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ब्रह्मचर्य क्यों जरूरी है?
ब्रह्मचर्य का तात्पर्य वीर्य रक्षा से है। यह ध्यान रखने की बात है कि ब्रह्मचर्य शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार से होना जरूरी है। अविवाहित रहना मात्र ब्रह्मचर्य नहीं कहलाता। ऑक्सीजन प्राणवायु है तो वीर्य जीवनी शक्ति है।
-: ब्रह्मचर्य और वीर्य रक्षण :-
1. वीर्य के बारें में जानकारी -
आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शरीर में सात धातु होते हैं- जिनमें अन्तिम धातु वीर्य (शुक्र) है। वीर्य ही मानव शरीर का सारतत्व है।
40 बूंद रक्त से 1 बूंद वीर्य होता है।
एक बार के वीर्य स्खलन से लगभग 15 ग्राम वीर्य का नाश होता है । जिस प्रकार पूरे गन्ने में शर्करा व्याप्त रहता है उसी प्रकार वीर्य पूरे शरीर में सूक्ष्म रूप से व्याप्त रहता है।
सर्व अवस्थाओं में मन, वचन और कर्म तीनों से मैथुन का सदैव त्याग हो, उसे ब्रह्मचर्य कहते है ।
2. वीर्य को पानी की तरह रोज बहा देने से नुकसान -
शरीर के अन्दर विद्यमान ‘वीर्य’ ही जीवन-शक्ति का भण्डार है।
शारीरिक एवं मानसिक दुराचर तथा प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक मैथुन से इसका क्षरण होता है। कामुक चिंतन से भी इसका नुकसान होता है।
मैथुन के द्वारा पूरे शरीर में मंथन चलता है और शरीर का सार तत्व कुछ ही समय में बाहर आ जाता है। रस निकाल लेने पर जैसे गन्ना छूंट हो जाता है कुछ वैसे ही स्थिति वीर्यहीन मनुष्य की हो जाती है। ऐसे मनुष्य की तुलना मणिहीन नाग से भी की जा सकती है। यानि खोखला होता जाता है इन्सान।
3. वीर्यक्षय से विशेषकर तरूणावस्था में अनेक रोग उत्पन्न होते हैं -
चेहरे पर मुँहासे , नेत्रों के चतुर्दिक नीली रेखाएँ, दाढ़ी का अभाव, धँसे हुए नेत्र, रक्तक्षीणता से पीला चेहरा, स्मृतिनाश, दृष्टि की क्षीणता, मूत्र के साथ वीर्यस्खलन, दुर्बलता, आलस्य, उदासी, हृदय-कम्प, शिरोवेदना, संधि-पीड़ा, दुर्बल वृक्क, निद्रा में मूत्र निकल जाना, मानसिक अस्थिरता, विचारशक्ति का अभाव, दुःस्वप्न, स्वप्नदोष व मानसिक अशांति।
4. वीर्य रक्षण से लाभ -
शरीर में वीर्य संरक्षित होने पर आँखों में तेज, वाणी में प्रभाव, कार्य में उत्साह एवं प्राण ऊर्जा में अभिवृद्धि होती है।
ऐसे व्यक्ति को जल्दी से कोई रोग नहीं होता है उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है ।
पहले के जमाने में हमारे गुरुकुल शिक्षा पद्धति में ब्रह्मचर्य अनिवार्य हुआ करता था और उस वक्त में यहाँ वीर योद्धा, ज्ञानी, तपस्वी व ऋषि स्तर के लोग हुए।
ऋषि दयानंद ने कहा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति को अपरिमित शक्ति प्राप्त होती है। एक ब्रह्मचारी संसार का जितना उपकार कर सकता है दूसरा कोई नही कर सकता।
भगवान बुद्ध ने कहा है - ‘‘भोग और रोग साथी है और ब्रह्मचर्य आरोग्य का मूल है।’’
स्वामी रामतीर्थ ने कहा है - ‘‘जैसे दीपक का तेल-बत्ती के द्वारा ऊपर चढक़र प्रकाश के रूप में परिणित होता है, वैसे ही ब्रह्मचारी के अन्दर का वीर्य सुषुम्रा नाड़ी द्वारा प्राण बनकर ऊपर चढ़ता हुआ ज्ञान-दीप्ति में परिणित हो जाता है। पति के वियोग में कामिनी तड़पती है और वीर्यपतन होने पर योगी पश्चाताप करता है।
भगवान शंकर ने कहा है-
'इस ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही मेरी ऐसी महान महिमा हुई है।'
कुछ उपाय -
ब्रह्मचर्य जीवन जीने के लिये सबसे पहले ‘मन’ को साधने की आवश्यकता है। अत: यह सारी पुस्तके इसमे आपकी मदद करेगी।
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