नारियल और मूंगफली Peanut भारत में सबसे सस्ते उपलब्ध होने वाले मेवे हैं, इसलिये इन दोनों मेवों की विशेष चर्चा करना उचित हैं। अनाज से मुक्त होने के बाद ये दो ही ऐसे ठोस किफायती मेवे हैं जिनको हम आहार में तुरंत शामिल कर सकते हैं। ये भारत की मुख्य उपज है इसलिये हमारे भोजन में
इनका ही अधिक समावेश होना चाहिए बादाम-पिस्ता काजू जैसे महंगे मेवे जब तक अधिक उपज कर,निर्यात को रोककर हमें सस्ते भावों में उपलब्ध नहीं होते तब तक हमें इनकी आवश्यकता भी नहीं है। महेंगे मेवें अधिक गुणकारक है, ऐसा कभी नहीं समझें। सब मेवे अपने आप में राजा हैं, जिस तरह फलों में आम, सेब या अंगूर की एक- दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती। प्रत्येक फल-मेवा सबसे पहले उन लोगों के लिए बढ़िया होता है जहाँ वह
जिस मौसम जलवायु और धरती पर पैदा होता हैं। मूंगफली और पिस्ता वास्तव में मेवे परिवार न होकर दाल परिवार के खाद्य हैं। परन्तु इनका मेवे जैसा अनोखा स्वाद, हमारा इसके प्रति आकर्षण और इसके प्रोटीन चर्बी की अधिकता के कारण मेवा वर्ग में सम्मिलित कर दिया गया है। ताज़ी, कच्ची मूंगफली खाने में अन्य मेवों की तरह दूध युक्त ,मीठी और स्वादिष्ट होती है। ताज़ी अवस्था में ही यह सुपाच्य होती है। सूख जाने के बाद इसको कच्चा खाना लाभदायक नहीं होता, बल्कि सूखी मूंगफली पाचन पर बोझ स्वरूप होती है। भीगकर ताज़ी अवस्था में आए वगैर प्रोटीन, चर्बी और स्टार्च जैसे पौषक तत्वों का अच्छी तरह पाचन नहीं होता। 7-8 घंटे पानी में भीग जाने के बाद ही इसका स्टार्च शर्करा में रूपांतरित होता है। प्रोटीन सुपाच्य एमीनो
एसिड में बदल जाता है, चर्बी घुलनशील हो जाती हैं,
एंजाइम्स और प्राण- तत्व अंकुरित होने के लिए जाग जाते है। यही एकमात्र मूंगफली सुपाच्य और खाने योग्य है। भिगोकर ही खाने का यह नियम सभी मेवों काजू, अखरोट, बादाम, पिस्ता इत्यादि पर लागू होता है। भिगोए बिना किसी भी आहार के पोषक तत्व एवं प्राण खुल नहीं पाते हैं। मूंगफली संपूर्ण प्रोटीनयुक्त मेवा हैं। बाल-बुद्धि और वयस्क के लिए आवश्यक पूर्ण प्रोटीन इसमें उपलब्ध होता है।
मूंगफली के हानिकारक पहलू - भूनी हुई मूंगफली सारे विश्व में मूंगफली भूनकर खाने के रूप में ही प्रिय है। मूंगफली का यह सबसे हानिकारक पहलू हैं। भूनी हुई मूंगफली मजबूत से मजबूत पाचन के लिए भी एक बहुत बड़ी चुनौती हैं साधारण पाचन वालों के लिए यह दुष्पाच्य आहार है। इसका हमेशा शौकिया तौर पर ही इस्तेमाल करें। भूनने के बाद मूंगफली की प्रोटीन और चर्बी कठोर होकर अच्छी तरह पच नहीं पाती। 30-35 प्रतिशत चर्बी से युक्त मूंगफली भूनने के बाद तले हुये आहार के अंतर्गत आकर हानिकारक हो जाती है। चर्बी के साथ कोई भी आहार आग में जब सिकता है तो चर्बी उसी आहार में मौजूद प्रोटीन और स्टार्च के अणु के चारों ओर लिपट जाती है जिसे हमारे पाचक रस तोड़ नहीं पाते /या पूरी तरह पचा नहीं पाते है। इस कारण अधपची मूंगफली गैस और बेहदजमी पैदा करती है। समोसे, कचोरी बाहर की चर्बी में तलते हैं। मूंगफली और चर्बीयुक्त सभी मेवे भूनते वक्त भीतर से तलते हैं। भूनी हुई मूंगफली सिर्फ गैस और बहदजमी पैदा करती है। भूनने के बाद यह अति अम्लकारक खाद्य बन जाती है।
वैसे भी सभी मेवों में मूंगफली की अम्लता सबसे उच्चतम है। भीग कर ताज़ी होने के बाद ही इसकी अम्लता में कमी आती है। इसका हानिकारक प्रभाव दुगुना हो जाता है ? जब भूनी मूंगफली को दूसरे आहार गुड़, चीनी, अनाज, दूध, दालों, फल इत्यादि) के साथ मिलाकर खातें है। चीनी, गुड़,के साथ ये बहुत जल्दी सड़कर, गैस और अपच पैदा करती है। जैसे मूंगफली की पट्टी, बर्फी, इत्यादि सभी भूने हुए मेवें मूंगफली की ही तरह चीनी गुड़ और अन्य ठोस आहारों के साथ सड़ते हैं। भूनने के 1 सप्ताह के बाद ही मूंगफली तथा मेवों की चर्बी में ऐसे विषकारक परिवर्तन आ जाते हैं कि यह कैंसर प्रोत्साहन खाद्य बन जाता है।
मूंगफली का सुरक्षित उपयोग- मूंगफली के उपयोग का सही और सुरक्षित
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तरीका है - इसे 8 घंटे भिगोकर अकेले आहार के रूप में खाना या फिर कच्ची सब्जियों के सलाद के साथ,
इसके अलावा अन्य किसी भी आहार यहाँ तक फल के साथ भी इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। उबली हुई मूंगफली भूनी हुई मूंगफली के मुकाबले बेहतर है। अधिक से अधिक इसके दिन भर के उपयोग की सीमा 50ग्राम से लेकर 200 ग्राम तक है। सामान्य पाचन वालों को 100 ग्राम से अधिक उपयोग नहीं करना चाहिये। रोगावस्था में
मूंगफली का उपयोग पूर्णतया निषेध है। कमजोर पाचनवाले लोग इसका सीमित ही उपयोग करें। इन दोनों के लिए बादाम और नारियल ज्यादा उपयुक्त हैं। उपरोक्त सभी नियम सभी मेवों पर लागू होते हैं। अच्छे और सम्पूर्ण पाचन के लिए फल हमेशा अलग खायें, मेवे हमेशा सलाद - सब्जियों के साथ खाएँ।
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