लकवा (Paralysis) की समस्या से छुटकारा पाने के 7 उपाय

लकवा (Paralysis) की समस्या से छुटकारा पाने के 7 उपाय

लकवा (Paralysis)की समस्या -

पैरालिसिस (Paralysis)को आम भाषा में लकवा मारना या पक्षाघात(Paralysis) होना भी कहा जाता है। लकवा मारना मस्तिष्क में होने वाली एक प्रकार की बहुत ही गंभीर तथा चिंताजनक बीमारी है। शरीर के अन्य अंगों की तरह हमारे मस्तिष्क को भी लगातार रक्त आपूर्ति की जरूरत होती है। खून में ऑक्सीजन तथा विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व पाये जाते है

जो हमारे मस्तिष्क को सही रूप से कार्य करने में काफी सहायता करते है। जब हमारे मस्तिष्क में खून की सप्लाई होना बंद हो जाती है, तो एक या अधिक मांसपेशी या समूह की मांसपेशियाँ पूरी तरह से काम करना बंद कर देती है। तब ऐसी स्थिति को पक्षाघात अथवा लकवा मारना कहा जाता हैं।

यह बीमारी प्रायः अधिक उम्र के बुजुर्ग लोगों में अधिक पाई जाती है। इस बीमारी में शरीर का कोई हिस्सा या आधा शरीर निष्क्रिय व चेतनाहीन होने लगता है। यह बीमारी होने की वजह से व्यक्ति की संवेदना शक्ति खत्म हो जाती है, तथा वह व्यक्ति चलने फिरने उठने तथा शरीर में कुछ भी महसूस करने की क्षमता भी खो देता है। हमारे शरीर के जिस हिस्से के अंगो पर लकवा मारता है, उस हिस्से के अंग काम करना बंद कर देते है।

लेफ्ट साइड में ब्रेन के अंदर स्ट्रोक आने के बीपी के कारण से या कोलेस्ट्रॉल के कारण से ब्रेन में क्लॉट आ जाता हैं। अगर राइट साइड में क्लॉट आ जाता हैं तो लेफ्ट साइड का पैरालिसिस हो जाता हैं और अगर लेफ्ट साइड में क्लॉट आये तो राइट साइड में पैरालिसिस हो जाता हैं। अगर ब्रेन के दोनों तरफ क्लॉट आ जाये तो पुरे शरीर में पैरालिसिस हो जाता हैं। लकवा कभी भी कहीं भी तथा किसी भी शारीरिक हिस्से में हो सकता है। ऐसे कई कारण होते है। जिसकी वजह से लोगों को पैरालिसिस (लकवा) हो सकता है।

किसी भी एक्सीडेंट के होने से, इन्फेक्शन के कारण,रक्त वाहिकाओं के अवरुद्ध हो जाने से तथा ट्यूमर होने की वजह पैरालिसिस होने की संभावना बनी रहती है। जब हमारे मस्तिष्क में खून की सप्लाई नहीं होती तब भी पैरालिसिस जैसी समस्या हो जाती है।

हमारे खून में ऑक्सीजन तथा विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व पाये जाते है जो हमारे मस्तिष्क के सही ढंग से कार्य करने में सहायक होते हैं। जब हमारे मस्तिष्क में सही ढंग खून की सप्लाई नही होती या खून के थक्के जमा हो जाते हैं तब इसकी वजह से पैरालिसिस होने का खतरा बढ़ जाता है। जब हमारे दिमाग का कोई हिस्सा जो किसी विशेष मांसपेशियों को कंट्रोल करता है, और वह क्षतिग्रस्त हो जाता है, तब भी पैरालिसिस की स्थिति उत्पन्न होने लगती है।

जिन लोगों में हाई ब्लड प्रेशर,डायबिटीज,कोलेस्ट्रॉल अधिक मात्रा में पाया जाता है तथा जिन लोगों के शरीर का वजन बहुत अधिक है, उन लोगों में पैरालिसिस होने का खतरा बना रहता है। रीढ की हड्डी पर चोट लगने से जब हमारा मेरूदंड प्रभावित होता है। तब ऐसी स्थिति में पैरालिसिस हो सकता है।

अन्य कारण - युवावस्था में अत्यधिक संभोग करना, नशीले पदार्थों का सेवन करना, आलस्य की वजह से स्नायविक तंत्र धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, इस रोग के आक्रमण की आशंका भी बढ़ती जाती है। सिर्फ आलसी जीवन जीने से ही नहीं, बल्कि इसके विपरीत अधिक भागदौड़, क्षमता से अधिक मेहनत या व्यायाम करना, अधिक मात्रा में आहार करना आदि कारणों से भी लकवा होने की स्थिति बनती है।

आयुर्वेद के अनुसार लकवा के प्रकार -

Paralysis

यह पांच प्रकार का होता है
1. अर्दित - इसमें सिर्फ चेहरे पर पैरालिसिस का असर होता है,इसमें सिर, नाक, होठ, ढोड़ी, माथा, आंखें तथा मुंह, प्रभावित होता है और एक जगह स्थिर हो जाता है
2. एकांगघात - इस रोग में दिमाग के बाहरी भाग में समस्या होने से एक हाथ या एक पैर सुन्न हो जाता है और उसमें लकवा हो जाता है। यह समस्या सुषुम्ना नाड़ी में भी हो जाती है। इसे एकांगवात भी कहते है।
3. सर्वांगघात - इस रोग में लकवे का असर पुरे शरीर के दोनों भागों पर यानी दोनों हाथ व पैरों, और चेहरे पर होता है, इसलिए इसे सर्वांगवात भी कहते है।
4.अधरांगघात- इस रोग में कमर से नीचे का भाग यानी दोनों पैर पैरालिसिस हो जाते हैं। यह रोग सुषुम्ना नाड़ी में खराबी आने की वजह से भी होता है। यदि यह समस्या सुषुम्ना के ग्रीवा खंड में होती है, तो दोनों हाथों को भी पैरालिसिस कर सकता है।
5 बाल पक्षाघात - बच्चे को होने वाला पैरालिसिस एक तीव्र संक्रामक रोग है। जब एक प्रकार का विशेष कीड़ा सुषुम्ना नाड़ी में घुस जाता है और उसे क्षति पहुंचाता है तब सूक्ष्म नाड़ी और मांसपेशियों को आघात पहुंचता है, जिसके कारण उनके अतंर्गत आने वाली कोशिकायें क्रियाहीन हो जाती है।जिससे पैरालिसिस हो सकता है यह रोग कभी भी अचानक होता है और यह अधिकतर 6-7 माह की आयु से ले कर 3-4 वर्ष की उम्र के बीच बच्चों को होता है।

लकवा का लक्षण -

शरीर को हिलने-डुलने में असमर्थ हो जाना,हमारे शरीर के एक भाग का सुन्न हो जाना,लकवाग्रस्त हिस्से में तेज दर्द रहना,शरीर के जिस भाग में लकवा हुआ है उस भाग में सुई जैसी चुभन होना,
मांसपेशियों में कमजोरी महसूस होना,चेहरे का एक तरफा हिस्सा कमजोर होना आदि लक्षण हो सकते है।

घरेलू आयुर्वेदिक उपचार-

1. 50 ग्राम काली मिर्च लेकर 250 ग्राम रिफाइन्ड तेल में डालकर कुछ देर तक पकायें। अब इस तेल से लकवा ग्रस्त अंग पर हल्के हल्के हाथों से लगायें। इस तेल को तुरंत बनाकर गुनगुना करके लगायें। इस इलाज को लगभग एक महीने तक प्रतिदिन नियमित रूप से करें।
2. पैरालिसिस के लिए 4 से 5 लहसुन की कलियों लेकर उनको पीसकर उसे 2 चम्मच शहद में मिलाकर चाटें। इसके अलावा लहसुन की 4 से 5 कलियों को दूध में उबालकर उसका सेवन करने से लकवा से ग्रसित अंगों में भी हलचल होने लगती है।
3. देसी गाय के शुद्ध घी की 3 बूदों को हर रोज सुबह शाम नाक में डालने से लकवा के इलाज में भी बहुत फायदा होता है।
4. 50 ग्राम लहसुन को आधा लीटर सरसों के तेल में डालकर पका लें। अब इसे ठंडा करके इसे अच्छी तरह निचोड लें और एक डिब्बे में रख दें। रोजाना इस तेल से लकवा ग्रस्त अंगो पर मालिश करने से काफी लाभ पहुँचता है।
5. पैरालिसिस पीडित रोगी को खजूर को दूध में मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करने से लकवा ठीक होने लगता है।
6.लकवा ग्रस्त रोगी के आहार में नियमित रूप से भिंडी, बीट, गाजर, जैसी पौष्टिक सब्जियों का समावेश होना चाहिए।
7. शरीर के जिस तरफ लकवा हुआ हैं उस साइड से अनुलोम-विलोम प्राणायाम करना शुरू कर दें। इसको रोजाना एक से दो घंटा लगातार करते रहना है
अगर आपका लकवा अधिक पुराना नहीं हैं तो आप महसूस करेंगे की आपका लकवा ठीक हो रहा हैं,और जिस अंग में लकवा हुआ हैं वह काम करने लगेगा। और अगर आपका लकवा अधिक पुराना हैं और शरीर में ज्यादा जगह पर हुआ हैं तो भी यह अनुलोम-विलोम प्राणायाम सिर्फ 7 दिन से लेकर 15 दिनों के अंदर लकवे को ठीक कर देता हैं
लकवा जैसे रोग का यदि सही वक्त पर उपचार न किया जाए तो वह रोगी एक प्रकार से अपाहिज की जिंदगी जीने मजबूर हो जाता है। इसलिए वक्त रहते ही इस बीमारी का उपचार करना बहुत ही जरूरी है। यदि आप नियमित रूप से इन आयुर्वेदिक उपायों को अपनाये तो आपको लाभ अवश्य होगा। धन्यवाद

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