प्राणायाम का रहस्य (Mystery of pranayama) (तत्व और प्राण) हमारा शरीर पाँच तत्वों से बना हैं - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश यह तत्व क्रमशः स्थूल से सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होते जाते हैं।
शरीर में हड्डियां, मांसपेशियां, नासाजाल ये सब पृथ्वी तत्व हैं। बाहर की पृथ्वी और हाड़ मॉस, मज्जा में कोई तात्विक अंतर नहीं। शरीर के अंदर जो रुधिर बहता हैं वह बाहर के जल तत्व के सम्मान हैं, अपने ही शरीर में हम ताप का अनुभव करते हैं। यह ताप बाहर की अग्नि से बिलकुल भिन्न नहीं हैं। श्वास द्वारा जो वायु हमारे शरीर में अंदर बाहर आता-जाता हैं वह बाहर की वायु से कदापि भिन्न नहीं हैं। हमारे सम्पूर्ण शरीर में आकाश भी विद्यमान हैं। आकाश कहते हैं खाली स्थान को, कपाल के अंदर कंठ में, फेफड़ों में, उदर में तथा सम्पूर्ण नसों में खाली स्थान हैं। यह आकाश बाहर के आकाश के समान हैं। इन पांचो तत्वों में आकाश तत्व ही मुख्य हैं। इसी से ये चारों तत्व निकले हैं। आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल, जल से पृथ्वी यहाँ एक बात और ध्यान देने योग्य हैं कि जितना तत्व स्थूल से सूक्ष्म होगा, उतना-उतना उसका फैलाव अधिक होगा और उतना ही वह शक्तिशाली भी होगा। अगर हम पृथ्वी का अवलोकन करें तो हमें ज्ञात होगा कि इसके अंदर बहुत शक्ति हैं, भूकम्प से इसका अनुमान लग सकता हैं। हीरे, जवारात, सोना, चांदी यहाँ तक की अन्न, फल, इत्यादि सभी कुछ तो इसी तत्व से प्राप्त होता हैं वैज्ञानिकों ने अनुसंधान करके यह बताया हैं कि पृथ्वी 1/4 भाग में तथा जल 3/4 भाग में हैं। जल की सीमाएं पृथ्वी से कहीं अधिक हैं। इसकी शक्ति का अनुमान इसमें आएँ हुए तूफ़ान या ज्वार-भाटे के समय देख सकते हैं। इसमें कितने जिव -जन्तु, मोती ज्वारात के रूप में कितना कितना खजाना हैं इसका अंदाजा लगाना कठिन हैं। अग्नि का विस्तार इसमें भी अधिक है अपने चारों और हम जो भी चीज देखते हैं, उन सबमें अग्नि विद्यमान हैं। किसी भी वस्तु में अग्नि का स्पर्श कराइए, इसमें अग्नि प्रकट होने लगेगी यह वस्तु का रूप ही बदल देती हैं अग्नि जब प्रचंड होती हैं तब उसकी लपटें ऊपर की और उठती हैं। यह भी उसके विस्तृत स्वभाव का एक रूप हैं। वायु के संबंध में वैज्ञानिकों ने अनुसंधान करके बताया हैं कि पृथ्वी के 200 किलोमीटर दूरी पर चारों और अगर एक गोला खिंचा जाएँ तो उस सब स्थान में वायु विद्यामान हैं। वायु के तूफ़ान की गति से उसकी शक्ति का अनुमान स्वयं लग जाता हैं। आकाश तत्व का विस्तार तो इतना अधिक हैं कि उसको स्थूल आँख से देख पाना कठिन हैं। मन की दृष्टि से ही उसको देखा जा सकता हैं। इसकी शक्तियाँ अनन्त हैं अन्न (पृथ्वी तत्व) के बिना कुछ समय तक जीवित रहा जा सकता हैं। जल के बिना कुछ घंटों तक जीवित रह सकते हैं ताप और वायु के बिना कुछ मिनट तक प्राण को रखा जा सकता हैं पर आकाश के बिना एक पल भी रहना कठिन हैं हमारी धमनियों में विजातीय द्रव फस जाने से आकाश तत्व नहीं रहता, इसलिए प्राण पखेरू उड़ने में देर भी नहीं लगती।
