जोंकों (treatment of leeches) से हो रहा गंभीर रोगों का उपचार
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जोंकों (treatment of leeches) से हो रहा गंभीर रोगों का उपचार जोंक दूषित रक्त को ही चूसती है। एक बार में जोंक शरीर से 5 मिलीलीटर खून चूस लेती है। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक प्रभावित अंग से दूषितरक्त को पूरी तरह चूस नहीं लिया जाता।
जोंक का नाम आते ही एक तरह का डर सा लग जाता हैं ऐसे में अगर बहुत सारी जोंक आपकी बॉडी पर हो और खून चूस रही हो तो कैसे रिएक्ट करेंगे आप? अगर ये लीच थेरेपी हैं तो आप ऐसा ख़ुशी से करवाएंगे जी हाँ,
लीच थेरेपी एक ऐसा इलाज हैं जिससे जोंक आपकी बॉडी पर खून चूसने के लिए छोड़ा जाता हैं। इसका बहुत सारी बीमारियों जैसे कैंसर, अर्थराइटिस शरीर के किसी भाग के जुड़ने में अच्छा यूज हो सकता हैं,
2500 साल पहले ग्रीक के लोग इस थेरेपी का उपयोग बॉडी के खराब रक्त को निकालने के लिए करते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि खून चूसने वाली जोंक आपकी लाइलाज बीमारियों को ठीक कर सकती हैं।
इसे जोंक थेरेपी कहते हैं। जोंक से उपचार की विधि को आयुर्वेद में जलौकावचारण विधि की संज्ञा दी जाती हैं। चिकित्सा विज्ञान में इस विधि को लीच थैरेपी भी कहा जाता हैं। यह आयुर्वेद चिकत्सा पद्धति में हो रहा हैं।
आयुर्वेद चिकत्सा में जोंक थेरेपी से रोगों का इलाज किया जा रहा हैं। चिकित्सा विज्ञान में इस विधि को लीच थेरेपी कहा जाता हैं। चिकत्सक बताते हैं की जोंक थेरेपी लाइलाज बीमारियों में कारगर साबित हो रही हैं।
जोंक थेरेपी से कई तरह के त्वचा रोगों का इलाज किया जा रहा हैं। यह (jonk) मरीजों का खून चूसता हैं,जैसे चोट लगने पर या किसी तरह की बिमारी होने पर लीच (जोंक) थेरेपी में जोंक को आपकी बॉडी पर परेशानी की जगह छोडा जाता हैं,
जोंक के तीन जबड़े और 100 दांत होते हैं। जिससे वो बॉडी में से खून चूसती हैं,एक जोंक अपने वजन से 10 गुना ज्यादा खून इंसान की बॉडी में से चूस सकती हैं,बॉडी पर लगते ही ये एक तरह का केमिकल बॉडी में डाल देती हैं। सिर, चेहरे, हाथ, पेट, पैर से खून चूसता हैं खून चूसता देख आप चौंक जायेंगे पर रोगी को काफी राहत मिलेगी।
आयुर्वेद चिकत्सा के अनुसार बताया गया हैं कि जोंकों को प्रभावित अंगों के ऊपर छोड़ दिया जाता हैं। वः मरीज के अंग पर वाय आकार बनाकर चिपकती हैं और शरीर से गंदे खून को चूस लेती हैं। इससे किसी प्रकार के निशान भी नहीं रहते हैं।
जोंक अशुद्ध रक्त को चूसकर शरीर में हिरुड़ीन नाम का एंजाइम डाल देती हैं यह हिरुडीन रक्त में थक्के जमने से रोकता हैं और पहले से बने रक्त के थक्कों को घोल देता हैं। इससे रक्त शुद्ध हो जाता हैं और रक्त का संचार तेजी से होने लगता हैं।
इससे शरीर में अधिक ऑक्सीजन वाला रक्त बहने लगता हैं। और शरीर धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगता हैं। एक बार में जोंक शरीर से 5 मिलीलीटर रक्त चूस लेती हैं।यह प्रक्रिया तब तक चलती हैं
जब तक प्रभावित अंग से दूषित रक्त पूरी तरह चूस नहीं लिया जाता दूषित रक्त की समाप्ति से स्वच्छ रक्त प्रवाह होता हैं,जिससे जख्म जल्दी भरते हैं। इससे चर्म रोग जैसे दाद, घाव,(नासूर) नसों का फूलना, कील-मुहांसे, सिर पर से किसी एक जगह से बाल कम हो जाना जैसी कई बीमारियों का इलाज सफलतापूर्वक किया जा रहा हैं।
जोड़ो के दर्द को जड़ से खत्म करें जोंक - यदि आप जोड़ो के दर्द से परेशान हैं और पेन किलर के सहारे जीवन काट रहे हैं तो अपनी आदत तुरंत बदल डालें। जरूरत से ज्यादा पेन किलर का उपयोग करने से किडनी भी खराब हो सकती हैं।
जोड़ों में दर्द से पीड़ित मरीजों के लिए सनसे कष्टकारी समय ठंड का होता हैं। ऐसे में उनकी समस्या कई गुना ज्यादा हो जाती हैं बहुत से मरीज तो ऐसे होते हैं जो अपनी नियमित दिनचर्या के लिए भी दूसरों पर आश्रित रहते हैं।
जिनके पास आर्थिक संसाधन होते हैं वह ज्वाइंट रिप्लेसमेंट करा लेते हैं,लेकिन जिनके लिए यह संभव नहीं होता हैं। उसके लिए आयुर्वेद से ही राहत मिलती हैं।आयुर्वेदिक चिकित्सा में जोंक का प्रयोग करके जोड़ों के दर्द को भगाया जा रहा हैं,
इससे शरीर पर किसी प्रकार का साइड इफैक्ट भी नहीं होता हैं। और मरीजों को लम्बे समय तक आराम मिल जाता हैं।आयुर्वेद मरीजों के लिए यह बहुत लाभप्रद चिकत्सकीय पद्धति हैं। जोड़ों में दर्द या सूजन क समस्या हो जाती हैं।
तो प्रभावित स्थानों से जहरीले तत्वों को बाहर निकालने के लिए जोंक का प्रयोग किया जाता हैं। जोंक के लार्वा में दर्द को कम करने की ताकत होती हैं। एक तरफ तो शरीर के बीमार हिस्से से वह जहरीले तत्वों को चूस कर निकाल देते हैं।
वहीं दूसरी तरफ जोंक के लार्वा से मरीजों को दर्द में राहत मिल जाती हैं। मरीज के शरीर पर जहाँ भी दर्द हैं उस स्थान 10 मिनट तक जोंक को प्रभावित हिस्से पर लगाया जाता हैं,इतनी देर में वह अपना काम कर देती हैं।
पहले जोंक की पहचान करें - सबसे पहले जोंक की पहचान करनी होती हैं, यदि गंदे पानी की जोंक का उपयोग किया जायेगा तो मरीज को फायदे की जगह नुकसान होगा। ऐसे मे यह पता होना जरूरी हैं कि जोंक साफ़ पानी में रहनी वाली हो।
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