष करती हैं तो इस दौरान लगातार कई तरह के शारीरिक बदलाव सामने आते हैं।
हालांकि ''हार्ट फेल'' शब्द सुनने से ऐसा लगता हैं मानो कोई भयावह दृश्य आँखों के सामने आ गया हो। ऐसा लगता हैं कि अचानक ही हार्ट शांत हो गया और उसने काम करना बंद कर दिया। परन्तु इस हार्ट फेल को दिल की पंपिंग क्षमता में लगातार आने वाली कमी से जोड़ा जा सकता हैं। यह कोई रोग नहीं हैं। इसकी बजाए यह विविध शारीरिक लक्षणों का जोड़ हैं। मेडिकल भाषा में, शिकायतों का यह संग्रह 'सिंड्रोम' के नाम से जाना जाता हैं। जिसके दौरान दिल रक्त को सुचारू रूप से प्रवाहित करने की अपनी क्षमता खो देता हैं। आपका दिल दिन में अंदाजन 100,000 बार सिकुड़ता और फैलता हैं। आप अधिकतर इस दिल के बिना रुके लगातार चलने वाले रिदम के बारे में परवाह तक नहीं करते। जब तक कुछ गलत नहीं होता, इस और आपका ध्यान ही नहीं जाता है। आपका कार्डियोवास्कुलर तन्त्र चैनलों के जटिल नेटवर्क से बना हैं जो ऑक्सीजन, पोषक तथा व्यर्थ पदार्थो का यहाँ से वहाँ, आपके उत्तकों तथा अंगों तक लाते-ले-जाते हैं। आपका दिल इस तन्त्र के बीच में स्थित हैं। दो वयस्क मुट्ठियों के आकार की यह मांसपेशी प्रतिदिन 2000 गैलन रक्त का संचरण करती हैं। आपके दिल से रक्त नलिकाओं का एक ऐसा जाल निकल रहा हैं जो शरीर के सुदूर कोनों तक जाता हैं। यदि इन्हें एक के बाद एक बिछा दिया जाए तो यह साठ हजार मील तक जाती हैं। जो नलिकाएं दिल से ऑक्सीजन युक्त रक्त ले जाती हैं, उन्हें धमनियां कहते हैं। नसें ऑक्सीजन रहित रक्त को फेफड़ों तथा ह्रदय तक वापिस लाती हैं।

कार्डियोवास्कुलर तन्त्र के सभी अंग - इसके चैंबर, इलेक्ट्रिक संकेत केंद्र, वाल्व तथा रक्त नलिकाएं - एक साथ मिलकर काम करते हैं ताकि पूरे शरीर में रक्त का प्रवाह सुचारू हो सके। इस तरह के जटिल संगठन के लिए उचित संयोजन तथा समय की आवश्यकता होती हैं। यदि इस क्रम का कोई भी हिस्सा छूट जाए तो पूरे तन्त्र की कार्यवाही बाधित हो जाती हैं। दिल के रिलैक्स (डायस्टोलिक फेस) होने पर उपरी चैंबरों में रक्त भर जाता हैं। फिर उसकी दीवारें संकुचित होती हैं, वाल्व के रास्ते रक्त को निचले रिलैक्स्ड चेंबरों में भेजती हैं। संकुचन के दौरान वाल्व कस कर बंद हो जाते हैं ताकि रक्त विपरीत दिशा में न जा सके। जब वैट्रीकल भर जाते हैं तो दिल का दूसरा चरण (सिस्टोलिक फेस) आरंभ होता हैं जिसमें वैट्रीकल की दीवारें पूरी ताकत से सिकुड़ती हैं और रक्त ह्रदय से निकल कर धमनियों तक पहुंच जाता हैं। यह सारा कार्य दाएं कक्ष की दीवारों की कोशिकाओं का एक समूह करता हैं जिसे साइनोआर्टियल नोड (एस. ए. नोड) कहते हैं। यह एस. ए नोड उन छोटे इलैक्ट्रिकल आवेगों को छोड़ती हैं जो दिल के चैंबरों को संकेत देते हैं कि उन्हें कब सिकुड़ना हैं। चूँकि एस. ए नोड ही ह्रदय की गति और धड़कन को तय करता हैं इसलिए इसे कभी- कभी आपका प्राकृतिक पेसमेकर भी कहते हैं।

हार्ट की कार्यविधि को समझने के लिए, कल्पना करें कि शरीर से अशुद्ध रक्त (डीऑक्सीजीनेटिड ब्लड) चैंबर - 1 (राइट आर्टियम) में प्रवेश करता हैं और डोर - 1 (ट्राईकसपिड वाल्व) के माध्यम से चैंबर - 1 की दीवारों के पंपिंग एक्शन के कारण चैंबर 2 (राइट वैट्रीकल) में जाता हैं। चैंबर - 2 से ऑक्सीजन रहित रक्त, डोर- 2 (पल्मोनरी वाल्व) के रास्ते फेफड़ों की और धकेला जाता हैं, जहाँ ये ऑक्सीजन से भर जाता हैं, (co2 का स्थान ऑक्सीजन ले लेती हैं)। अब ऑक्सीजन से भरपूर रक्त, डोर-3 (मीट्रल वाल्व) के माध्यम से फेफड़ों से चैंबर-3 (लेफ्ट आर्टियम) तथा चैंबर-4 (लेफ्ट वैट्रीकल) में प्रवेश करता हैं,जिनमें चैंबर की दीवारों का पंपिंग एक्शन शामिल होता हैं। यहीं से डोर- 4 (एओर्टिक वाल्व) के माध्यम से यह रक्त शरीर में पुन: लौटता हैं ताकि शरीर को ऑक्सीजन तथा पोषक पदार्थ प्रदान किए जा सकें।

हार्ट फेल होने पर क्या होता हैं ?
हार्ट फेल्यिर हार्ट अटैक से हुई क्षति, क्षतिग्रस्त वाल्व, किसी संक्रमण या रोग के कारण हो सकता हैं। कई बार यह जमावयुक्त रक्त नलिकाओं तथा उच्चरक्तचाप के विरुद्ध संघर्ष के कारण होता हैं। हार्ट फेल्यिर धीरे-धीरे आपके दिल की पंप करने की क्षमता को धीमा कर देता हैं। नतीजन आपके दिल और शरीर से रक्त का प्रवाह घटता हैं और आपकी कोशिकाएं ताज़ी ऑक्सीजन व पोषक तत्वों के लिए तरसने लगती हैं। हालांकि हार्ट फेल विकसित होने के दौरान कई बार महीनों और सालों तक लक्षण सामने नहीं आते। इसकी दुर्बल अवस्था से पार पाने के लिए, दिल में ढांचे से जुड़े बदलाव आ जाते हैं जिसे कार्डियक रिमांडलिंग कहते हैं। अधिक दबाव के साथ रक्त प्रवाहित करने के प्रयास में बांया हार्ट चैंबर मोटा हो सकता हैं या गोल आकार ले सकता हैं ताकि उसमें अधिक मात्रा में रक्त टिक सके। जब दिल अपनी पूरी कार्यक्षमता बनाए रखने के लिए मेहनत कर रहा होता हैं तो अन्य शारीरिक प्रक्रियाएं भी इसकी मदद के लिए आ जाती हैं। संकट के समय दिल को तेजी से धड़कने का संकेत देने वाले तनाव हार्मोंनो के स्तरों में वृद्धि हो जाती हैं। रक्त नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं ताकि रक्तचाप को स्थिर रख सकें,
हालांकि उस समय कम मात्रा में रक्त पंप हो रहा हैं। संचरण भी त्वचा व अन्य कम महत्वपूर्ण उत्तकों से हट जाता हैं ताकि मस्तिष्क व दिल को ऑक्सीजन व पोषक तत्वों की भरपूर आपूर्ति मिलती रहे। इसके बदले, किडनी की और से घटा रक्त प्रवाह, ऐसे हार्मोनों को सक्रिय करता हैं जो शरीर को सोडियम व द्रव्य बनाए रखने का संकेत देते हैं ताकि संचरित रक्त की कुल मात्रा को सप्लीमेंट किया जा सके।
जल्दी ही इन अस्थायी बदलावों के कारण हार्ट अपने उत्तकों को रक्त के एक सामान्य स्तर की पूर्ति करने में सक्षम हो जाता हैं, परन्तु ये समाधान अस्थायी ही होता हैं। अंततः ये परिवर्तन ह्रदय के पतन में वृद्धि कर देते हैं। दिल का बदला हुआ आकार जब अधिक ऑक्सीजन की खपत करने लगता हैं तो इससे मांसपेशी पर अतिरिक्त दबाव पड़ता हैं। अंततः इस बढ़ी हुई पंपिंग से होने वाले लाभ भी समाप्त हो जाते हैं। दिल की तेज धड़कन और संकरी रक्त नलिकाएं दिल के कार्य भार को बढ़ा देते हैं तथा बढ़ी हुई कार्यक्षमता भी किसी काम नहीं आती।
हार्ट फेल होने के लक्षण: इसके कारण शरीर में प्रमुख रूप से दो बाधाएं आती हैं:
1) उत्तकों तथा अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती है
2) फेफड़ों तथा उत्तकों में द्रव्य निर्मित हो जाता हैं। इनमें से प्रत्येक समस्या के कारण कई तरह की शिकायतें सामने आ जाती हैं। यदि आप हार्ट फेल्यिर से अपरिचित हैं तो आप आसानी से इन लक्षणों को कुछ और समझ कर टाल सकते हैं। डॉक्टर व रोगी अक्सर हार्ट फेल होने के आरंभिक लक्षणों को शारीरिक फिटनेस में कमी,अधिक वजन या बुढ़ापे की निशानी समझ कर टाल देते हैं। क्लीनिकल तस्वीर भी इस तथ्य से धुंधला जाती हैं कि ये लक्षण
आ-जा सकते हैं और रोग के दौरान कभी बदतर,तो कभी बेहतर भी हो सकते हैं।

हार्ट फेल होने के कारण:

Heart failure

जब कार्डियक मांसपेशी अपना काम करना बंद कर देती हैं तो हार्ट काम करना बंद कर देता हैं परन्तु इस अंत तक आने के लिए अनेक परिस्थितियाँ उत्तरदायी हो सकती हैं। कई बार हार्ट के फेल होने का कारण, मांसपेशी के मैकेनिकल दोषों में ही छिपा होता हैं,जो कि जन्म से ही या जीवन में बाद की घटनाओं में सामने आ सकता हैं। कई बार दिल पर अधिक भार पड़ने से भी उसकी दशा दयनीय हो जाती हैं। वैसे तो हार्ट के काम करना बंद करने के पीछे अनेक कारण उपस्थित हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं -
कोरोनरी आटरी रोग: अनुमानत: हार्ट फेल होने के तीन मामलों में से दो में कोरोनरी आर्टरी रोग ही पाए जाते हैं। इनमें ह्रदय की मांसपेशी कोशिकाओं को आपूर्ति देने वाली आर्टरीज संकरी हो जाती हैं। जब धमनियों की भीतरी दीवारों पर कोलेस्ट्रोल युक्त जमाव हो जाता हैं तो रक्त के प्रवाह के लिए पर्याप्त स्थान नहीं रहता। पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने से ह्रदय मांसपेशी के लिए रक्त का अभाव हो जाता हैं इसी के कारण हार्ट अटैक से ह्रदय मांसपेशी को नुकसान होता हैं।
हार्ट फेल होने के लक्षण - मानसिक भ्रम - मष्तिष्क को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिलती।
फेफड़ों का संक्रमण - अत्यधिक द्रव्य ह्रदय से फेफड़ों में चला जाता हैं।
वजन बढ़ना - अधिक द्रव्य बनने के कारण शरीर का भार बढ़ जाता हैं।
सांस फूलना - फेफड़ों में द्रव्य भरने से सांस लेने में दिक्कत होती हैं, खासतौर पर जब मेहनत वाला काम करते हैं या लेटते हैं।
थकान - काम करने वाली मांसपेशियों को रक्त की अधिक आपूर्ति नहीं हो पाती।
खासी व छींके - फेफड़ों में द्रव्य भरने से ये समस्या भी हो सकती हैं।
त्वचा में बदलाव - रक्त का प्रवाह महत्वपूर्ण अंगों को होने लगता हैं जिससे त्वचा ठंडी व् हल्के नीले रंग की दिखती हैं।
भूख न लगना - लीवर व पेट में द्रव्य एकत्र होने से जी मितलाता हैं तथा भूख नहीं लगती। सूजन (पैर, टांगे तथा पेट का निचला हिस्सा) उत्तको में अत्यधिक द्रव्य भर जाता हैं।
इन लक्षणों को मुख्य तौर पर दो भागों में बाँट सकते हैं: जो ऑक्सीजन की कमी से पैदा होते हैं या जो द्रव्य की अधिकता से होते हैं। पहली प्रकार के लक्षण तब उत्पन्न होते हैं जब दिल शरीर के सभी उत्तको को ऑक्सीजन पहुँचाने के लिए पर्याप्त मात्रा में रक्त पंप नहीं कर पाता। दूसरे प्रकार के लक्षण तब पैदा होते हैं जब किडनी के लिए रक्त की आपूर्ति घटती हैं,जो शरीर को द्रव्य तथा सोडियम एकत्र करने का संकेत देती है तथा ब्लड वाल्यूम के स्तर में वृद्धि कर देती हैं। इससे विभिन्न उत्तकों तथा अंगों में द्रव्य भर जाता हैं।
मृत ह्रदय उत्तक - जब कभी धमनियों के भीतर का वसायुक्त जमाव फट जाता हैं तो रक्त एक थक्के का रूप ले लेता हैं, यह कुछ ऐसा ही हैं जैसे आपकी अंगुली कटने पर शरीर प्रतिक्रिया देता हैं। यदि किसी ह्रदय मांसपेशी को आपूर्ति करने वाली धमनी में थक्के का जमाव हो जाए तो इससे उस उत्तक के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद हो सकती हैं जो उस थक्के से परे आ रहा हैं। इस तरह ह्रदय मांसपेशी की और रक्त के प्रवाह को एकदम बंद होना मायोकार्डियल इंफार्कशनया हार्ट अटैक कहलाता हैं। यदि दिल का दौरा पड़ने के बाद रोगी की प्राणरक्षा हो जाए,तो भी दिल के उत्तकों को नुकसान हो सकता हैं या वे मृत हो सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता हैं कि रक्त के प्रवाह में कितनी देर की बाधा रही। हो सकता हैं कि क्षतिग्रस्त उत्तक रक्त के दौरे के प्रवाह को न झेल सकें। यही वजह हैं कि जो लोग हार्ट अटैक से बच जाते हैं एक ही साल में उनका हार्ट फेल हो जाता हैं।
हाई ब्लडप्रेशर (हाइपरटेंशन) रक्त धमनियों में रक्त कितने दबाव से दौड़ रहा हैं, उसका माप ही रक्तचाप कहलाती हैं। दबाव जितना अधिक होगा, ह्रदय को उतनी ही मेहनत से काम करना होगा। जिस तरह भार उठाने से आपकी बाजुओं की मांसपेशिया उभर आती हैं, इसी तरह ह्रदय मांसपेशी भी अधिक प्रतिरोध के कारण मोटी हो जाती हैं। हालांकि यह उभर की बजाए हानि ही अधिक करता हैं। मोटी मांसपेशी को अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती हैं। यह संकुचन के दौरान पूरी तरह से विश्राम भी नहीं ले सकती। नतीजा यह होता हैं कि यह पूरी क्षमता से काम करना बंद कर देती हैं। हार्ट फेल होने के 75% मामलों में उच्चरक्तचाप का भी हाथ होता हैं।
कार्डियोमायोपैथी: यह एक अंब्रेला टर्म हैं जो उन रोगों को दर्शाती हैं जो ह्रदय मांसपेशी को नुकसान पहुंचने से होते हैं।
डाईलेटिड कार्डियोमायोपैथी: इस तरह के रोग में धमनियों की दीवारें फैलाव के कारण पतली हो जाती हैं। यह इस अवस्था का सबसे सामान्य प्रकार हैं। यह वायरल या बैक्टीरिया संक्रमण अथवा अधिक समय तक शराब, कोकेन या दूसरे विषैले पदार्थ लेने से भी हो सकता हैं। यह भी साक्ष्य मिले हैं कि यह डिसऑर्डर कुछ ख़ास क्रोमोसोम दोषों के कारण अनुवांशिक हो सकता हैं।
हाइपरट्रोफिक कार्डियोमायोपैथी: यह अनुवांशिक डिसऑर्डर प्राय:किशोरावस्था में होता हैं और महिलाओं की तुलना में, पुरषों में अधिक पाया जाता हैं। इससे धमनियों की दीवारें अपेक्षाकृत मोटी हो जाती हैं।
रेस्ट्रिकटिव कार्दियोमायोपैथी: इस अवस्था में ह्रदय मांसपेशी में जकड़न आ जाती हैं जो पूरी तरह से हार्ट चैंबर को रक्त से भरने नहीं देती। प्रारंभ में ह्रदय मांसपेशी का पंपिंग चरण अप्रभावित रहता हैं। कभी-कभी यह कार्डियक कोशिकाओं में आयरन या कुछ प्रकार के प्रोटीन के जमाव के कारण भी हो जाता हैं। दूसरे मामलों में इसका स्त्रोत अज्ञात हैं।
दिल के वाल्व को नुकसान: जो दिल का वाल्व प्रभावी तरीके से खुलता व बंद नहीं होता, वह दिल पर अतिरिक्त दबाव डालता हैं। रोग, संक्रमण, दिल का दौरा तथा बुढ़ापा आदि भी वाल्व को नुकसान पहुँचा सकते हैं। जब कोई वाल्व संकरा होता हैं या स्टेनोटिक होता हैं तो यह पूरी तरह से नहीं खुलता और आर्टरीज से रक्त प्रावाहित नहीं हो पाता। इससे दिल पर दबाव पड़ता हैं। अगर वाल्व में रिसाव हो तो रक्त दिल की धड़कन के दौरान वापिस चला जाता हैं। और इसी वजह से, दिल को रक्त को आगे धकेलने के लिए दोहरी मेहनत करनी पड़ती हैं।
मधुमेह - समय के साथ अनियंत्रित मधुमेह दिल की मांसपेशी को कमजोर बना देता हैं जिससे कोरोनरी धमनी रोग होते हैं जो कि हार्ट फेल होने का प्रमुख कारण हैं। इससे किडनी को भी नुकसान होता हैं। हार्ट की रिदम में अस्तव्यस्तता - एक असामान्य रूप से तेज हार्टबीज दिल के बाएं वैट्रीकल में ढांचे से जुड़े बदलाव ला सकती हैं। इससे ह्रदय रोग होने की संभावना में वृद्धि होती हैं। इस तरह अब तक आप हार्ट फेल्यिर मैकेनिज्म को पूरी तरह से जान चुके हैं।

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