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Cause of diseases

रोगों का कारण (Cause of diseases) - शारीरिक असंतुलन (अम्ल व क्षार तत्व) हमारी सारी बीमारियों की शुरुआत क्षार और अम्ल के असंतुलन से होती है। और इसके संतुलन से समाप्त हो जाती है।
मानव-रक्त क्षारप्रधान या क्षारधर्मी होती है,जिसमें 80 प्रतिशत क्षार तत्व और 20 प्रतिशत अम्ल तत्व होते हैं। इसलिए रक्त के इस क्षार-अम्ल संतुलन को कायम रखने के लिए हमारा आहार मुख्यतया क्षारप्रधान होना चाहिए। सभी प्रकार के फल, सब्जियाँ अंकुरित धान्य,कुछ मेवे क्षारप्रधान हैं।
सभी प्रकार के अनाज,कुछ मेवे व प्रोटीन की वस्तुएं अम्ल प्रधान हैं। आहार में इनकी मात्रा 20-24 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। आहार संयोजन के अध्याय में समझाया गया हैं। वास्तविकता तो यह है कि क्षार -अम्ल का यह संतुलन ठीक हमारे शरीर की आवश्यकतानुसार प्रकृति ने ही खूब बुद्धिमता से हर आहार में रचा हैं। फल,सब्जी,मेवों का उपयोग बिना सोचे- समझे करते रहने पर भी शरीर को क्षार - अम्ल उचित परिणाम में मिल जाते हैं।
प्रकृति में ऐसी कोई वस्तु नहीं हैं। जिसमें क्षार और अम्ल साथ-साथ नहीं हों धीरे-धीरे सभ्यता की प्रगति के साथ मानव का मुख्य आहार अत्यंत अम्लकारक खाद्ध्य,मांसहार एवं अनाज प्रधान हो गया। और क्षारकारक फल सब्जियों का स्थान गौण होकर रह गया।
मांसहार (मांस,अंडे,मछली इत्यादि) सभी आहारों में सबसे अधिक अम्लकारक है, इसलिए यह मानव के लिए उचित,योग्य आहार नहीं है। इसको अपनाकर महामारक रोगों से कभी नहीं बचा जा सकता। शाकाहार (अनाज,दूध,मेवे, फल इत्यादि) में अनाज सबसे अधिक अम्लकारक आहार हैं। अनाज में सभी प्रकार की दालें एवं मूंगफली अधिक अम्लकारक हैं। सभी प्रकार की परिशोधित वस्तुओं में मैदा,चीनी,चावल,धुली दालें इत्यादि पालिश हो जाने के बाद,इनके क्षार तत्व निकल जाने के कारण पूर्णतया अम्लकारक आहार हो जाता है। इसलिए यह शरीर के लिए अयोग्य एवं अत्यंत रोगकारक आहार है, इससे बचना चाहिए
ऐसे आहार अपनाये जाने के कारण ही हमें क्षार और अम्ल के संतुलन का महत्व समझना पड़ा सिर्फ अनाज एवं दूध की मात्रा सीमित कर या बहुत कम कर,फल, सब्जियाँ और मेवे आदि प्राकृतिक आहार को अधिक-से-अधिक बढ़ाकर,क्षार और अम्ल के इस संतुलन को सहजतापूर्वक कायम कर पूर्ण स्वस्थ रहा जा सकता हैं।

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यंहा पर इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि बहुत से लोग अम्लकारक और क्षार कारक आहार को स्पष्ट समझ नहीं पाते हैं। इसलिए वे खट्टे फलों को अम्लकारक मान लेते हैं वस्तुओं की चयन-पाचन क्रिया के बाद जो अनुपयोगी तत्व (राख) बच जाते हैं वः या तो अम्लकारक या क्षारकारक होते हैं। अम्लप्रधान आहार: (जिनके चयनपाचन क्रिया के बाद अम्लकारक तत्व बच जाते हैं) सभी प्रकार के प्रोटीन पदार्थ मांस,अंडे,दूध (युवा अवस्था में), सभी अनाज, अनाज के उत्पाद दालें (युवा अवस्था में, सूजी,दलिया एवं मूंगफली, मेवे और सभी प्रकार के पके,अप्राकृतिक,विकृत एवं परिष्क्र्त आहार (जिनके कई क्रियाओं से गुजरने के कारण क्षार तत्व नष्ट हो जाते हैं)
बाल अवस्था के बाद दूध को पचाने वाले पाचक रस कमजोर या लुप्त हो जाने के कारण दूध अम्लकारक आहार बन जाता है। इसलिए कच्चा दूध थोड़ा क्षारकारक होते हुए भी युवावस्था में अम्लकारक ही साबित होता है मेवे (बादाम,पिस्ता,अखरोट,काजू,नारियल, चिलगोजा, इत्यादि) प्राकृतिक सूखे फल अम्लकारक होते हुए भी शरीर के अम्ल संतुलन के लिए जरूरी खाद्य हैं।
इसलिए इनका उपयोग फल,सब्जियों के साथ अवश्य करना चाहिए,मांस,दूध,अनाज का उपयोग बिलकुल नहीं करें अगर इनका उपयोग करते हैं तो मेवे का उपयोग नहीं करें,मेवा जीवनदायी है मांस, दूध, अनाज रोगदायी हैं। क्षार-प्रधान आहार जिनके चयन-पाचन की क्रिया के बाद क्षार तत्व बच जाते हैं) सभी प्रकार के फल (आलूबुखारा और बेर के कुछ प्रकार के सिवाय), हरी सब्जियाँ, दूध (बालकों में), नारियल क्षारप्रधान हैं। पके हुए आहार का यही एक बड़ा दुर्गुण है कि पकाने की क्रिया में उसके क्षार तत्व विकृत या नष्ट हो जाते हैं। और आहार अम्लप्रधान बन जाता हैं।
जिन दालों और अनाजों को हम पकाकर खाते हैं,इन्ही को अगर अंकुरित करके या ताज़ी हरी अवस्था में खाएँ तो ये क्षारप्रधान हो जाते हैं। यह भी स्पष्ट समझ लें कि 20 प्रतिशत अम्लता के लिए अनाज या प्रोटीन का खाना जरूरी नहीं हैं। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है, यह संतुलन प्रकृति ने स्वंय ही रचा हैं। हम सिर्फ सभी प्रकार के फल,सब्जियाँ, अंकुरित धान्य, बीज और मेवों का मौसम के अनुसार प्रयोग करते रहें, बाकी का काम शरीर अपने-आप समझ लेगा इन सभी प्राकृतिक आहार से हमारी अम्लता की पूर्ति स्वयमेव हो जाती है।
अनाज और अतिरिक्त प्रोटीन की वस्तुओं (मांस,दूध,अंडा इत्यादि) के उपयोग से हमारे अंदर अतिरिक्त अम्लता ही उत्पन्न होती है, जो शरीर के लिए अनावश्यक भार या बोझ स्वरूप होती है। प्राकृतिक आहार का सेवन करने वालों के लिए क्षार -अम्ल की समस्या ही नहीं है। यह समस्या सिर्फ पके आहार (अन्न,दूध,दालें,माँसाहार) का उपयोग करने वालों के लिए है। जिनको यह संतुलन स्वास्थ्य कायम रखने के लिए करना ही पड़ेगा।
प्राकृतिक आहार एवं जीवन अपनाने के बाद तथाकथित सारे स्वास्थ्य एवं आहार विज्ञान हमारे लिए निरर्थक हो जाते हैं जो जितना अधिक प्राकृतिक आहार एवं जीवन से दूर भाग रहा है, उतने ही अधिक आविष्कार उसके लिए विज्ञान कर रहा है।

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