इंडियन और हुंजा सभ्यता का स्वस्थ रहने का रहस्य(The secret to staying healthy)-
आपको इस पोस्ट से दो महत्वपूर्ण बातें पता चलेगी, पहली जा रहे हैं, उससे सारे कार्डियोलोजिस्ट्स के बेरोजगार होने की संभावना हैं। दूसरी- इसे पढ़ने के बाद आपको फिर कभी मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रोल, मोटापे या ह्रदय रोगों के लिए किसी डॉक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। मेडिकल विज्ञान के इतिहास की सबसे शक्तिशाली कहानी हैं परन्तु इसे मेडिकल कॉलेज के पाठ्यक्रम से परे रखा गया क्योंकि यह पूरे अस्पताल तन्त्र को अप्रचलित तथा व्यर्थ कर सकती हैं। अठारहवीं सदी के आरम्भ तक, विश्व की सबसे स्वस्थ मानी जाने वाली दो सभ्यताएं, हुंजा व पीमा इंडियन, कश्मीर (भारत) के समीप रहती थी। माना जाता था कि वे सौ वर्ष से अधिक आयु तक जीवित रहते थे और आजीवन किसी भी प्रकार के बड़े रोग से ग्रस्त नहीं होते थे। उनकी जीवनशैली तथा खान-पान की आदतें ही उनकी दीर्घायु का रहस्य थीं। यह समय था, जब पीमा इंडियन ने तय किया कि वे अमेरिका के निकट अरीजोना में जा कर बस गए और खान-पान की आदतें ही उनकी दीर्घायु का रहस्य थीं। यह समय था, जब पीमा इंडियन ने तय किया कि वे अमेरिका के निकट अरीजोना में जा कर बस जाएंगे। पीमा इंडियन, वहाँ जा कर बस गए और अपनी उस जीवनशैली और खानपान की आदतों के साथ वैसे ही जीते रहे,जैसे कि वे हुंजा सभ्यता के समीप रहते हुए, जीते आए थे। 1960 के दशक तक वे स्वस्थ तथा रोगमुक्त रहे। तब अमेरिका की सरकार ने उनके आगे प्रस्ताव रखा कि वे अपनी कृषि भूमि सरकार को सौंप दें और इसके बाद उन्हें आजीवन भोजन की आपूर्ति दी जाएगी। पीमा इंडियन मान गए और इस तरह उन्हें सरकार की ओर से पैक्ड/फास्ट मिलने लगा। 1970 के दशक तक, पीमा इंडियन, पूरे विश्व में, सबसे रोगी सभ्यता के रूप में जाने लगे और उनके समुदाय के सभी सदस्य एक या विविध रोगों से ग्रस्त हो चुके थे जैसे ह्रदय रोग, मधुमेह, उच्च कोलेस्ट्रोल तथा रक्तचाप, मोटापा तथा जीवनशैली जनित अन्य रोग। वे अनेक दवा कंपनियों के आकर्षण का केंद्र बन गए क्योंकि वहाँ से उन्हें अपनी दवाओं के प्रयोग के लिए मानव गिन्नी पिग मिल सकते थे, उन्हें बहुत कम कीमत पर लिया जा सकता था और वे कई तरह के और कई रूपों में रोगों से ग्रस्त भी थे। 1970 से 1975 के दौरान कुछ शोधकर्ताओं ने पीमा इंडियन में से कुछ लोगों के एक समूह को चुना जो ह्रदय रोग, मधुमेह, उच्च कोलेस्ट्रोल तथा रक्तचाप, मोटापा तथा जीवनशैली जनित अन्य रोगों से घिरे थे, उन्होंने तय किया कि वे उन लोगों को एक बार फिर उसी मूल आहार पर ले आएँगे, जिसे वे पहले प्रयोग में लाते थे और हुंजा भारतीय अब भी प्रयोग में लाते हैं।
शोधकर्ता अपने शोध के परिणाम देख कर चौंक गए। एक-डेढ़ साल के अंदर ही रोगों का ढांचा पलट गया। कोलेस्ट्रोल तथा रक्तचाप के स्तर सामान्य होने लगे। ब्लड ग्लूकोज का स्तर भी सामान्य हो गया, लोगों के वजन घटे और उनकी आर्टरियों में हो चुके जमाव में भी कमी आई। ह्रदय की वे रक्त नलिकाएं खुल गई। यह साफ हो गया था कि जो भोजन रोगों से बचाव कर सकता था, वहीं उन रोगों को मिटाने में भी सफल रहा था। अब प्रश्न यह उठता हैं कि ऐसी कौन सी जादुई पद्धति हैं, जिसने हुंजा इंडियंस को रोगमुक्त व स्वस्थ रहने तथा पीमा इंडियंस, को अपने रोगों से मुक्त पाने में मदद की ? मेरे मार्गदर्शक डॉ. टी कॉलिन कैंपबैल ने इसे चाइना स्टडी डाइट प्लान या होल फूड प्लांट बेस्ट डाइट प्लान या डबल्यू एफ पी बी डाइट (WFBP DIET) के रूप में रखा। डॉ. कोड्वैल एसिलस्टिन अपने व्याख्यानों में से एक में, इसका निम्नलिखित रूप में वर्णन करते हैं:
क्या न खाएं :
(1) आप ऐसी वस्तु नहीं खा सकते, जिसकी कोई माँ अथवा चेहरा हो (मांस, पोल्ट्री व मछली)
(2) आप डेयरी उत्पाद नहीं ले सकते।
(3) आपको किसी भी प्रकार के तेल का सेवन नहीं करना चाहिए - एक बूंद भी नहीं
(4) नमक, चीनी व रिफाइंड उत्पाद भी नहीं खाने।
क्या खा सकते हैं:
(1) सभी सब्जियां (प्रोसेसिंग के बिना, कुदरती रूप में)
(2) सभी लेग्यूम्स (बींस, मटर व हर तरह की दालें)
(3) सभी साबुत अनाज (अनरिफाइंड अवस्था में)
(4) सभी फल।
यहां जो भी बताया गया हैं, वह काफी हद तक हुंजा सभ्यता के उस आहार से मिलता हैं जिसे शोधकर्ताओं ने उनके दीर्घायु का आधार माना हैं। आधुनिक विश्व में सात और ऐसी सभ्यताएं हैं, जहां ह्रदय रोग नहीं पाए जाते - वे हैं: जापान की ओकीनावा, चीन के बामा, इक्वेडर के विलीकांबा, जर्जिया के अबकासिया, इटली के कांपोडीमील, ग्रीक के सियामी तथा वियतनाम के बौद्ध, (जिनके साथ मुझे कुछ समय बिताने व उनकी जीवनशैली को निकट से देखने का अवसर मिला) अपनी लंबी आयु के लिए प्रसिद्धि के अलावा, वे लोग एक और बात के लिए जाने जाते हैं। उनका आहार डॉ. कोड्वैल द्वारा बताए गए आहार से काफी मिलता-जुलता हैं। होल फूड प्लांट वेस्ड डाइट पर आधारित आहार तथा जीवनशैली जनित रोगों के निवारण का संबंध कई बार स्थापित किया जा चुका हैं।
दूसरे विश्व युद्ध का उदाहरण भी लिया जा सकता हैं : उन दिनों इंग्लैड में दिल के दौरों व मधुमेह में 50% तक की गिरावट आ गई थी। यह पाया गया कि दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान चीनी की खपत में कमी आई थी क्योंकि चीनी की आपूर्ति नहीं हो पा रही थी। एनर्जी के अभाव में साबुत गेहूँ के आटे को रीफाइंड आटे में भी नहीं बदला जा सका और सरकार ने लोगों को उत्साहित किया कि वे अपने भोजन के स्त्रोत के रूप में विक्ट्री बगीचे लगाएं। लोगों को विवश हो कर वहीं आहार लेना पड़ा, जो कि चाइना स्टडी डाइट प्लान से काफी समानता रखता था। इन सबके कारण ही दिल के दौरों व मधुमेह में 50% तक की गिरावट आ गई थी। परन्तु जैसे ही लड़ाई खत्म हुई और सभी वस्तुओं की आपूर्ति का स्तर सामान्य हुआ तो लोग फिर से रीफाइंड व प्रोसेस्ड आहार लेने लगे। दिल के दौरों तथा मधुमेह की दर फिर से अपनी ऊंचाई पर लौट आई। ठीक इसी प्रकार का ट्रेंड डेनमार्क सहित विश्वयुद्ध में शामिल होने वाली कई देशों में पाया गया। उत्तरी याकोन इलाके (कनाडा) के एस्कीमोज की कहानी से भी ऐसे ही साक्ष्य लिए जा सकते हैं। वे लोग 1955 तक अपने उत्तम स्वास्थ्य के लिए जाने जाते थे और तब वे मूल रूप से भोजन संग्रहकर्ता बंजारे थे। कनाडा की सरकार ने उन्हें डिफेंस अर्ली वार्निग सिस्टम (डीईडबल्यू) में नौकरियां दे दीं। नतीजन उन्हें भी मजबूरन 100% आधुनिक रीफाइंड, प्रोसेस्ड व डिब्बाबंद भोजन खाना पड़ा, जो बाहर से आता था। अगले ही दशक में, वहाँ की महिलाएं गोलब्लैडर में समस्या तथा मधुमेह से ग्रस्त होने लगीं। पुरषों में कोरोनरी आर्टरी रोग विकसित हो गए। अल्बर्टा से आई डाक्टरों की टीम ने उनके आहार में बदलाव किए और उन्हें कच्चा व पौधों पर आधारित भोजन दिया जाने लगा। दो ही साल के अंदर रोगों का ढांचा बदल गया। इस तरह 19 वीं सदी के अंत तक, पूरी दुनिया में अनेक डॉक्टर यह बता चुके थे तथा इस संबंध को भी स्थापित कर चुके थे। उन्होंने मानव शरीर के विज्ञान को समझने के बाद यह प्रमाणित कर दिया था (जैसा कि आपको पहली पोस्ट में संकेत दिया हैं) कि आप अपने आहार के ढांचे में बदलाव से ही अनेक रोगों से मुक्ति पा सकते हैं।
चाइना स्टडी डाइट प्लान कितना स्वस्थ हैं ?
चाइना स्टडी (मानव पोषण पर आधारित सबसे बड़ा डाइट प्लान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. टी कॉलिन कैंपबैल ने इसे समझाने के लिए बहुत ही सुंदर शब्दों में कहा है : कल्पना करें कि एक बड़ी दवा कंपनी ने प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया है ताकि अपनी एक नई गोली इयुन्युट्रीया (EUNUTRIA)के बारे में बता सकें। वे इस दवा के वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित प्रभावों पर चर्चा करते हुए कहते हैं:
(1) यह सभी प्रकार के दिल के दौरों तथा पक्षाघात से आरोग्य प्रदान करती हैं।
(2) यहाँ तक गंभीर ह्रदय रोगों से भी मुक्ति दिला सकता है।
(3) टाइप 2 कि मधुमेह से आरोग्य प्रदान करती है तथा उससे मुक्ति पाने में भी सहायक है।
(4) यह सभी कैंसरो को 95% तक समाप्त करती है, जिनमें वे भी शामिल हैं, जो पर्यावरणीय विषाक्तता के कारण होते हैं। यह इतनी शक्तिशाली है कि दवा लेने के तीन दिन बाद ही, रोगी के लिए इंसुलिन का प्रयोग करना घातक हो सकता हैं।
आप पूछते हैं कि इसके साइड इफेक्ट हैं और वे हैं:
(1) यह आपको बड़े ही स्वस्थ तरीके से आपके आदर्श वजन के करीब रखती है।
(2) अधिकतर माइग्रेन, एक्ने, सर्दी, खासी, फ्लू तथा आँतों के रोगों से बचाती है। ऊर्जा के स्तर में सुधार होता है।
(3) यह पुरषों की खोई ताकत लौटाने में सहायक है (इस तरह तो यह दवा अपने-आप ही ब्लाकबस्टर सफलता पा लेगी)
(4) ये तो दवा लेने वाले व्यक्ति के लिए साइडइफेक्ट हैं, इसके अतिरिक्त पर्यावरणीय प्रभाव भी शामिल है:
(5) यह ग्लोबल वार्मिग के खतरे को धीरे-धीरे समाप्त कर देगी।
(6) वृक्षों की कटाई पर भी रोक लग जाएगी।
(7) फैक्ट्री तथा फार्म बंद हो जाएंगे। कुपोषण घटेगा तथा दुनिया के निर्धन नागरिकों के स्तर में सुधार आएगा। परन्तु हम जिस काल्पनिक गोली इयून्न्यूट्रीया की बात कर रहे हैं। वह कोई गोली न हो कर एक स्पेशल डाइट प्लान है। जिसे चाइना स्टडी डाइट प्लान या होल फूड प्लांट बेस्ट डाइट के नाम से जाना जाता है। यदि चाइना स्टडी डाइट प्लान एक गोली के रूप में होता तो इसका आविष्कारक धरती को सबसे समृद्ध प्राणी होता। चूँकि यह एक गोली नहीं हैं, बाजार में कोई भी मीडिया अभियान इसका प्रचार नही करता। कोई भी बीमा कंपनी इसके लिए भुगतान नहीं करती। चूंकि यह गोली नहीं हैं और कोई भी व्यक्ति यह नहीं जान सका कि लोगों को स्वस्थ खानपान के नियम सिखा कर, धनी कैसे बनाया जा सकता है, तो यह सत्य अर्धसत्यों, अप्रमाणित दावों तथा असत्यों के नीचे दब गया। अब तक इस सत्य को छिपाने व इसका श्रेय छिनने के लिए अनेक शक्तिशाली प्रभाव कार्यरत थे। अब अगर हम तुलना करें कि जब हम चाइना स्टडी डाइट प्लान की तुलना आधुनिक दवाओं तथा सर्जरी की प्रक्रियाओं से करते हैं तो यह कैसे काम करता है। हमें इसे जानने के लिए तुलना के तीन मापदंडों का प्रयोग करना चाहिए:
(1) यह कितनी गति से कार्य करता है ? (शीघ्रता)
(2) यह कितने प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं को सुलझाने में सहायक है ? (व्यापकता)
(3) इसके माध्यम से मेरी सेहत में कितना सुधार होगा ? (गहराई)
आइये इन पर एक -एक करके नजर ड़ालें: शीघ्रता कोई दवा कार्यवाही आरंभ करने में कितना समय लगाती है? जब हम चाइना स्टडी डाइट प्लान की बात करते हैं तो इससे उत्पन्न होने वाले पोषण संबंधी लाभ देख कर दंग रह जाना पड़ता हैं। मधुमेह के रोगी जिस दिन से यह आहार लेना आरंभ करें, उसी दिन से उन पर नजर रखी जानी चाहिए ताकि आहार का प्रभाव सामने आते ही उनकी दवाएँ घटाई जा सकें। अन्यथा, उनकी रक्त शर्करा का स्तर इतना नीचे आ जाएगा कि वे हाइपोग्लाईसीमिया की चपेट में आ सकते हैं। आजकल लिए जाने वाले फास्टफूड असर तो करते हैं परन्तु विपरीत दिशा में। उदाहरण के लिए हाई फैटयुक्त मैकडोनाल्ड आहार (एग मैकमफिन, दो हैश ब्राउन पैटीज, कैफीनरहित पेय पदार्थ), इन्हें खाने के एक से चार घंटों के भीतर सीरम ट्राईग्लिसराइड का स्तर अधिक हो जाता हैं (इससे ह्रदय रोग, मधुमेह तथा अन्य रोगों का खतरा बढ़ता है) तथा धमनियाँ कड़ी हो जाती हैं (रक्तचाप में वृद्धि)। सामान्य अवस्था में आने में, अनेक घंटे लग जाते हैं। जब हम सीरियल्स व फलों से युक्त, कम वसायुक्त आहार लेते हैं तो ऐसा कुछ नहीं होता। अब आपको आगे की जानकारी पोस्ट के पार्ट (2) में मिलेगी