प्राणायाम (Pranayama) क्या है, और करने के फायदे प्राणायाम को सांस नियन्त्रण की प्रक्रिया समझा जाता हैं प्राणायाम में किए जाने वाले अभ्यास को देख कर यह ठीक लगता हैं,परन्तु इसके पीछे सच बात कुछ और ही हैं प्राणायाम दो शब्दों के मेल से बना हैं,
(प्राण और आयाम) 'प्राण' वह शक्ति हैं जो हमारे शरीर को जिन्दा रखती हैं,और हमारे मन को शक्ति देती हैं प्राण हमारे शरीर रूपी मशीन को सुचारू रूप से चलाने के लिए हमें शक्ति प्रदान करता हैं या बल देता हैं प्रणायाम के अभ्यास में प्राण अर्थात् सांस को एक आयाम पर ले जाया जाता हैं यानी की दो साँसों के मध्य में दूरी बढ़ाना,साथ ही श्वास और नि:श्वास की गति को नियन्त्रण करना इस प्रक्रिया में शामिल हैं। प्राणायाम को सांस को रोकने व निकालने की क्रिया कहा जाता हैं। कहें तो श्वास के संतुलित प्रवाह को ही प्राणायाम (Pranayama) कहते हैं। तो प्राण से हमारी जीवनी शक्ति का उल्लेख होता हैं,और 'आयाम' से नियमित करना। इसलिए प्राणायाम का अर्थ हुआ खुद की उर्जा या जीवन शक्ति को नियमित करना। (प्राण) वह शक्ति हैं जो सभी चीजों में मौजूद हैं, प्राणायाम श्वास के माध्यम से यह उर्जा शरीर की सभी नाड़ियों में पहुंचाती हैं यम शब्द का अर्थ हैं नियन्त्रण करने के लिए और योग में इसे विभिन्न नियमों या आचार को निरूपति करने के लिए प्रयोग किया जाता हैं। मगर प्राणायाम शब्द में प्राण के साथ यम नहीं आयाम की संधि की गई हैं। आयाम का मतलब हैं एक्सटेंशन या विस्तार करना, तो योग में सबसे बड़ी भूमिका श्वास की होती हैं यौगिक क्रिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल श्वास का किया जाता हैं जिससे न सिर्फ शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी काफी लाभ हैं, प्राणायाम का सीधा-सीधा मतलब होता हैं अपनी साँसों पर नियन्त्रण रखना, जानते हैं कितने तरह के प्राणायाम होते हैं इनके क्या लाभ हैं और इनके करने के क्या तरीके हैं - नाड़ी शोधन,शीतली प्राणायाम,उज्जयी प्राणायाम, कपालभाति प्राणायाम, दीर्गा प्राणायाम, विलोम प्राणायाम, अनुलोम प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम, मूर्छा प्राणायाम, पलवनी प्राणायाम। नाड़ी शोधन - इसमें अपने पैरों को क्रोस करके बैठना होता हैं, रीढ़ की हड्डी सीधी होती हैं। अंगूठे से अपने दायें नाक के छिद्र को दबाएँ और बाएँ नाक से श्वास बाहर निकालें। इस प्रक्रिया को दूसरी तरफ से भी दोहराएं। अब इस पूरी प्रक्रिया को 10 से 15 मिनट तक बार-बार दोहराएं।शीतली प्राणायाम -
इस प्राणायाम से बॉडी को ठंडा रखने का प्रयास किया जाता हैं। सबसे पहले सुखासन की स्थिति में बैठ जाए और आंखें बंद करे। अपने शरीर को ढीला छोड़े और हाथों को ज्ञान मूद्रा में घूटनो में रखे।जहां तक संभव हो सके अपने जीभ को बिना तनाव के बाहर निकाले।
जीभ के किनारों को रोल करे और एक नली के आकार की तरह बनाएं। इस नली से सांस ले। सांस लेने के बाद जीभ को वापस मुंह के अंदर ले लें और मुंह बंद कर ले। अब धीरे धीरे सांस को नाक से बाहर निकाले।आपको थोड़ी ठंडक महसुस होगी। ऐसी प्रक्रिया तीन चार बार और दोहराएं।
उज्जयी प्राणायाम -
इसमें समुन्द्र की लहरों जैसे सांसों से आवाज निकालना हैं। चेहरे, निचले जबड़े और होठों को ढीला छोड़ दें। कंठ द्वार को सिकोड़ें जिससे श्वास के साथ एक धीमी ध्वनि उत्पन्न हो। कंठ में श्वास के प्रवाह को महसूस करें।
पूरक करते हुए मानसिक रूप से "सो" शब्द को दोहरायें और श्वास की चेतनता को नाभि से कंठ तक अनुसरण करें। रेचक करते हुए मानसिक रूप से "हम" शब्द को दोहरायें और कंठ से नाभि तक श्वास चेतनता का अनुसरण करें।
कई श्वासों के बाद खेचरी मुद्रा करें अर्थात् यथा संभव कोमल तालु की ओर पीछे जिह्वा को मोड़कर ले जायें। इससे वायु नम हो जाती है और गला सूखता नहीं है। यदि यह मुद्रा असुविधाजनक हो जाये तो जिह्वा को कुछ क्षण के लिये आराम दें और फिर खेचड़ी मुद्रा में लौट आयें।
नियमित और निरन्तर श्वास लेना जारी रखें। इस प्रकार पूरक और रेचक 25 बार करें, फिर जालंधर बंध खोल दें और लगभग तीन मिनट तक सामान्य श्वास के साथ ऐसे ही बने रहें। यह एक चक्र है। इस व्यायाम को आगे 3-5 बार करें।
लाभ
रक्तचाप को विनियमित करता है और शरीर को विषहीन बनाता है। पूरे शरीर में आक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है। पाचन समस्या, उदर वायु, जी मिचलाने में लाभदायक होता है। हानिप्रद पर्यावरणीय प्रदूषणकारी तत्वों को निष्प्रभावी बनाता है।
कपालभाति प्राणायाम -
इसमें भी आपको उसी आसन में बैठना हैं, सामान्य तरीके से 2-3 बार सांस लें। इसके बाद आपको जोर से सांस अंदर लेना हैं,और उतने ही जोर से बाहर छोड़ना हैं। आपके सांस लेने और छोडने की प्रक्रिया का असर यहाँ आपके पेट पर दिखना चाहिए। इस क्रिया को 20 से 30 बार करें।
दीर्गा प्राणायाम -
इस क्रिया को लेटकर किया जाता हैं,तेज सांस लें ताकि आपका पेट फूले थोड़ी देर इसी मुद्रा में रहें और फिर धीरे-धीरे सांस बाहर की और छोड़े। दूसरी बार और तीसरी बार आपको और भी गहरी सांस अंदर लेनी हैं और ऐसे ही थोड़ी देर रोककर उसे बाहर छोड़ना हैं, इस क्रिया को 5-6 बार करें।
अनुलोम विलोम प्राणायाम -
सबसे पहले आप पद्मासन, सिद्धासन या फिर सुखासन में बैठ जाएं। अब अपने दाएं हाथ के अंगूठे से नाक के दाएं छिद्र को बंद लें और बाएं नाक के छिद्र से सांस भरें। अब अंगूठे के बगल की दो उंगलियों से बाएं नाक के छिद्र को बंद कर दें और दाएं हाथ के अंगूठे को दाई नाक से हटा लें और दाई नाक से सांस छोड़े।
अब यह समान प्रक्रिया बाई नाक से भी करें। प्रतिदिन यह प्राणायाम 15 मिनट जरुर करें। प्राणायाम के दौरान अपना ध्यान दोनों आंखों के बीच वाले भाग पर रखें इससे मन एकाग्रचित होगा। याद रहे इसे खाली पेट ही करें और इसके लिए सही समय सुबह का होता है वैसे आप अपनी सुविधानुसार दिन में कभी भी और कई बार कर सकते है।
भ्रामरी प्राणायाम -
इस प्राणायाम में आँखें और कान दोनों बंद रखते हैं। आप अपने कानों को अपने अंगूठों से बंद करें और अपनी अंगुलियों की मदद से अपनी आँखों को बंद करें, अब ॐ का उच्चारण करते हुए एक गहरी सांस लें और छोड़ें। इस प्रक्रिया को 10-15 बार करें।
भस्त्रिका प्राणायाम -
ठंड के दिनों में शरीर को गर्म रखता हैं तो इस प्राणायाम को करने से लाभ मिलता हैं। सबसे पहले आप पद्मासन में बैठ जाए। अगर पद्मासन में न बैठ पाये तो किसी आराम अवस्था में बैठें लेकिन ध्यान रहे आपकी शरीर, गर्दन और सिर सीधा हो। शुरू शुरू में धीरे धीरे सांस लें। और इस सांस को बलपूर्वक छोड़े। अब बलपूर्वक सांस लें और बलपूर्वक सांस छोड़े। यह क्रिया लोहार की धौंकनी की तरह फुलाते और पिचकाते हुए होना चाहिए। इस तरह से तेजी के साथ 10 बार बलपूर्वक श्वास लें और छोड़ें। इस अभ्यास के दौरान आपकी ध्वनि साँप की हिसिंग की तरह होनी चाहिए। 10 बार श्वसन के पश्चात, अंत में श्वास छोड़ने के बाद यथासंभव गहरा श्वास लें। श्वास को रोककर (कुंभक) करें। फिर उसे धीरे-धीरे श्वास को छोड़े। इस गहरे श्वास छोड़ने के बाद भस्त्रिका प्राणायाम का एक चक्र पूरा हुआ। इस तरह से आप 10 चक्र करें।
मूर्छा प्राणायाम -
इस आसन को करने के लिए सबसे पहले पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाएं। इसके बाद आँखें बंद कर ले । फिर सिर को पीछे झुकाएं और धीरे धीरे दोनों नासिका छिद्र से सांस लें। अब इसके बाद कुम्भक करें और शाम्भवी मुद्रा करते हुए स्थिर रहे । फिर धीरे धीरे सांस छोड़ते हुए सिर को सीधा कर ले । इस प्रकार एक चक्र पूरा हुआ। इस तरह से 3 से 5 चक्र करें और फिर धीरे धीरे इस के चक्र को बढ़ाते रहें।
