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भोजन के अंत में पानी पीना जहर पीने जैसा है! पानी कब और कितना और कैसे पिएं? (how to drink water)

भोजन के अंत में पानी पीना जहर पीने जैसा है! पानी कब और कितना और कैसे पिएं? (how to drink water)

जैसे ही हम भोजन का पहला टुकड़ा मुँह में डालते है तो हमारे पेट के जठर भाग में अग्नि प्रदीप्त होती है। उसी अग्नि के प्रभाव में खाना पचता है। यदि हम खाने के तुरंत बाद पानी पीते है, तो खाना पचाने के लिए पैदा हुई अग्नि धीमी पड़ जाती है, जिसके कारण खाना अच्छी तरह नहीं पच पाता व सड़ने लगता है।
इससे अनेक बीमारियाँ पैदा होती है। जैसे ही हम भोजन पेट में डालते है। पेट तुरंत भोजन को पचाने के लिए अम्ल व पाचक रस छोड़ता है। यदि हम भोजन के बाद पानी, काफी, चाय, आइसक्रीम, कोल्डड्रिंक आदि पीते है तो पाचन प्रक्रिया रुक जाती है जिसके कारण :-
1.पेट का अम्ल इस पानी के कारण पतला हो जायेगा।यदि पाचक अम्ल को पानी पीकर पतला न किया जाए तो यह भोजन के द्वारा हमारे पेट में पहुंचकर बीमारी पैदा करने वाले रोगाणुओं को मारता है।
10 लाख की संख्या तक में भी यदि ये रोगाणु पेट में पहुंच जाएँ तो यह उन को मारने की क्षमता रखता है। लेकिन पानी पी लेने के कारण पाचक अम्ल की यह क्षमता कम हो जाती है व बीमारी पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है।
2.यह पानी हमारे पाचक रस को भी पतला कर उसकी कार्य करने की शक्ति को घटा देता है।परिणामस्वरूप कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का पाचन ठीक से नहीं हो पाता है।

पानी कब व कितना पियें ?

how to drink water
1. भोजन के एक से डेढ़ घंटे बाद 1 - 2 गिलास पानी (सामान्य तापक्रम का) घूंट-घूंट करके, बैठकर पीना चाहिए। एक से डेढ़ घंटे में सारे पाचक रस भोजन में मिलकर उसे पचने की अवस्था में ले आते है।
2.खाना खाने के 48 मिनट पहले ही पानी पिएं क्योंकि पानी को अपनी सम्पूर्ण क्रिया पूरी करके मूत्र पिंड तक पहुंचने में 48 मिनट का समय लगता है। यदि हम भोजन करने से तुरंत पहले पानी पीते है तो हमारे पेट का पाचक रस व अम्ल पतला हो जाता है व हमारा भोजन पूर्ण रूप से नहीं पचता है।
3. प्रात: उठते ही बिना कुल्ला किये तांबे,पीतल या मिटटी के बर्तन में रखा पानी गुनगुना करके एक चुटकी सेंधा नमक डालकर 2 से 3 गिलास पियें। प्रात:की लार में 18 प्रकार के पोषक तत्व होते है जो हमारे स्वास्थ्य रक्षा के लिए बहुत उपयोगी है।
गर्म जल सेवन के लाभ - यह जठराग्नि को प्रदीप्त करता है, आम रस को पचाता है, कंठ (गले) के लिए हितकर है, शीघ्र पचता है अफारा, वात - कफ विकारों, उल्टी, दस्त, नवज्वर, खांसी, साँस सम्बंधित रोगों में इसका प्रयोग करना चाहिए।
शीतल जल सेवन के लाभ- प्राकृतिक रूप से शीतल जल (मिटटी के घड़े, कुआ, झरना ) का सेवन करने से दिमागी रोग, ग्लानी, बेहोशी, उल्टी, चक्कर आना, थकावट, प्यास, गर्मी, जलन, पित्तविकार, रक्त विकार तथा विष विकार ठीक हो जाते है।
यह हमेशा लाभकारी होता है और त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) व उससे उत्पन्न रोगों को दूर करता है। इस जल के सेवन से मूत्र शुद्ध होता है तथा दमा, खाँसी, बुखार आदि दोष दूर होते हैं। रात्रि के समय इस जल को पीने से जमा हुआ कफ पिघलता है तथा वात एवं मल दोष जल्दी समाप्त होता है।
गर्म जल हल्का होता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है तथा पाचन सम्बन्धी रोगों को दूर करता है। इसे पीने से पीनस, पेट में गैस, हिचकी आदि रोग तथा वात और जल का प्रकोप शान्त होता है।
उबला हुआ पानी स्वच्छ, सब दोषों से रहित और अच्छा होता है। उबलते हुए पानी का जब एक चौथाई भाग जल कर तीन चौथाई शेष रह जाता है, तो यह जल वात और वात से उत्पन्न रोगों को दूर करता है।
उबालने पर आधा बचा जल ‘उष्ण जल’ कहलाता है। यह हमेशा लाभकारी होता है और त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) व उससे उत्पन्न रोगों को दूर करता है। इस जल के सेवन से मूत्र शुद्ध होता है तथा दमा, खाँसी, बुखार आदि दोष दूर होते हैं। रात्रि के समय इस जल को पीने से जमा हुआ कफ पिघलता है तथा वात एवं मल दोष जल्दी समाप्त होता है।
विशेष:- सुबह के भोजन के बाद ऋतू अनुसार फलों का ताजा रस व दोपहर के भोजन के बाद वैदिक तरीके से तैयार छाछ पी सकते है

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