चाइना स्टडी डाइट प्लान (China study diet plan) के फायदे और अनुभव
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चाइना स्टडी डाइट प्लान (China study diet plan) के फायदे और अनुभव संसार में आपकी प्रसन्नता का नाश करने वाला सबसे बड़ा कारण एक ही है, किसी भी दीर्घकालीन रोग के साथ विवश हो कर जीवित रहना!यदि आपके पहले से स्टैंट लगवाया हुआ है
यानी आपकी एंजियोप्लास्टी हो चुकी है, या आप बाईपास सर्जरी का अनुभव ले चुके हैं आप कुछ समय से कोलेस्ट्रोल घटाने की दवाएँ ले रहे हैं, आप दवाओं के माध्यम से अपने ब्लड शुगर के स्तर को घटाने का प्रयत्न कर रहे हैं या आप सालों से हाइपरटेंशन के लिए दवाईयां लेते आ रहे हैं और अचानक ही आपको पता चलता है कि आपको उनकी कभी जरूरत ही नहीं थी, आपको केवल मुनाफा कमाने के लिए षड्यंत्र का शिकार बनाया गया है और हो सकता है कि आप रोग से नहीं बल्कि इस आधुनिक पद्धति के कारण अपने प्राण गंवा बैठें। तो आपको कैसा अनुभव होगा ? खासतौर पर नामी कार्डियोलोजिस्टस यानी ह्रदय रोग विशेषज्ञों पर तो करारी चोट हैं।
श्रीमान बी ने 58 वर्ष की आयु में, 2 सितंबर 2004 को, 'फोर-वैसल कोरोनरी बाईपास ग्र्रफ्टिंग' करवाई। फिर 2005 में उन्हें आपातकालीन प्लूरल एफ्युजन सर्जरी (फेफड़े) करवानी पड़ी। इसके बाद 11 फरवरी 2010 में उन्हें दो कोरोनरी स्टैंट लगवाने पड़े (एंजियोप्लास्टी) और 2011 तक वे मृत्यु शैय्या तक पहुंच चुके थे। शरीर का द्रव्यमान कुछ इकाई तक घट गया था। उन्हें चाइना स्टडी डाइट प्लान के बारे में पता चला और उन्होंने छह माह तक उसका पालन करने का निर्णय लिया, हालांकि वे पूरी कड़ाई से इस चाइना स्टडी डाइट प्लान का पालन नहीं कर पाए किन्तु फिर भी उनके ह्रदय की बंद आर्टरीज खुल गई, कैल्शियम का जमाव घट गया, स्टैंट निकल गए, वजन सामान्य हो गया और वे एक सक्रिय तथा ऊर्जा से भरपूर जोशीले इंसान बन गए, जैसे कि वे तब थे, जब वे यू. एस. ए के राष्ट्रपति पद पर थे। अगस्त 2011 में सी.एन.एन को विशेष रूप से दिए गए एक इंटरव्यू में, श्रीमान बिल क्लिंटन ने अपनी सेहत में सुधार का राज खोला। जिन लोगों ने 1986 से पौधों पर आधारित आहार लेना आरंभ किया व साथ ही डेयरी उत्पाद व मीट तथा चिकन आदि का भी सेवन बंद कर दिया, उनमें से 82 प्रतिशत लोगों की सेहत में सुधार हुआ। उनकी आर्टरीज का जमाव खुल गया और दिल में जमा कैल्शियम भी साफ हो गया। यह मुहिम डॉ. टी कैंपबेल ने चलाया था, जिन्होंने चाइना स्टडी डाइट प्लान तैयार किया था। इस प्रकार अब तक हमारे वैज्ञानिकों ने पच्चीस वर्ष का अनुभव पा लिया था।
चलिए अब आपको एक और श्रीमान बी का उदाहरण बताते हैं - 1977 में, 4 वर्ष की आयु में पता चला कि उसके ह्रदय में एक छिद्र था। डॉक्टरों ने उस छिद्र को भरने के लिए ओपन हार्ट सर्जरी करने का परामर्श दिया। यद्धपि सर्जन उस छिद्र को भरने में सफल रहे परन्तु वे लगातार उस बच्चे के माता- पिता से यही कहते रहे कि उसे किसी भी तरह की कड़ी शारीरिक गतिविधि से दूर रहना चाहिए। उस लड़के को अपने स्कूल व कोलेज जीवन के दौरान किसी भी तरह की शारीरिक गतिविधि व सक्रिय खेलों से दूर रखा गया। अंतत: 2005 में, उसे पता चला कि ह्रदय की शक्ति कुछ ख़ास किस्म के भोज्य पदार्थो व जीवन शैली के सुधारों में समाई हैं। उसने 2 वर्ष के लिए चाइना स्टडी डाइट प्लान का पालन किया और अपने ह्रदय की खोई शक्ति वापिस पा ली। उस युवक ने एक मिनट में 198 पुशअप करते हुए, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकोर्ड (2007) में अपना नाम दर्ज किया और पिछला रिकोर्ड तोड़ा जो कि केनेडा के रॉय बर्जर ने एक मिनट में 138 पशुअप करके बनाया गया था। कितना ही गंभीर क्यों न हो, भले ही रोग कितना भी घातक क्यों न हो। आप फिर भी अपने रोग की दशा में सुधार ला सकते हैं, और उसे मिटा सकते हैं, फिर चाहे वह मधुमेह हो या उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रोल हो या फिर 95 प्रतिशत के जमाव वाली आर्टरीज। यदि आप खतरों से भरपूर सर्जरी व आजीवन दवाएँ लेने की मजबूरी से बचना चाहते हैं,तो आपको केवल एक स्पेशल न्यूट्रीशनल डाइट प्लान अपनाना होगा।
दो ह्रदयरोग विशेषज्ञों, डॉ लैस्टर मोरिसन तथा डॉ जॉन डब्ल्यू गोफमैन ने 1940 व 1950 के दशक में अध्ययन हुआ ताकि वे जान सकें जिन लोगों को पहले से दिल का दौरा पड़ चुका हो, उन पर इस आहार का कैसा प्रभाव होता है। डॉक्टरों ने इन रोगियों को एक विशेष आहार पर रखा (जैसे कि चाइना स्टडी डाइट प्लान में होता है) - इस दिनचर्या के कारण दिल के रोगों की पुनरावृत्ति में नाटकीय रूप से कमी आई। नाथन प्रिटिकिन ने 1960 व 1970 के दशक में यही किया। फिर क्लीवलैंड क्लिनीक के डॉ. कोलवैल एसिलस्टीन व डॉ डीन ऑरनिश ने 1980 व 1990 के दशक में इसे ओर आगे बढ़ाया। उन दोनों ने अलग-अलग काम करते हुए यह दर्शाया कि विशेष आहार से न केवल रोगों को नियंत्रित किया जा सकता है बल्कि उन्नत ह्रदय रोगों को समाप्त भी किया जा सकता है। अब प्रश्न यह उठता है कि अगर कोई व्यक्ति केवल एक सुनिश्चत आहार ग्रहण करने से ही अपने ह्रदय रोगों से मुक्ति पा सकता है तो ये रोग पूरे संसार में सबसे अधिक क्यों है ? एंजियोप्लास्टी व बाईपास सर्जरी जैसी खतरनाक प्रक्रियाएं या मधुमेह के लिए महंगी दवाएँ, गंभीर दुष्परिणामों सहित कोलेस्ट्रोल या उच्च रक्तचाप आदि इतने क्यों फल-फूल रहे हैं कि जिन अस्पतालों में ह्रदय रोग विभाग हैं,पूरे अस्पताल के लिए लगभग 40 प्रतिशत आय का माध्यम बन गए हैं ?
इस प्रश्न का उत्तर बिलकुल साफ है= उनका उद्द्देश्य है मुनाफा कमाना!
जो रोगी के ह्रदय की छोटी से छोटी ब्लोकेज को खोलने के लिए भी एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी करने के लिए उत्सुक रहते हैं। मनुष्य ही एकमात्र ऐसा जीव है, जो ह्रदय रोग की जटिलताओं के कारण मृत्यु को प्राप्त होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मुनाफा कमाने के लिए, रोगी पर कुछ ऐसे इलाज किए जाते हैं जिनके बिना भी रोगी को ठीक किया जा सकता था। केवल मुनाफा कमाने के लिए, रोगी की जान को बड़ी आसानी से जोखिम में डाल दिया जाता है। क्या आपने कभी सुना कि दिल का दौरा पड़ने से किसी बिल्ली की मौत हो गई ? 1959 में नार्थवैस्टर्न विश्वविद्यालय के शोधकर्ता लगभग बारह वर्षो के गहन प्रयोगों व शोधों के बाद, एक प्रयोगशाला जीव को दिल के दौरे से ग्रस्त करने में समर्थ हो सके। उन्होंने भारत से रिसस प्रजाति के पन्द्रह बन्दर मंगवाए और उन्हें कोलेस्ट्रोल युक्त मंकी चाउ दिया गया, पानी में मक्खन तथा क्रीम में डूबी ब्रेड खिलाई गई। परन्तु उनमें से अनेक फलमीनेंट टी बी के कारण मारे गए। ऐसे बन्दर, जिन्हें बिलकुल पालतू नहीं बनाया जा सकता था,दिए गए भोजन में से, थोड़ा सा ही भोजन खाते और बाकी सब अपने पिंजरों से बाहर फ़ेंक देते। उनमें से कुछ पिंजरों से भाग निकलते, शोधकर्ताओं को घंटों उनके पीछे भागना पड़ता, बन्दर ऊपर टंगे लैंपों से जाकर लटक जाते। सालों की कड़ी मेहनत आखिर में रंग लाई। एक मादा बन्दर की तस्वीर खींचने के लिए उसे बाहर लाने का प्रयास किया जा रहा था परन्तु वह पूरी ताकत से इसका विरोध कर रही थी यह दबाव इतना अधिक था, कि आधे घंटे बाद ही वह निढाल हो गई और उसकी मौत हो गई। जब शोधकर्ताओं ने शव का परिक्षण किया तो पाया कि उसे तीन बार थ्रम्बोटिक ऑक्लूशन(THROMBOTIC OCCLUSIONS) और एक मैसिव मायोकार्डियल इंफार्कशन (MASSIVE MAYOCARDIAL INFARCTION) हुआ था। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि वे प्रयोग किए जाने वाले जानवरों में दिल के दौरे का पहला प्रयोग करने में सफल रहे। पशुओं में दिल का दौरा पड़ने जैसी घटना असंभव है तो फिर मनुष्यों में यह समस्या इतनी आम क्यों हैं ? प्रत्येक विकासशील व विकसित देश में हर तीसरी मौत ह्रदय रोग से होती है और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुमान के अनुसार भारत इस क्षेत्र में साठ प्रतिशत के साथ सबसे आगे है। यानी दुनिया के साठ प्रतिशत हार्ट पेशेंट भारतीय हैं। इसे मोर्फिड मैप (MORPHID MAP) कहते हैं। इसमें प्रत्येक देश को उसमें रहने वाले हार्टपेशेंट्स की प्रतिशत के अनुसार छोटा या बड़ा किया गया है। आप भारत के क्षेत्र पर गौर करें। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं कि भारत में कार्डियोलोजिस्ट्स तथा कार्डियक सर्जन्स को चुनौती देते है कि एंजियोप्लास्टी व बाईपास सर्जरी जैसी प्रक्रियाएं न केवल जोखिम से भरी हैं बल्कि ऐसे कोई भी प्रमाण नहीं मिलते कि इनसे जीवन की अवधि या गुणवत्ता में कोई सुधार होता है। ये केवल मुनाफा कमाने के लिए बनी प्रक्रियाएं हैं। परन्तु जिन लोगों (ह्रदय रोग विशेषज्ञों) ने अपने करियर बनाए हैं और इन प्रक्रियाओं (बाईपास व एंजियोप्लास्टी) के लिए धन तथा समय व्यय किया है, वे भयावह तानाशाहों की तरह पेश आ सकते हैं। वे किसी भी कीमत पर इस ताकत को अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहते। उन्हें जितनी अधिक चुनौती दी जाएगी, वे उतने ही भयंकर व खतरनाक होते जायेंगे। उदाहरण के लिए हम एक प्रचलित धारणा की बात करते हैं जो सैंकड़ों वर्षो तक कायम रही : कहा जाता था कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता हैं। जब कोपरनिकस ने 1543 में 'De REVOLUTIONIBUS ORBIUM COELESTIUM' प्रकाशित की और यह कहा कि पृथ्वी सूर्य के आसपास चक्कर काटती है तो उन पर चारों ओर से व्यंग्यबाण छोड़े गए। उनके तर्क को वैज्ञानिक व धार्मिक दृष्टिकोणों के आधार पर रदद् कर दिया गया। उन्हें बहुत से लोग के कोप का शिकार होना पड़ा। उनके सभी तर्क खोखले करार दिए गए। (मुनाफा कमाने की इच्छा रखने वालों) द्वारा अस्वीकृत करने का प्रयास किया जाएगा ''मनुष्य वहीं सुनता है जो वह सुनाना चाहता है, बाकी बातों को वह अनसुना कर देता है।''
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