vata dosha

क्या है वात दोष (vata dosha) का कारण

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क्या है वात रोग (vata dosha) का कारण हम जो खाना खाते हैं उसका कुछ भाग ठीक से पाचन नहीं हो पाता और वह हिस्सा मल के रूप में बाहर निकलने की बजाय शरीर में ही पड़ा रहता हैं भोजन के इस अधपके अंश को आयुर्वेद में ''आम रस या आम दोष'' कहा जाता हैं।

जब वात शरीर में आम रस के साथ मिल जाता हैं तो उसे साम वात कहते हैं। साम वात होने पर कुछ ऐसे लक्षण सामने आते हैं मल-मूत्र और गैस निकलने में दिक्कत, पाचन शक्ति में कमी, हमेशा सुस्ती या आलस महसूस होना, आंत में गुड़गुडाहट की आवाज आना, कमर में तेज दर्द रहना,

यदि साम वात का इलाज ठीक समय पर नहीं किया तो आगे चलकर यह पूरे शरीर में फैल जाता हैं और कई बीमारियाँ होने लगती हैं, जब वात, आम रस युक्त नहीं होता हैं तो यह निराम वात कहलाता हैं।

निराम वात के प्रमुख लक्षण - त्वचा में रूखापन,मुहँ जीभ का सूखना आदि इसके लिए तैलीय खाद्य पदार्थो का अधिक सेवन करें। मानव शरीर मुख्य रूप से इन सभी तत्वों के बीच संतुलन की अवस्था मनुष्य के बेहतर स्वास्थ्य की और इशारा करती हैं,

मानव शरीर पाँच तत्वों (अग्नि,पृथ्वी,जल,वायु,और आकाश) से मिलकर बना हैं,इन सभी तत्वों के बीच संतुलन की अवस्था मनुष्य के बहेतर स्वास्थ्य की और इशारा करती हैं। वहीं इनमें से किसी एक का भी असंतुलन शारीरिक समस्याओं का कारण बन जाता हैं। जिसे त्रिदोषों और उसके उपदोषों में विभाजित किया गया हैं

शरीर के भागों और अंगों के हिसाब से त्रिदोषों को वात, पित्त और कफ के नाम से जाना जाता हैं,त्रिदोषों की प्रमुखता किसी व्यक्ति की प्रकृति को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। जैसे (लाल आँखें) पित्त के कारण होती हैं,

कफ के कारण (आँखों की सफेदी) और सूखापन वात के कारण इन लक्षणों में से किसी एक की मौजूदगी के आधार पर यह निर्धारित किया जाता हैं की व्यक्ति किस दोष के ज्यादा प्रभाव में हैं। वात दोष ''वायु'' और जिनके कई उपभाग भी हैं जिसमें वात रोग क्या हैं, वात रोग के कारण और वात प्रकृति के लक्षण ये सभी आपको विस्तार से बताया जा रहा हैं।

वात रोग "वायु" और "आकाश"इन दोनों तत्वों से मिलकर बना हैं वात या वायु दोष को तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया हैं। हमारे शरीर में गति से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया वात के कारण ही संभव हैं। चरक संहिता में वायु को ही पाचन अग्नि बढ़ाने वाला, सभी इन्द्रियों का प्रेरक और उत्साह का केंद्र वात का मुख्य स्थान पेट और आंत में हैं,वात में योगवाहिता या जोड़ने का एक खास गुण होता हैं।

इसका मतलब हैं कि यह अन्य दोषों के साथ मिलकर उनके गुणों को भी धारण कर लेता हैं,जैसे कि जब यह पित्त दोष के साथ मिलता हैं तो इसमें दाह,गर्मी वाले गुण आ जाते हैं और जब कफ के साथ मिलता हैं तो इसमें शीतलता और गीलेपन जैसे गुण आ जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार सिर्फ वात के प्रकोप से होने वाले रोगों की संख्या 80 के करीब हैं।

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वात में कमी के लक्षण - वात में बढ़ोतरी होने की ही तरह वात में कमी होना भी एक समस्या हैं,और इसकी वजह से भी कई तरह की समस्याएँ होने लगती हैं जैसे कि- बोलने में दिक्कत आना, अंगों में ढीलापन आना, वात के स्वाभाविक कार्यो में कमी आना, पाचन में कमजोरी आना, जी मिचलाना,सोचने समझने की क्षमता और याददाश्त में कमी आना।

वात रोग के कारण - मल-मूत्र या छींक को रोक कर रखना,और खाएँ हुए भोजन के पचने से पहले ही कुछ और खा लेना और अधिक मात्रा में खाना, रात को देर तक जागना और तेज बोलना, अपनी क्षमता से ज्यादा महेनत करना, सफर के दौरान गाड़ी में तेज झटके लगना, जरूरत से ज्यादा पका हुआ सूखा आहार और बासी भोजन करना,तीखी और कड़वी चीजों का अधिक सेवन करना, बहुत ज्यादा ड्राईफ्रूट्स खाना, खट्टी चीजों का अधिक सेवन करना आदि चीजों के कारण वात रोग बढ़ता हैं।

वात संतुलन करने के उपाय - वात को शांत या संतुलन करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवन शैली में बदलाव लाने होंगे आपको उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से वात बढ़ रहा हैं। वात प्रकृति वाले लोगों को खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि गलत खानपान से तुरंत वात बढ़ जाता हैं। खानपान में किये गए बदलाव जल्दी असर दिखाते हैं।

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वात को संतुलन करने के लिए क्या खाना चाहिए - खीरा, गाजर, चुकंदर, पालक, शकरकंद, आदि सब्जियों का रोज सेवन करें, मूंग दाल, राजमा, सोया दूध का सेवन करें घी में तले हुए सूखे मेवे खायें या फिर बादाम, कद्दू के बीज, सूरजमुखी के बीजों को पानी में भिगोकर खाएँ। घी तेल और फैटी चीजों का सेवन करें, गेंहू,तिल, अदरक, लहसुन और गुड़ से बनी चीजों का सेवन करें। नमकीन छाछ, मक्खन, ताजा पनीर,उबला हुआ गाय के दूध का सेवन करें।

वात के गुण - रूखापन, शीतलता, लघु,सूक्ष्म,चंचलता,चिपचिपाहट से रहित और खुरदरापन वात के गुण हैं, रूखापन वात का स्वाभाविक गुण हैं। जब वात संतुलित अवस्था में रहता हैं तो आप इसके गुणों को महसूस नहीं कर सकते हैं। लेकिन वात के बढ़ने या असंतुलित होते ही आपको इन गुणों के लक्षण नजर आने लगेंगे।

वात की कमी होने पर - जैसे वात का बढ़ना सही नही हैं वैसे ही वात का कम होना भी स्वास्थ्य के लिए सही नहीं हैं, इनका सही लेवल होना जरूरी हैं।वात की कमी होने पर वात को बढ़ाने वाले आहार का सेवन करें कड़वे तीखे हल्के एवं ठंडे पेय पदार्थो का सेवन करें इनके सेवन से वात जल्दी बढ़ता हैं। इसके अलावा जिन चीजों के सेवन की मनाही होती हैं उन्हें खाने से वात की कमी को दूर किया जा सकता हैं।

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