उपवास (fasting) करने के सही तरीके एवं लाभ-
उपवास (fasting)की स्थिति में हमारी प्राणशक्ति पूर्णत: परम शक्ति के नजदीक रहती है जैसे उप प्रधान,प्रधान के सबसे नजदीक माना जाता है ऐसे ही उप का अर्थ नजदीक और वास का अर्थ रहना हैं अर्थात परमात्मा के नजदीक रहना।
परन्तु आज का मानव 'उपवास'शब्द से ही डरता है। आज के युग में उपवास करने में कई तरह की गलतिया भी की जाती हैं। इन्सान अपने मन के अनुकूल कोई न कोई आसान रास्ता निकाल लेता है।
अधिकतर उपवास में कुट्टू के आटे पकोड़े,पुडी,दूध व् दूध से बने और घी से बने पकवान को ले लिया जाता है। जो पचने में रोटी और चावल से भी अधिक भारी है। भूख को दबाने के लिए चाय कॉपी के इस्तेमाल से खाली पेट होने की वजह से आजकल के परिचलित उपवास पाचन तन्त्र के लिए हानिकारक है। इस तरह के उपवास से कोई लाभ नहीं होता है।
उपवास करते समय भूख लगने की स्थिति में कच्ची सब्जियां,पके फल एवं उनके रसों का प्रयोग करे ऐसा करने से उपवास का लाभ भले ही कम मिले लेकिन नुकसान तो नहीं होगा।
हमारी भारतीय संस्कृति में वर्ष में दो बार नवरात्रों के पर्व आते है। और उस समय मोसम में भी बदलाव होता है इन दिनों में प्राणशक्ति शरीर की विशेष सफाई में लग जाती है। अधिकतर लोगों को नजला,जुकाम,बुखार हो जाते है। इन तीव्र रोगों के द्वारा शरीर अपनी विशेष सफाई करता है
अगर व्यक्ति नवरात्रों में ठीक तरह से उपवास कर ले तो आने वाले छह महीने के लिए शरीर सर्दी,गर्मी सहन करने के लिए तैयार हो जाता है।
और यदि हम एक-दो दिन उपवास कर ले तो हमे मालूम पड़ेगा की उपवास के दोरान हमारी जिह्वा पर सफेदी आ जाती है। और पेशाब पीला आता है तथा पसीने में बदबु आती है।
माँ प्रकृति मल को मुँह,पेशाब,पसीने,पाखाने,और श्वास के द्वारा बहार निकालती है
दीर्घकालीन उपवास
1.पूर्ण उपवास अर्थात जलाहार -
यह उपवास तीव्र रोगों (नजला,बुखार,जुकाम,उल्टी,दस्त,)की अवस्था में जब हमारी प्राण शक्ति पूर्णत:अन्दर की सफाई में लगी होती है। तो एक-दो दिन पूर्ण उपवास करने से विशेष लाभ होता है।
2.आंशिक उपवास अर्थात पथ्याहार -
आंशिक उपवास को अर्ध उपवास भी कह सकते है। आंशिक उपवास करने की स्थिति में दिन में दो बार (सुबह,सांय) हरा नारियल पानी,सफेद पेठे का रस,कच्ची सब्जियां और फलों का रस लें। दोपहर में कच्ची सब्जियों के सलाद (टमाटर,खीरा,ककड़ी,शलगम ,गाजर )लें|
रात में मोसम के पके फल (खरबूजा,तरबूज,अमरुद,अनार,कीनू,मोसमी,संतरा,जामुन,लीची,)लें
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मन्द रोगों (दमा,उच्च रक्तचाप,शुगर,जोड़ों का दर्द )की अवस्था में आंशिक उपवास से शुरू करें। बीच-बीच में जब-जब तीव्र रोग आए तो उपरोक्त बताई गई तीव्र रोगों को ठीक करने की विधि को अपनाये।
3.आसन्न उपवास अर्थात रसाहार -
आसन्न उपवास का अर्थ है उपवास जैसी स्थिति में रहना। एक-दो दिन पूर्ण उपवास करने से हालत में सुधार होने पर फिर आसन्न उपवास करें। इसकी विधि हरा नारियल का पानी,पेठे का रस,कच्ची सब्जियां या फलों का रस, अथवा उबली हुई सब्जियों का पानी इनमें से रूचि अनुसार दिन में दो से चार बार अगर भूख का अहसास हो तो लें।
जिन स्थितियों में पूर्ण उपवास निषेध है वहां आसन्न उपवास करे मारक रोगी जैसे ह्रदय रोग,गुर्दे संबधी रोग,कैंसर, जिसमे व्यक्ति की जान को खतरा हो हालत सुधार होने तक आसन्न उपवास करें।
इस तरह बतायी गई युक्ति-युक्त उपवास विधि द्वारा धीरे-धीरे किस्तों में शरीर की सफाई को होते रहने दें । ऐसा करने से हमारा खून और कोषाणु साफ हो जायेगे। हमारा खून शरीर में से पोषण तत्व और ऑक्सीजन ठीक से लेकर शरीर के अलग-अलग भागों में विद्दमान कोषाणुओं को देता रहेगा
कोषाणु भी अपनी गंदगी और कार्बनऑक्साइड खून में देते रहेगे और खून में से पोषक तत्व लेते रहेगे । यह सब तभी संभव होगा जब हमारे खून और कोशिकाओं में आकाश तत्व भरपूर मात्रा में होगा प्रत्येक व्यक्ति को इस बात को स्वीकार करना होगा कि यह एकमात्र उपास से ही सम्भव है दूसरा कोई मार्ग नहीं है।