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फेफड़ों का कैंसर(lung cancer) के लक्षण बचाव व उपचार
फेफड़ो का कैंसर(lung cancer) की समस्या -

फेफड़ों का कैंसर (lung cancer)दुनिया भर में सामने आने वाला सबसे आम प्रकार का कैंसर है। यह दुनिया भर में होने वाली कैंसर संबंधी मृत्युदर का एक बड़ा करना है। भारत में हर साल फेफड़ो के कैंसर से लगभग 70 हजार मौतें होती हैं। स्तन कैंसर, गर्भाशय का कैंसर और मौखिक गुहा कैंसर के बाद फेफड़ों का कैंसर चौथे स्थान पर आता है। फेफड़ों का कैंसर पुरुषों में होने वाले कैंसर में दूसरे स्थान पर आता है और महिलाओं में छठे स्थान पर आता है।

भारत में होने वाले सभी कैंसरों का लगभग 90 फीसदी कारण बीडी, सिगरेट,हुक्का, गुटखा, तम्बाकू है अन्य 10 फीसदी लोगों में इस रोग का प्रमुख कारण पर्यावरण में कैंसरकारी तत्वों की मौजूदगी है।

फेफड़ों की कोशिकाओं जब अनियंत्रित होकर बढ़ने लगती है तो फेफड़ों के कैंसर का कारण बनती है। जैसे-जैसे कोशिकाओं की संख्या बढ़ती जाती है यह एक ट्यूमर (गांठ) बना देती हैं। ज्यादातर मामलों में फेफड़े के कैंसर का मुख्य कारण सिगरेट पीना पाया गया है। (कार्सिनोजेन्स) सिगरेट के धुएं में पाए जाने वाला एक रसायन हो हैं, जो फेफड़ों के कैंसर के कारक होते हैं। हालांकि, आजकल यह कैंसर अधिकतर उन लोगों में भी देखा जा रहा है, जिन्होंने कभी धूम्रपान किया ही नही है।

फेफड़ों के कैंसर से मतलब कैंसर के ऐसे प्रकार से है, जिसकी शुरूआत फैफड़ों से होती है। फेफड़े मानव शरीर की छाती में दो स्पंजी अंग होते हैं, जो व्यक्ति की श्वास लेने पर ऑक्सीजन को शरीर में पहुंचाते हैं और वहीं उसकी श्वास छोड़ने पर कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर छोड़ते हैं। सामान्य तौर पर जो व्यक्ति अत्यधिक ध्रूमपान करते हैं, उन्हें फेफड़ों के कैंसर होने की संभावना अधिक रहती है, लेकिन यह कैंसर अन्य नशीले पदार्थों जैसे गुटखा, तंबाकू आदि का सेवन करने से भी हो सकता है और इसके साथ में यदि कोई व्यक्ति ध्रूमपान करना छोड़ भी देते हैं, फिर भी इसकी संभावना बरकरार रहती है।

फेफड़ों के कैंसर के चरण-
प्रथम चरण - इसमें ट्यूमर केवल एक फेफड़े में पाया जाता है और लसिका ग्रथियों में नही फैलता है।
दूसरा चरण- इसमें कैंसर संक्रमित फेफड़ों के आसपास मौजूद लसीका ग्रन्थियों में भी फैल जाता है।
तीसरा चरण- यह दो भागों में बाँटा गया है
तीसरा ए - इसमें संक्रमित फेफड़े की तरफ स्थित श्वास नली, सीने की दीवार और डायाफ्राम के आसपास की लसीका ग्रथियों में कैंसर फैल जाता है।
तीसरा बी - इसमें कैंसर दूसरे फेफड़े या गर्दन में मौजूद लसिका ग्रन्थियों में फैल जाता है।
चौथा चरण - इसमें कैंसर पूरे शरीर और फेफड़ों के अन्य भागों में फैल जाता है।

फेफड़ो के कैंसर के लक्षण - नई खांसी जो ठीक नहीं होती, खांसी में खून आना, साँस लेने थोड़ी तकलीफ होना, छाती में दर्द रहना,आवाज बैठना, बिना कोशिश किए वजन कम होना, हड्डी में दर्द, सिरदर्द आदि मुख्य लक्षण है
फेफड़ो के कैंसर से बचाव के उपाय-
धूम्रपान नही करें - बीडी,सिगरेट आदि का सेवन बिलकुल नहीं करें। और अगर करते है तो आज से ही छोड़ दें। बच्चों से धूम्रपान के बारे में समझाएं ताकि वह इस खतरे से बच सके।
सेकेंड हैंड स्मोक से बचें- यदि आप धूम्रपान करने वाले के साथ रहते हैं या काम करते हैं, तो उसे छोड़ने के लिए आग्रह करें। नही तो आप पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा।उन क्षेत्रों से बचें जहां लोग धूम्रपान करते हैं।
फल और सब्जियों का अधिक सेवन करें- विभिन्न प्रकार के फलों और सब्जियों के साथ एक स्वस्थ आहार चुनें। विटामिन और पोषक तत्वों के खाद्य स्रोत सर्वोत्तम हैं।
रोजाना व्यायाम करें - यदि आप नियमित व्यायाम नहीं करते हैं, तो धीरे-धीरे शुरुआत करें। सप्ताह के अधिकांश दिनों में व्यायाम करने की कोशिश करें।
शक्कर को नहीं खाएं - चीनी युक्त भोजन से परहेज किया जाना चाहिये।
ग्रीन टी - फैफड़े के कैंसर में एक दिन में ग्रीन टी के दो कप का सेवन बहुत फायदेमंद होता है। थोड़ा सा शहद, इलायची और नींबू भी ग्रीन टी में डाल कर पी सकते है।
समुद्री सिवार- यह एक समुद्री सब्जी है जो आवश्यक खनिज से भरपूर होती है। यह मैक्रोबायोटिक आहार है, जो शरीर से विषाक्त पदार्थो को बाहर निकाल देता है जिसमें कि उच्च चिकित्सा शक्ति होती है। यह कैंसर के इलाज के लिए बहुत उपयोगी साबित हुई है।

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