कुम्भक प्राणायाम (Kumbhak Pranayama)से करे अपनी कुंडलिनी शक्ति जाग्रत!

कुम्भक प्राणायाम (Kumbhak Pranayama)से करे अपनी कुंडलिनी शक्ति जाग्रत!

कुम्भक प्राणायाम(Kumbhak Pranayama) को जानने से पूर्व हमे ये जानना आवश्यक है की प्राणायाम क्या है -

असल में इन प्राणायामो को करने से सिर्फ शारीरिक रोगों से ही छुट्टी मिलती है,जबकि असली कहानी तो इसके आगे से शुरू होती है,प्राणायाम का कार्य यही तक सीमित नही होता...प्राणायाम योग का एक मुख्य भाग है ।

इसके द्वारा साँस की गति को नियंत्रित करके शारीरिक,मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किये जाते हैं...और साँस की गति को नियंत्रण करने के लिए बंधो का विशेष महत्व है ...यानि आप ऐसा समजे की कुम्भक और बंध लगने पर ही असल प्राणायाम की शुरुआत होती है,

बंध का अर्थ -

प्राणवायु को अन्दर रोककर यानि कुम्भक करके शरीर दुआरा बंध लगाना (रूकावट, कसना, पकड़ना, बांधना, सिकोड़ना, शरीर के विभिन्न अंगो को सिकोड़ना तथा कसना) बंध कहलाता है ...जैसे आपने कमरे के गेट को बंद किया यानि आप ऐसा समजे की आपने कुम्भक किया और उसी गेट के जब आप कुण्डी लगा दे तो वो बंध कहलायेगा।

प्राणायाम में एक विशेष तरीके से साँस अंदर ली जाती है और बाहर निकाली जाती है या रोकी जाती है। साँस अंदर लेने को पूरक (Poorak) , बाहर निकालने की क्रिया को रेचक (Rechak) कहते है और सांस को अन्दर रोकने की क्रिया को कुम्भक (Kumbhak) कहा जाता है।

और कुम्भक ही वो प्राणायाम है जिसके माध्यम से आप अपनी कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर अध्यात्म के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते है अब आपके मन में सवाल उठेगा की तो किस तरह हम कुम्भक प्राणायाम कर सकते है, प्राणायाम का अभ्यास सुबह सूर्योदय से पूर्व ही करना चाहिए क्योकि उस समय प्राणशक्ति एक दम शुद्ध होती है और खुले स्थान में ही करना चाहिए

अगर आप शाम को प्राणायाम का अभ्यास करते है तो सूर्यास्त के बाद करे ...खाली पेट ही अभ्यास करना चाहिए , भोजन करने के 4 घंटे पश्चात् व् आधा घंटे पूर्व प्राणायाम का अभ्यास किया जा सकता है अभ्यास करते समय शरीर पर मोसम के अनुकूल वस्त्र हो, वस्त्र अधिक कसे हुए नही होने चाहिए

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किन व्यक्तियों को कुम्भक नही करना चाहिए

दमा,हाई ब्लड प्रेशर,हाईपरटेंशन से पीड़ित रोगियों को कुम्भक नही करना चाहिए इसके साथ ही आपको ये भी पता होना चाहिए की प्राणायाम की शुरुआत में कभी भी कुम्भक नही करना चाहिए ...प्राणायाम की शुरुआत में केवल स्वास को गहरा लेने और छोड़ने का ही अभ्यास किया जाना चाहिए लगभग 3 महीने बाद आप धीरे धीरे कुम्भक करना शुरु करेंगे और धीरे धीरे ही बंध लगाने का भी अभ्यास किया जायेगा..

प्राणायाम आसन पर बैठ कर करना चाहिए।

सुखासन ( पालथी लगा कर बैठना ) , सिद्धासन या पद्मासन इनमे से जिस अवस्था में आसानी से ज्यादा देर बैठ पायें उसी अवस्था में आप Pranayam करे, यानि आपका कम से कम 1 घंटे का आसन तो सिद्ध होना ही चाहिये बिना हिले डुले और बिना पेरो को बदले,अभी हम शुरुआत आंतरिक कुम्भक से करेंगे...आसन पर बेठ जाए और हथेलियों को घुटनों पर रखें। आंखों को बंद कर पूरे शरीर को ढीला कीजिए।

धीरे-धीरे गहरी सांस अंदर (पूरक) लेकर सांस को अंदर रोक (अंतर्कुम्भक) लीजिए और सांस को अन्दर ही रोके रखे...जब आपका साँस टूटने लगे तब सांस को धीरे धीरे ही बाहर छोड़ दीजिये और बाहर भी रोककर रखे यानि बाह्य कुम्भक करे..

.अब यहां पर सांस घबराहट की वजह से 3 या 4 सेकेंड तक ही रुक पाती है फिर रिलेक्स हो जाये आधे मिनट के रेस्ट के बाद पुनह इसका अभ्यास करे और 10 से 12 प्राणायाम ही करे इससे ज्यादा प्राणायाम नही करना है फिर ध्यान का ही अभ्यास करना है

जब बल पूर्वक सांस को रोक लिया जाता है तो उसका प्रभाव सूक्ष्म शरीर पर पड़ता है और जब अभ्यास बढ़ता जाता है तो उसका प्रभाव चित्त पर पड़ने लगता है चित्त पर जब प्रबाव पड़ता है तो चित्त पर स्थित मलिनता यानि तमोगुण नष्ट होने लगता है और ये नष्ट तभी होता है जब अभ्यासी के अन्दर घबराहट सी होती है (घबराहट यानि अब हमे स्वास छोड़ देनी चाहिए )

अभी इस लेख में आपको आंतरिक कुम्भक और बाह्य कुम्भक के बारे में बताया गया है अगर इस लेख से संबंधित आपका कोई सवाल हो तो आप निचे कमेंट करके पूछ सकते है अगले लेख में आप जानेगे बंधो के बारे में की किस तरह बंध लगाये जाते है

प्राणायाम करने से पूर्व की आवश्यक सुचना ⇓

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