औषधीय गुणों (Medicinal Properties Jowar) से भरपूर गेहूं का ज्वारा कैंसर ऑक्सीजन को अनुसंधानकर्ता कैंसर कोशिकाओं को नेस्तनाबूत करने वाली 7.62 39 मि.मी. केलीबर की वह गोली मानते हैं, जो कैंसर कोशिकाओं को गेहूँ के ज्वारे रूपी ए.के. 47 बंदूक की तरह चुन-चुन कर मारती हैं।
सर्वप्रथम तो इसमें भरपूर क्लोरोफिल होता हैं, जो शरीर को ऑक्सीजन से संतृप्त कर देता हैं। क्लोरोफिल शरीर में हिमोग्लोबिन का निर्माण करता हैं, मतलब कैंसर कोशिकाओं को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती हैं और ऑक्सीजन की उपस्थिति में कैंसर का दम घुटने लगता हैं। गेहूँ के ज्वारों में विटामिन बी-12 समेत 13 विटामिन बी -17 या लेट्रीयल और सेलेनियम दोनों होते है। यह दोनों ही शक्तिशाली कैंसर रोधी हैं।
क्लोरोफिल और सेलेनियम शरीर की रक्षा-प्रणाली को शक्तिशाली बनाते हैं। गेहूँ का ज्वारा हल्का शारीय द्रव्य है,जो अम्लीय माध्यम की शौकीन कैंसर कोशिकाओं का जीना मुश्किल कर देता हैं। गेहूँ का ज्वारा विटामिन बी -12 समेत 13 विटामिन,कई खनिज जैसे सेलेनियम और 20 अमाइनो एसिड्स का स्त्रोत हैं। इनमें एंटीओक्सीडेंट एंजाइम सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेज और अन्य एंजाइम भी होते हैं।
एस.ओ.डी. सबसे खतरनाक फ्री-रेडिकल रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पिसीज को हाइड्रोजन पर ऑक्साइड ( जिसमें कैंसर कोशिका का सफाया करने के लिए एक अतितिक्त ऑक्सीजन का अणु होता हैं ) और ऑक्सीजन के अणु में बदल देता हैं। सन्न 1938 में महान अनुसंधानकर्ता डॉ. पोल गेरहार्ड सीजर, एम.डी. ने बताया था कि कैंसर का वास्तविक कारण श्वसन क्रिया में सहायक एंजाइम साइटोक्रोम ऑक्सीडेज का निष्क्रिय होना हैं।
सरल शब्दों में जब कोशिका में ऑक्सीजन उपलब्ध न हो या सामान्य श्वसन क्रिया बाधित हो जाए, तभी कैंसर जन्म लेता हैं। ज्वारों में एक हार्मोन एब्सीसिक एसिड (ए.बी.ए.) होता हैं जो हमें अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। डॉ लिविंग्स्टन व्हीलर के अनुसार एब्सीसिक एसिड कोरियोनिक गोनेडोट्रोपिन हार्मोन का निष्क्रिय करता हैं और वह ए.बी.ए. को कैंसर उपचार का महत्वपूर्ण पूरक तत्व मानती थी। डॉ. लिविंग्स्टन ने पता लगाया था कि कैंसर कोशिका कोरियोनिक गोनेडोट्रोपिन से मिलता जुलता हार्मोन बनाती हैं।
उन्होंने यह भी पता लगाया कि गेहूँ के ज्वारे को काटने के 4 घंटे बाद उसमें ए.बी.ए. की मात्रा 40 गुना ज्यादा होती हैं।अत: उनके मतानुसार ज्वारे के रस को थोड़ा सा ताजा और बचा हुआ 4 घंटे बाद पीना चाहिए। गेहूँ के ज्वारे में अन्य हरी तरकारियों की तरह भरपूर ऑक्सीजन होती हैं। मष्तिष्क और संपूर्ण शरीर उर्जावान तथा स्वस्थ रखने के लिए भरपूर ऑक्सीजन आवश्यक हैं।
डॉ बरनार्ड जेसन के अनुसार गेहूँ के ज्वारे का रस कुछ ही मिनटों में पच जाता हैं और इसके पाचन में बहुत कम उर्जा खर्च होती हैं।
यह कीटाणुरोधी है, उन्हें नष्ट करता है और उनके विकास को बाधित करता हैं।
यह शरीर में हानिकारक पदार्थो (टॉक्सिंस), भारी धातुओं और शरीर में जमा दवाओं अवशेष का विसर्जन करता हैं।
यदि इसका सेवन 7- 8 महीने तक किया जाए तो यह मुहासों और उनसे बने दाग,धब्बे और झाइयाँ सब साफ कर देता हैं।
यह त्वचा के लिए प्राकृतिक साबुन का कार्य करता हैं और शरीर को दुर्गन्ध रहित रखता हैं।
यह दांतों को सड़न से बचाता हैं, यदि 5 मिनट तक गेहूँ के ज्वारे का रस मुहँ में रखे, तो यह दांत का दर्द ठीक करता हैं।
इसके गरारे करने से गले की खराश ठीक हो जाती हैं। गेहूँ के ज्वारे का रस पीने से शरीर स्वस्थ, उर्जावान, सहनशील, आध्यात्मिक और प्रसन्नचित्त बना रहता हैं।
ज्वारे का रस पीने से बाल समय से पहले सफेद नहीं होते, गेहूँ के ज्वारे का रस नियमित पीने से एग्जिमा और सोरायसिस भी ठीक हो जाता हैं।
यह पाचन शक्ति को बढ़ाता हैं, यह समस्त रक्त संबंधी रोगों के लिए रामबाण औषधि हैं।
ज्वारे के रस का एनीमा लेने से आँतों और पेट के अंगों का शोधन होता हैं,यह कब्जी ठीक करता हैं।
यह उच्च रक्तचाप कम करता हैं और रक्त वाहिकाओं का विस्तारण करता हैं, यह स्थूलता या मोटापा कम करता हैं क्योंकि यह भूख कम करता हैं,बुनियादी चयापचय दर (bmr) और शरीर में रक्त के संचार को बढ़ाता हैं।
घर पर गेहूँ के ज्वारे उगाने की विधि -
आवश्यक सामान घर पर गेहूँ के ज्वारे बनाने के लिए इन चीजों की आवश्यकता होगी। अच्छी किस्म के जैविक गेहूँ के बींज,अच्छी उपजाऊ मिटटी और उम्दा जैविक या गोबर की खाद। मिटटी के 10-12 व्यास के 3-5 गहरे सात गमले जिसमें नीचे छेद भी हों। आप अच्छे प्लास्टिक की नाप की गार्डनिंग ट्रे जिसमें नीचे कुछ छेद हो, भी ले सकते हैं। गेहूँ भिगोने के लिए कोई पात्र या जग ले सकते हैं। पानी देने के लिए स्प्रे बोटल या पौधों को पानी पिलाने वाला झारा। मिक्सी या ज्यूसर।
विधि - हमेशा जैविक बीज ही काम में लें, ताकि आपको हमेशा मधुर व उत्कृष्ट रस प्राप्त हो जाए विटामिन और खनिज से भरपूर हो। रात को सोते समय लगभग 100 ग्राम गेहूँ एक जग में भिगो कर रख दें। सभी गमलों के छेद को एक पतले पत्थर के टुकड़े से ढक दें। अब मिटटी और खाद को अच्छी तरह मिलाएं। गमलों में मिटटी की दो ढाई इंच मोटी परत बिछा दें और पानी छिड़क दें। ध्यान रहे मिटटी में रासायनिक खाद या कीटनाशक के अवशेष न हो और हमेशा जैविक खाद का ही उपयोग करें।
पहले गमले पर रविवार,दूसरे गमले पर सोमवार इस प्रकार सातों गमलो पर सातों दिनों के नाम लिख दें।अगले दिन गेहूँ को धोकर निथार लें। मानलो आज रविवार हैं तो उस गमले में,जिस पर आपने रविवार लिखा था, गेहूँ की एक परत के रूप में बिछा दें। गेहूँओं के ऊपर थोड़ी मिटटी डालें और पानी से सींच दे। गमले को किसी छायादार स्थान जैसे बरामदे या खिड़की के पास रखें, जहाँ पर्याप्त हवा और धूप आती हैं पर धूप की किरणें सीधी गमलों पर नहीं पड़ती हो।
अगले दिन सोमवार वाले गमलें में गेहूँ बो दीजिए और इस तरह रोज एक गमले में गेहूँ बोते जाइए। गमलों में रोजाना कम से कम दो बार पानी दें ताकि मिटटी नम और हल्की गीली बनी रहे। शुरू के दो-तीन दिन गमलों को गिले अखबार से भी ढक सकते हैं जब गेहूँ के ज्वारे एक इंच से बड़े हो जाए तो एक बार ही पानी देना पर्याप्त रहता हैं। पानी देने के लिए स्प्रे बोटल का प्रयोग करें। गर्मी के मौसम में ज्यादा पानी की आवश्यकता रहती हैं। पर हमेशा ध्यान रखें कि मिटटी नम और गीली बनी रहे और पानी की मात्रा ज्यादा भी न हो।
सात दिन बाद 5-6 पत्तियों वाला 6-8 इंच लम्बा ज्वारा निकल आएगा। इस ज्वारे को जड़ सहित निकालें और पानी से अच्छी तरह धोएं । इस तरह आप रोज एक गमले के ज्वारे बोते भी जाइये ताकि आपको नियमित ज्वारे मिलते रहे। अब धुले हुए ज्वारों की जड़ काट कर अलग कर दें तथा मिक्सी के छोटे जार में थोड़ा पानी डालकर पीस लें और चलनी से गिलास में छानकर प्रयोग करें। ज्वारों के बचे हुए गुददे को आप त्वचा पर निखार लाने के लिए मल सकते हैं।
सेवन का तरीका -
ज्वारे का रस सामान्यत: 60- 120 एम.एल. प्रति दिन या हर दूसरे दिन खाली पेट सेवन करें। यदि आप किसी बिमारी से पीड़ित है, तो 30-60 एम.एल. रस दिन में तीन चार बार तक लें सकते हैं। इसे आप सप्ताह में 5 दिन सेवन करें। कुछ लोगों को शुरू में रस पीने से उबकाई सी आती हैं, तो कम मात्रा से शुरू करें और धीरे-धीरे मात्रा बढायें। ज्वारे के रस में फलों और सब्जियों के रस जैसे सेब फल,अनन्नास आदि के रस को मिलाया जा सकता हैं।
हाँ इसे कभी भी खट्टे रसों जैसे नींबू, संतरा आदि के रस में नहीं मिलाएं क्योंकि खटाई ज्वारे के रस में विद्यमान एंजाइम्स को निष्क्रिय कर देती हैं। इसमें नमक चीनी या कोई अन्य मसाला भी नहीं मिलाना चाहिए। ज्वारे के रस की 120 एम.एल. मात्रा बड़ी उपयुक्त मात्रा है और एक सप्ताह में इसके परिणाम दिखने लगते हैं। डॉ. एन. विग्मोर ज्वारे के रस के साथ अपक्व आहार लेने की सलाह भी देती थी।
गेहूँ के ज्वारे चबाने से गले की खारिश और मुहँ की दुर्गन्ध दूर होती हैं। इसके रस के गरारे करने से दांत और मसूड़ों के इन्फेक्शन में लाभ मिलता हैं। स्त्रियों को ज्वारे के रस का डूश लेने से मूत्राशय और योनि के इन्फेक्शन, दुर्गन्ध और खुजली में भी आराम मिलता हैं। त्वचा पर ज्वारे का रस लगाने से त्वचा का ढीलापन कम होता हैं और त्वचा में चमक आती हैं। और इसमें सूर्य की एक असीम उर्जा भी समाई हुई हैं, कई लोग इसे ''सूर्य का तरल प्रकाश'' भी कहते हैं। यह ईश्वर की दी हुई एक विशेष नियामत हैं, उत्कृष्ट रक्त शोधक हैं और कैंसर जैसी जान लेवा बिमारी के उपचार में बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
क्लोरोफिल- गेहूँ के ज्वारे का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है क्लोरोफिल नामक विशेष प्रकार की कोशिकाओं में होता हैं। क्लोरोप्लास्ट सूर्य की किरणों की सहायता से पोषक तत्वों का निर्माण करते हैं। यही कारण हैं कि वैज्ञानिक डॉ.बशरर क्लोरोफिल को ''संकेद्रित सूर्यशक्ति''कहते हैं। वैसे तो हरे रंग की सभी वनस्पतियों में क्लोरोफिल होता हैं, किन्तु गेहूँ के ज्वारे का क्लोरोफिल श्रेष्ट हैं, क्योंकि क्लोरोफिल के अलावा इनमें 100 अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं। सभी जानते हैं कि मानव रक्त में हिमोग्लोबिन होता है।
इस हिमोग्लोबिन में एक लाल रंग का द्रव्य होता हैं जिसे हीम कहते हैं। हीम और क्लोरोफिल की रासायनिक संरचना में बहुत समानता होती हैं। दोनों में कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के परमाणुओं की संख्या तथा उनका विन्यास लगभग एक जैसा होता हैं। हीम और क्लोरोफिल की संरचना में केवल एक ही अंतर हैं, क्लोरोफिल के केंद्र-स्थान में मेग्नीशियम होता हैं,जबकि हिमोग्लोबिन के केंद्र-स्थान में लौहा होता है।
हमारा रक्त हल्का क्षारीय है और उसका हाइड्रोजन अणु गुणांक ph 7.4 हैं। ज्वारे का ज्यूस भी हल्का क्षारीय है और उसका भी ph 7.4 हैं। इसलिए ज्वारे का जूस शीघ्रता से रक्त में अवशोषित हो जाता है और शरीर के उपयोग में आने लगता हैं। गेहूँ के ज्वारे से मानव को संपूर्ण पोषण मिल जाता हैं। 23 किलो विभिन्न तरकारियों जितना पोषण 1 किलो गेहूँ के ज्वारे के रस से प्राप्त हो जाता हैं। सिर्फ ज्वारे का ज्यूस पीकर मानव पूरा जीवन बिता सकता हैं।
100 ग्राम ताजा ज्यूस में 90-100 मि.ग्रा.क्लोरोफिल प्राप्त हो जाता हैं। क्लोरोफिल से हमें मेग्नीशियम प्राप्त होता हैं। हमारी प्रत्येक कोशिका में मेग्नीशियम भले ही सूक्ष्म मात्रा में होता हैं, परन्तु यह शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता हैं संपूर्ण शरीर में लगभग 50 ग्राम मेग्नीशियम होता हैं। मेग्नीशियम हमारी अस्थियों के निर्माण के लिए भी आवश्यक खनिज हैं। यह नाड़ियों और मांसपेशियों को तनाव रहित अवस्था में रखता हैं। शरीर में कैल्शियम और विटामिन-सी का संचालन नाड़ियों और मांसपेशियों की उपयुक्त कार्य कुशलता के लिए मैग्नीशियम आवश्यक हैं।
कैल्शियम - मैग्नीशियम की सन्तुलता बिगड़ जाने से स्नायु-तन्त्र दुर्बल हो सकता हैं। मैग्नीशियम शरीर के भीतर लगभग तीन सौ एंजाइम्स का आवश्यक घटक हैं। रक्त में मैग्नीशियम के स्तर, उच्च रक्तचाप तथा मधुमेह में स्पष्ट संबंध देखा गया हैं। व्यायाम एवं शारीरिक मेहनत करने वाले लोगों को मैग्नीशियम संपूरकों की आवश्यकता हैं। मैग्नीशियम की कमी से महिलाओं में कई समस्याएं दिखाई देती हैं, जैसे पांवों की मांसपेशियां कमजोर होना ( जिससे रेस्टलेस लेग सिंड्रोम होता है ), पांवों में बिवाइयां फटना, पेट की गड़बड़ी, एकाग्रता में कमी, रजोनिवृत्ति संबधी समस्याओं का बढ़ना मासिक-धर्म पूर्व तनाव में वृद्धि आदि।
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क्लोरोफिल से लाभ - क्लोरोफिल हमें तीन प्रकार से लाभ देता हैं।
. शोधन - घावों के लिए क्लोरोफिल अत्यंत प्रबल कीटाणुनाशक हैं। यह फंगसरोधी है और शरीर से टॉक्सिंस का विसर्जन भी करता हैं। यह रोग पैदा करने वाले कई जीवाणुओं को नष्ट करता हैं और उनके विकास को बाधित करता हैं यकृत का शोधन करता हैं।
. एंटीइंफ्लेमेट्र्री - यह शरीर में इंफ्लेमेशन को कम करता हैं। अत: आर्थ्राइटिस आमाशय - शोध, आंत्र-शोध, गले की खराश आदि में अत्यंत लाभदायक हैं।
. पोषण - यह रक्त बनाता हैं,आँतों के लाभप्रद कीटाणुओं को भी पोषण देती हैं।